Information about some minerals good for health

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  Today I want to share information about some minerals good for are health.
                      कैल्शियम

 परिचय-हडि्डयों और दांतों को बनाने और उनके रख-रखाव के लिए, पेशियों के सामान्य संकुचन के लिए, हृदय की गति को नियमन करने के लिए और रक्त का थक्का बनाने के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है। कैल्शियम जीवन-शक्ति और सहनशीलता बढ़ाता है, कोलेस्ट्रॉल स्तरों को संतुलित करता है, स्नायुओं के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और रजोधर्म विषयक दर्दों के लिए ठीक है। एन्जाइम की गतिविधि के लिए कैल्शियम की आवश्यकता है। हृदय-संवहनी के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम मैग्नेशियम के साथ काम करता है। रक्त के जमाव के द्वारा यह घावों को शीघ्र भरता है। कुछ विशेष कैंसर के विरुद्ध भी यह सहायक होता है। कैल्शियम उदासी, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा और एलर्जी को कम करता है।



कैल्शियम की आवश्यकता गर्भवती महिलाओं, 60 से अधिक उम्र के पुरुषों, 45 से अधिक उम्र की स्त्रियों, धूम्रपान करने वालों और अधिक शराब पीने वालों को अधिक होती है। बच्चों में सूखा रोग कैल्शियम की कमी का ही लक्षण है।

विटामिन `डी´ की विशेष रूप से आवश्यकता कैल्शियम के समावेशन के लिए होती है। विटामिन `सी´ भी कैल्शियम के समावेशन में सुधार लाता है। सम्पूरक के रूप में कैल्शियम कार्बोनेट भोजन के साथ अधिक अच्छे ढंग से समावेशित होता है।




दूध और इसके उत्पाद, दालें, सोयाबीन, हरी पत्तीदार सब्जियां, नींबू जाति के फल, सार्डीन, मटर, फलियां, मूंगफली, वाटनट (सिंघाड़ा), सूर्यमुखी के बीज इस खनिज के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

यदि आहार में पर्याप्त कैल्शियम न हो तो विविध शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक कैल्शियम उस व्यक्ति की हडि्डयों से लिया जाता है।

                      कॉपर

परिचय-कॉपर कई एन्जाइमों में पाया जाता है। विष का प्रभाव कम करने और संक्रामक रोगों में इसका सेवन किया जाता है। कॉपर लेने से लौह, विटामिन-सी तथा जिंक को पचाने में मदद मिलती है। लाल रक्त कणिकाएं (रेड ब्लड सेल्स) कॉपर के बिना नहीं बन सकती। शरीर में इसकी कमी से व्यक्ति `एनीमिक´ (खून की कमी से ग्रस्त) हो सकता है। जैतून और गिरीदार फल में यह पाया जाता है।



इसे दो मिलीग्राम से ज्यादा नहीं लेना चाहिए। हमारे शरीर को दूसरे माध्यमों से कॉपर मिलता रहता है जैसे तांबे के बर्तनों, पानी के पाइपों, दवाओं खाद्य-प्रसंस्करणों (फूड प्रोसेसिंग), सुंगंधों और फसलों पर छिड़की जानेवाली दवाओं आदि से।
                     
                          क्रोमियम  


परिचय-क्रोमियम उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण रखने में सहायता करता है और मधुमेह को रोकता है। यह पेशियों को रक्त से शर्करा लेने और चर्बीदार कोलेस्ट्रॉल संश्लेषण को नियंत्रित करने में भी सहायता करता है। यह रक्त शर्करा के स्तरों को समतल रखता है। शरीर में इसकी कमी से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जैसेकि मध्यम मधुमेह में होता है।




आयु के साथ शरीर में क्रोमियम की आपूर्तियां हो जाती हैं। शरीर में क्रोमियम का भण्डार कठोर व्यायाम, चोटों और शल्य-चिकित्सा से भी कम हो जाता है। कुछ अनुसंधानकर्त्ता विश्वास करते हैं कि पर्याप्त क्रोमियम धमनियों को कड़े होने से रोकने में मदद कर सकता है।

                               जस्ता


शरीर में जस्ते की कमी मद्यपान, आहार की प्रतिक्रिया, कम प्रोटीन के आहार, जुकाम, गर्भावस्था और रोग के कारण हो सकती है। जस्ते की कमी होने से स्वाद और भूख की कमी, घाव का देर से भरना, गंजापन, विकास रुकना, हृदय-रोग, मानसिक रोग और प्रजनन-सम्बंधी विकार हो जाते हैं। कुछ मध्य-पूर्व के देशों में बौनेपन का कारण आहार में जस्ते की कमी माना जाता है।


जस्ते के स्रोत- सभी अनाज, मलाई निकाला हुआ दूध, संसाधित पनीर, खमीर, गिरीदार फल, बीज, गेहूं के अंकुर, चोकर, बिना पॉलिश किया हुआ चावल, पालक, मटर, कॉटेज पनीर, समुद्र से प्राप्त होने वाला आहार, मुर्गे-अण्डे। सम्पूर्ण गेहूं के आटे के उत्पादों में सफेद आटे की अपेक्षा चार गुना अधिक जस्ता होता है।

                                    तांबा
 
  परिचय- तांबा लोहे के समावेशन में मदद करता है। यह उसी प्रकार लोहे के साथी के रूप में काम करता है जैसे पोटैशियम और सोडियम एक जोड़े की तरह काम करते हैं। तांबा लोहे को हीमोग्लोबिन में बदलने में मदद करता है। तांबा तंत्र में लचीलापन पैदा करता है। तांबे के स्तरों में असंतुलन समग्र कोलेस्ट्रॉल बढ़ा देता है और एच. डी. एल. का अनुपात कम कर देता है।




तांबे की कमी से केन्द्रीय स्नायु-संस्थान में अव्यवस्थाएं, रक्तहीनता और गर्भावस्था की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। तांबे की अधिकता सेलेनियम के प्रभाव को अवरुद्ध कर सकती है जो कैंसर के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। फल, सूखी फलियां, गिरीदार फल, मुर्गी, शेल मछली, गहरे रंग के चाकलेट, जिगर, गुर्दे, खमीर, गेहूं अंकुरित, केले और शहद इस सूक्ष्म मात्रिक तत्व के स्रोत हैं।


  

                           पोटेशियम
 परिचय-पोटेशियम मूल खनिज है। इसके बिना जीवन सम्भव नहीं है। पोटेशियम हमेशा किसी एसिड के साथ पाया जाता है। खनिज की कमी वाली मिट्टी खनिज की कमी वाला आहार उत्पन्न करती है। इस प्रकार के आहार का अंतर्ग्रहण शरीर की कोशिकाओं से पोटेशियम लेने के लिए विवश करता है जिससे सम्पूर्ण शरीर-रसायन विक्षुब्ध हो जाता है। पोटेशियम की कमी विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं में सूखा हुआ राख, कोयला या विशिष्ट प्रकार की मिट्टी भी खाने की इच्छा पैदा करता है।



पोटेशियम पेशियों, स्नायुओं की सामान्य शक्ति, हृदय की क्रिया और एन्जाइम प्रतिक्रयाओं के लिए आवश्यक है। यह शरीर के तरल संतुलन को नियमित करने में सहायक होता है। इसकी कमी से स्मरण-शक्ति का ह्रास पेशियों की कमजोरी, अनियमित हृदय-गति और चिड़चिड़ापन जैसे रोग हो सकते हैं। इसकी अधिकता से हृदय की अनियमितताएं हो सकती हैं।

पोटेशियम कोमल ऊतकों के लिये वही है जो कैल्शियम शरीर के कठोर ऊतकों के लिए है। यह कोशिकाओं के भीतर और बाहर के तरलों का विद्युत-अपघटनी संतुलन बनाये रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। आयु के साथ पोटेशियम का अर्न्तग्रहण भी बढ़ना आवश्यक है। पोटेशियम की कमी मानसिक सतर्कता के अभाव, पेशियों की थकावट, विश्राम करने में कठिनाई, सर्दी-जुकाम, कब्ज, जी मिचलाना, त्वचा की खुजली और शरीर की मांस-पेशियों में ऐंठन के रूप में प्रतिबिम्बित होती है। सोडियम का बढ़ा हुआ अर्न्तग्रहण शरीर की कोशिकाओं में से पोटेशियम की हानि को बढ़ा देता है। अधिक पोटेशियम से रक्त-नलिकाओं की दीवारें कैल्शियम निक्षेप से मुक्त रखी जा सकती है।

विकसित देशों में सेब के आसव का सिरका पोटेशियम का एक उत्तम स्रोत है एक चम्मच सेब के आसव के सिरके को एक गिलास पानी में मिलाइए और इसकी धीरे-धीरे चुस्की लीजिए। यह शरीर की वसाओं को जलाने में मदद करता है। गायों पर किये गये प्रयोगों में सेब के आसव के सिरके से गायों में गठिया समाप्त हो गया और दूध का उत्पादन बढ़ गया।

पोटेशियम के महत्वपूर्ण स्रोत-

सूखा हुआ बिना मलाई के दूध का पाउडर, गेहूं के अंकुर, छुहारे, खमीर, आलू, मूंगफली, बन्दगोभी, मटर, केले, सूखे मेवे, नारंगी और अन्य फलों के रस, खरबूजे के बीज, मुर्गे, मछली और सबसे अधिक पैपरिका और सेब के आसव का सिरका।

Information about vitamins

Hello friends,
       I want to share with you information about vitamins who is very
Useful our good health.


परिचय-
शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए विटामिनों के महत्वपूर्ण योगदान से इन्कार नहीं किया जा सकता है। शरीर के समुचित पोषण के लिए विटामिन अति आवश्यक सहायक तत्व हैं। आधुनिक काल में विटामिनों की खोज के बाद इनका प्रचलन तेजी से जोर पकड़ चुका है। सभी विटामिन जो अब तक चिकित्सा विज्ञानियों ने खोज निकाले हैं वे सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। ये हमारे भोजन में काफी कम मात्रा में होकर भी हमारे शरीर को नई जीवन शक्ति देते हैं। इनकी कमी से शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। जब विटामिनों की किसी कारणवश शरीर में पूर्ति हो पाना सम्भव नहीं होता तब यह कमी मृत्यु का कारण बन जाती है।

विटामिन ऐसे आवश्यक कार्बनिक पदार्थ हैं, जिनकी अल्प मात्राएं सामान्य चयापचय और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। ये विटामिन शरीर में स्वत: पैदा नहीं हो सकते, इसलिए इन्हें भोजन से प्राप्त किया जाता है। इनका कृत्रिम रूप से भी उत्पादन किया जाता है।

समुचित मात्रा में विटामिन प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को ताजा भोजन ही करना चाहिए। भोजन पकाने में असावधानी बरतने, सब्जियों को काफी देर तक उबालने, इन्हें तेज रोशनी में रखने आदि से इन वस्तुओं में मौजूद विटामिन नष्ट हो जाते हैं। विटामिनों को दो वर्गो में विभजित किया गया है- वसा विलेय (soluble) और जल विलेय

वसा विलेय विटामिन-

विटामिन `ए´ (रेटिनोल), डी, ई (टेकोफेरोल) और विटामिन बी-1 (थायामिन), बी-2 (राइबोफ्लेविन), नियासीन (निकोटिनिक अम्ल), पेण्टोथेनिक अम्ल, बायोटिन, विटामिन बी-12 (साइनोकैबैलेमाइन), फोलिक अम्ल और विटामिन सी (ऐस्कॉर्बिक अम्ल) जल में विलेय विटामिन है।



विटामिन `ई´ की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-
वीर्य निर्बल
नपुंसकता
बांझपन
आंतों में घाव
गंजापन
गठिया
पीलिया
शूगर (मधुमेह)
जिगर के दोष
हृदय रोग
विटामिन `ई` युक्त खाद्यों की तालिका-

गेहूं
हरे साग
चना
जौ
खजूर
चावल का मांड
ताजा दूध
मक्खन
मलाई
शकरकन्द





विटामिन `ई´ की महत्वपूर्ण बातें-

विटामिन `ई´ वसा में घुलनशील होता है।
अंकुरित अनाज तथा शाक-भाजियों में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
अंतरिक्ष यात्रियों में ऑक्सीजन की अधिकता से रक्तहीनता का दोष पैदा हो जाता है जो विटामिन `ई´ से ठीक हो जाता है।
विटामिन `ई´ में किसी भी प्रकार की वेदना को दूर करने का विशेष गुण रहता है।
शरीर में विटामिन `ई´ की कमी हो जाने से किसी भी रोग का संक्रमण जल्दी लग जाता है।
विटामिन `ई´ की कमी होते ही क्रमश: विटामिन `ए´ भी शरीर से नष्ट होने लगता है।
गेहूं के तेल में विटामिन `ई´ भरपूर रहता है।
सलाद, अण्डे तथा मांस आदि में विटामिन `ई´ बहुत ही कम मात्रा में पाया जाता है।
स्त्रियों का बांझपन शरीर में विटामिन `ई´ की कमी के कारण होता है।
विटामिन `ई´ को टेकोफेरोल भी कहा जाता है।
विटामिन `ई´ का महिलाओं के बांझपन, बार-बार गर्भ गिर जाने, बच्चा मरा हुआ पैदा होने जैसे रोगों को रोकने के लिए सफलतापूर्वक पूरे संसार में प्रयोग किया जा रहा है।
आग से जल जाने वाले रोगी के लिए विटामिन `ई´ ईश्वरीय वरदान कहा जाता है इसके प्रयोग से जले हुए रोगी को संक्रमण भी नहीं लगता है।
प्रजनन अंगों पर विटामिन `ई´ विशेष रूप से प्रभाव पैदा करता है।
विटामिन `ई´ पर ताप का कोई प्रभाव पैदा नहीं होता है।
पुरुषों की नपुंसकता का एक कारण शरीर में विटामिन ई की कमी हो जाना भी होता है।
बिनौले में पर्याप्त विटामिन `ई´ मौजूद रहता है।
शिराओं के भंयकर घाव, गैंग्रीन आदि विटामिन `ई´ के प्रयोग से समाप्त हो जाते हैं।
शरीर में विटामिन `ई´ पर्याप्त रहने पर विटामिन `ए´ की शरीर को कम आवश्यकता पड़ती है।
हार्मोंस संतुलन के लिए विटामिन `ई´ का महत्वपूर्ण योगदान है।
विटामिन `ई´ की कमी से थायराइड ग्लैण्ड तथा पिट्यूटरी ग्लैण्ड की क्रियाओं में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
विटामिन `ई´ की कमी से स्त्री के स्तन सिकुड़ जाते हैं और छाती सपाट हो जाती है।
मानसिक रोगों से ग्रस्त रोगियों को विटामिन `ई´ प्रयोग कराने से लाभ होता है।
स्त्रियों में कामश्वासना लोप हो जाने पर विटामिन `ई´ का प्रयोग कराने से लाभ होता है।



विटामिन `ए´ की कमी से होने वाले रोग-
फेफड़े व सांस की नली के रोग।
सर्दी-जुकाम।
नाक-कान के रोग।
हड्डी व दांतों का कमजोर हो जाना।
त्वचा का खुरदरा होना, पपड़ी उतरना।
चर्म रोग, फोड़े-फुंसी, कील-मुंहासे, दाद, खाज।
जांघ व कमर के ऊपरी भाग पर बालों के स्थान मोटे हो जाना।
आंखों का तेज प्रकाश सहन न कर पाना, शाम व रात को कम दिखाई देना या अंधा हो जाना।
गुर्दे या मूत्राशय में पथरी बन जाना।
शरीर का वजन घट जाना।
नाखून आसानी से टूट जाना।
कब्ज होना।
स्त्री-पुरुष की जननेद्रियां कमजोर पड़ जाना।
तपेदिक (टी.बी.)।
संग्रहणी, जलोदर।
विटामिन-ए से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें-

विटामिन-`ए´ का आविष्कार 1931 में हुआ था।
विटामिन-`ए´ जल में घुलनशील है।
विटामिन-`ए´ तेल और वसा में घुल जाता है।
विटामिन-`ए´ ‘शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता देता है।
नन्हें बच्चों को विटामिन `ए´ की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
गर्भावस्था में स्त्री को विटामिन `ए´ की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
शरीर में संक्रामक रोगों के हो जाने पर विटामिन `ए´ की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
विटामिन `ए´ की कमी से बहरापन होता है।
सर्दी, खांसी, जुकाम, नजला जैसे रोग विटामिन `ए´ की कमी से होते हैं।
फेफड़ों के संक्रमण विटामन `ए´ की कमी से होते हैं।
विटामिन `ए´ की कमी से रोगी तेज प्रकाश सहन नहीं कर पाता है।
विटामिन `ए´ की कमी से कील-मुंहासे आदि कई चर्मरोग हो जाते हैं।
विटामिन `ए´ की कमी से आंखों में आंसू सूख जाते हैं।
विटामिन `ए´ की कमी से नाखून आसानी से टूटने लगते हैं।
विटामिन `ए´ की कमी से आंखों का रतौंधी रोग हो जाता है।
विटामिन `ए´ की कमी से अनेक आंखों के रोग आ घेरते हैं।
विटामिन `ए´ की कमी से दांत कमजोर हो जाते हैं और दांतों का एनामेल बनने में रुकावट हो जाती है।
दांतों में गड्ढे विटामिन `ए´ की कमी से होते हैं।
विटामिन `ए´ की कमी से पुरुष के जननांगों पर प्रभाव पड़ता है।
साइनस, नथुने, नाक, कान और गले, शिराओं, पतली रक्त वाहिनियों, माथे की रक्त वाहिनियों के संक्रमण विटामिन `ए´ की पूर्ति करने से दूर हो जाते हैं।
स्कारलेट फीवर विटामिन `ए´ देने से ठीक हो जाता है।
विटामिन `ए´ को संक्रमण विरोधी विटामिन की संज्ञा दी जाती है।
विटामिन `ए´ की कमी से बच्चों की बढ़त थम जाती है।
बच्चों को एक हजार से लेकर तीन हजार यूनिट आई, प्रतिदिन विटामिन `ए´ की आवश्यकता होती है।
विटामिन `ए´ की कमी दिमाग की 8वीं नाड़ी पर बुरा प्रभाव डालती है।
विटामिन `ए´ के प्रयोग से गुर्दों की पथरी का डर नहीं रहता। पथरी रेत के कण जैसी बनकर मूत्र से निकल जाती है।
गिल्हड़ (घेंघा) रोग विटामिन `ए´ की कमी से होता है।
दिल धड़कने वाले रोगी को विटामिन-ए´ के साथ विटामिन-बी1 भी देना चाहिए।
विटामिन-`ए´ की कमी से स्त्री के जननांगों पर घातक प्रभाव पड़ता है।
विटामिन-`ए´ की कमी से स्त्री का डिम्बाशय सिकुड़ जाता है।
विटामिन-`ए´ की कमी से पुरुष के अण्डकोष सिकुड़ जाते हैं।
विटामिन-`ए´ और `ई´ शरीर में घट जाने पर स्त्री और पुरुषों की संभोग करने की इच्छा नहीं रहती तथा सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता भी समाप्त हो जाती है।
विटामिन-`ए´ और `ई´ की कमी से पिट्यूटरी ग्लैण्ड की सक्रियता में बाधा हो जाती है।
विटामिन-`ए´ से धमनियां और शिराएं मुलायम रहती हैं।
विटामिन-`ए´ की कमी से बाल झड़ने लगते हैं।
मछली के तेल में विटामिन-`ए´ सबसे अधिक होता है।
विटामिन-`ए´ की कमी से सिर के बाल खुरदरे हो जाते हैं।
विटामिन-`ए´ की कमी से भूख घट जाती है।
विटामिन-`ए´ की कमी से मौसमी एलर्जी होती है।
विटामिन-`ए´ की कमी से वजन गिर जाता है।
विटामिन `ए´ युक्त खाद्य


1.हरा धनिया 10000 अ.ई.

2.पालक 5500 अ.ई.

3.पत्तागोभी 2000 अ.ई.

4.ताजा पोदीना 2500 अ.ई.

5.हरी मेथी 4000 अ.ई.

6.मूली के पत्ते 6500 अ.ई.

7.पका पपीत 2000 अ.ई.

8.टमाट 300 अ.ई.

9.गाजर 3000 अ.ई.

10.पका आम 45000 अ.ई.

11.काशीफल (सीताफल)1000 अ.ई.

12.हालीबुट लीवर ऑयल (मात्रा एक चम्मच)60000 अ.ई.

13.शार्क लीवर ऑयल (मात्रा एक चम्मच)6000 अ.ई.


14.बकरी की कलेजी 22000 अ.ई.

15.दूध 200 अ.ई.

16.अण्डा 2000 अ.ई.

17.मक्खन 2500 अ.ई.

18.घी 2000 अ.ई.

19.भेड़ की कलेजी 22000 अ.ई.

निम्नलिखित खाद्य-पदार्थों में विटामिन-`ए´ अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। जिस रोगी को विटामिन-`ए´ की कमी हो जाए उसे नीचे लिखी तालिका से चुनकर खाद्य-पदार्थ प्रयोग कराना अतिशय गुणकारी होता है-

दूध
मक्खन
मलाई
केला
नारंगी
गाजर
ककड़ी
हरी साग भाजी
शकरकन्द
चुकन्दर
टमाटर
पालक
सहजन
पत्तागोभी
सरसों का साग
ताजे फल
नींबू
मछली
बकरे की अण्डा ग्रंथि
बाजरा
हाथ का कूटा हुआ चावल
मौसमी
नाशपाती
शाकाहारी भोजन
बेल
शार्क लीवर ऑयल
अण्डा
अण्डे की जर्दी
मछली का जिगर
हालीबुट लीवर ऑयल
बकरे की कलेजी
हरा धनिया
हरा पोदीना
हरी मेथी
मूली के पत्ते
पका आम
काशीफल


परिचय-
विटामिन एच को बायोटिन भी कहा जाता है। यह भी विटामिन बी-काम्लेक्स परिवार का ही एक सदस्य है। इसकी कमी से शरीर में रक्ताल्पता (खून की कमी), और रक्त में लाल कणों का अभाव पैदा हो जाता है। त्वचा पर इसका प्रभाव दिखाई देने लगता है। इसके न रहने पर त्वचा पीली या सफेद सी नजर आने लगती है। इसके न रहने पर सीरम कोलेस्ट्रोल की वृद्धि हो जाती है। विटामिन एच के प्रयोग से जल्दी ही इसकी कमी से होने वाले समस्त विकारों से छुटकारा मिल जाता है। शरीर में रक्ताल्पता (खून की कमी) तो मात्र 6-8 दिन के प्रयोग से ही समाप्त होती देखी गई है। रक्ताल्पता (खून की कमी) दूर होते ही त्वचा पर उभरी सफेदी अथवा पीलापन खुद ही दूर हो जाता है और रोगी अपने अन्दर नई ताजगी स्फूर्ति अनुभव करने लगता है। सीरम कोलेस्ट्रॉल की वृद्धि भी इसके कुछ दिनों के प्रयोग से संतुलित हो जाती है। अत: विटामिन बी-काम्पलेक्स का यह सदस्य अन्य विटामिनों की भांति महत्व ही नहीं रखता बल्कि जीवन शक्ति भी देता है।

एडेनिलिक एसिड-

एडेनिलिक एसिड भी विटामिन बी-काम्पलेक्स परिवार का विशेष सदस्य है। यह यीस्ट में पाया जाता है। पेलाग्रा रोग तथा श्लेष्मकला के जख्म आदि में इसका प्रयोग करने से अतिशय गुणकारी प्रभाव पैदा होता है। इसके प्रभाव से विष लक्षण होना भी संभावित है अत: इसका प्रयोग पूर्ण सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए।

कोलीन-coline

कोलीन भी विटामिन बी-काम्पलेक्स परिवार का सदस्य है। यकृत रोगों पर इसका प्रभाव होता है विशेष करके जब यकृत में चर्बी जमा हो जाती है। शरीर में इसकी उपस्थिति से यकृत सम्बंधी रोगों पर रोक लग जाती है अर्थात् यकृत विकार नहीं हो पाते हैं।

फोलिक एसिड-

फोलिक एसिड विटामिन बी-काम्पलेक्स का ही एक शक्तिशाली सदस्य है जो मैक्रोसाइटिक एनीमिया में सफलतापूर्वक प्रयोग की जा रही है। यह पशुओं के यकृत, सोयाबीन, हरी साग, सब्जियां, सूखे मटर, दालें, पालक, चौलाई आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड को आयरन के साथ देने से अधिक शक्तिशाली प्रभाव पैदा होता है। यह कृत्रिम विधियों से बनाया जाता है। प्रारंभ में इसको पालक की हरी पत्तियों में पाया गया था। पालक इसका प्रमुख स्रोत है। इसकी टिकिया तथा इंजेक्शन दोनों उपलब्ध हैं। संग्रहणी, स्प्रू, पुराने दस्तों के बाद होने वाली खतरनाक रक्ताल्पता (खून की कमी) के लिए फोलिक एसिड का प्रयोग रामबाण सिद्ध होता है। गर्भावस्था में होने वाली खून की कमी के लिए इसका प्रयोग करना लाभकारी रहता है। वैसे गर्भावस्था में फोलिक एसिड प्रारंभ से ही देना शुरू कर देना चाहिए। इसको अकेले, आयरन के साथ अथवा लीवर एक्सट्रैक्ट के साथ देना चाहिए। इन दोनों के साथ यह और भी अधिक शक्ति संपन्न हो जाता है। फोलिक एसिड नारंगी रंग का दानेदार फीका पाउडर होता है। स्वस्थ शरीर में इसकी सामान्य मात्रा 5 से 20 मिलीग्राम तथा रोगावस्था में 100 से 150 मिलीग्राम तक होती है।



विटामिन `एफ´ सामान्यत: तेल युक्त बीजों में पाया जाता है।
विटामिन `एफ´ घी, तेल और चर्बी में नहीं पाया जाता है।
विटामिन `एफ´ की कमी हो जाने से प्रोस्टेट-ग्लैण्ड की शोथ (सूजन) हो जाती है।
यदि शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी हो जाए तो शरीर में स्थित अन्य विटामिन विशेष करके विटामिन `ए´, `डी´, `ई´ और `के´ शरीर का अंश नहीं बन पाते हैं।
भारत में अभी तक विटामिन `एफ´ का प्रचलन नहीं है जबकि इसकी खोज हुए वर्षों हो चुके हैं। विदेशों में यह प्रयोग हो रहा है, विशेषकर अमरीका में अत्यधिक प्रचलन में है।
विटामिन `एफ´ हाई ब्लडप्रेशर का रोग कम करता है।
विटामिन `एफ´ बुढ़ापे के रोगों के लिए रामबाण साबित होता है।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से आयु बढ़ती है।
यह सूरजमुखी के फूलों के बीजों में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
क्षय रोग के लिए कद्दू और उसके बीज अति लाभदायक होते हैं, क्योंकि उनमें विटामिन `एफ´ काफी मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन `एफ´ की शरीर में कमी हो जाने पर बाल खुश्क, खुरदरे तथा निर्जीव से हो जाते हैं।
विटामिन `एफ´ की कमी से पित्ताशय में रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
विटामिन `एफ´ की कमी से मूत्र रुक जाता है क्योंकि प्रोस्टेट ग्लैण्ड की सूजन उत्पन्न हो जाती है।
अगर त्वचा की पपड़ियां उतर रही हों तो तुरन्त समझना चाहिए कि शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी हो चुकी है।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से बुढ़ापे में प्रोस्टेट-ग्लैण्ड का रोग हो जाता है और रोगी की संभोग शक्ति बढ़ जाती है।
बुढ़ापे में विटामिन `एफ´ के प्रयोग से रक्तवाहिनियों की कठोरता समाप्त हो जाती है और रक्तवाहिनियां नरम-मुलायम हो जाती हैं।
विटामिन `एफ´ रक्त में कोलोस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है।
कद्दू के बीजों की गिरी में विटामिन `एफ´ काफी मात्रा में विद्यमान होता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक हजारों वर्षा से कद्दू के बीजों का चिकित्सा में प्रयोग करते आ रहे है, जाहिर है वे कद्दू के बीजों की मींगी में स्थित क्षय रोग (टी.बी.) को दूर करने वाली शक्ति से परिचित रहे होंगे-जबकि चिकित्सा विज्ञान ने आज खोज निकाला है कि कद्दू की मींगी में क्षय रोग को समाप्त करने के लिए विटामिन `एफ´ होता है।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से हृदय शक्तिशाली हो जाता है और हृदय के कई विकार शान्त हो जाते हैं।
एक्जिमा रोग का कारण शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी हो जाना भी होता है।
राक्षसी भूख का एक कारण शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी भी होती है।
गुर्दों के रोग विटामिन `एफ´ की कमी के कारण होते हैं।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से सिर के बाल सुन्दर और चमकीले हो जाते हैं।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से शरीर में चुस्ती-फुर्ती और रक्त का संचार होता है।
कद्दू के बीजों की गिरी प्रयोग करने से पागलों का पागलपन भी ठीक हो जाता है। कद्दू के बीज में विटामिन `एफ´ होता है।
कद्दू की मींगी अनिद्रा रोग को ठीक कर देती है।
कद्दू की मींगी का प्रयोग करने से फेफड़ों से रक्त आना बन्द हो जाता है।
कद्दू की मींगी दिमाग की खुश्की और गर्मी के ज्वर का नाश करती है।




परिचय-
विटामिन `के´ शरीर के लिए बहुत जरूरी विटामिन होता है। शरीर में कहीं से भी होने वाले रक्तस्राव को रोकने की इसमें अदभुत क्षमता होती है। इसकी कमी से शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

विटामिन `के´ की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-
खून का पतला होना।
खून में प्रोथेम्बिक तत्व की कमी होना।
रक्तस्राव होना।
विटामिन `के´ युक्त खाद्य पदार्थ-

पालक
मूली
गाजर
बन्दगोभी
फूलगोभी
गेहूं
जौ
सोयाबीन का तेल
दूध
अण्डे की जर्दी
हरे पत्ते का शाक
अंकुरित अनाज
अल्फल्का
नींबू
चावल के छिलके
पशुओं के जिगर
घी
ताजे हरे जौ
संतरा
रसदार फल
नोट- जिन पौधों में क्लोरोफिल होता है, उसमें विटामिन `के´ अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।

विटामिन `के´ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

विटामिन `के´ पानी में घुल जाता है।
विटामिन `के´ नीबू-संतरा, रसदार फल, हरी सब्जियां, पालक, टमाटर में अधिक पाया जाता है।
विटामिन `के´ रक्त के संतुलन तथा प्रवाह को अपने प्रभाव में रखता है।
घातक शस्त्रों की चोट से निकलने वाले रक्त को रोकने के लिए इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है।
रक्तस्राव वाले रोगों में शीघ्र लाभ के लिए हमेशा विटामिन `के´ युक्त इंजेक्शन का ही प्रयोग करना चाहिए टैबलेट का नहीं।
विटामिन `के´ नियमित दो मिलीग्राम दिन में 3 बार खिलाने से प्रोथोम्बिन नॉर्मल हो जाता है।
विटामिन `के´ की कमी से शरीर का खून पतला हो जाता है।
नकसीर विटामिन `के´ कमी से बढ़ती है।
विटामिन `के´ चूना यानि कैल्शियम के संयोग से तीव्रता से क्रियाशील होता है।
खून का न जमना अथवा देर से जमना जाहिर करता है कि शरीर में विटामिन `के´ की अत्यधिक कमी हो चुकी है।
विटामिन `के´ पाचनक्रिया सुधारने के लिए सक्रिय योगदान देता है।
नवजात शिशु के शल्यक्रम में सर्वप्रथम विटामिन `के´ का प्रयोग करना पड़ता है।
नवजात शिशुओं के पीलिया रोग में विटामिन `के´ का प्रयोग करना हितकर होता है।
विटामिन `के´ पीले रंग के कणों में उपलब्ध होता है।
वयस्क रोगियों को रुग्णावस्था (रोग की अवस्था में) में विटामिन `के´ कम से कम 10 मिलीग्राम तथा अधिक से अधिक 300 मिलीग्राम प्रतिदिन की एक या अधिक मात्रा देनी चाहिए।
यदि विटामिन `के´ इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध हो तो प्रतिदिन एक एम.एल ही रुग्णावस्था (रोग की अवस्था में) में देना पर्याप्त है। आवश्यकता पड़ने पर यह मात्रा दोहराई भी जा सकती है।
किसी भी प्रकार के अधिक स्राव में विटामिन `के´ नियमपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ यदि कैल्शियम और विटामिन सी प्रयोग किया जाए तो और भी अच्छा लाभ होता है।
यदि यकृत रोगग्रस्त हो चुका हो और रक्तस्राव (खून बहने) होने लगे तो विटामिन `के´ का प्रयोग करना चाहिए।
प्रसव से पहले विटामिन `के´ का प्रयोग करने से प्रसवकाल में रक्तस्राव कम होता हैं
ऑप्रेशन के पूर्व तथा ऑप्रेशन के बाद रक्तस्राव न होने देने अथवा कम होने के लिए विटामिन `के´ का प्रयोग किया जाता है।
शरीर में गांठे पड़ जाने पर विटामिन `के´ की आवश्यकता पड़ती है।
हाइपोप्रोथोम्बेनेविया रोग में विटामिन `के´ के प्रयोग से आराम मिल जाता है।
हेमाटेमेसिस रोग में विटामिन `के´ का प्रयोग लाभ देता है।
शीतपित्त तथा क्षय (टी.बी.) रोगों में विटामिन `के´ का प्रयोग लाभ प्रदान करता है।
रक्तप्रदर में विटामिन `के´ का प्रयोग करने से लाभ होता है।
खून को जमाने में विटामिन `के´ का प्रयोग सर्वोत्तम प्रभाव रखता है।
प्रोथोम्बिन की कमी विटामिन `के´ की वजह से होती है।
आंतड़ियों के घाव तथा आंतड़ियों की सूजन विटामिन `के´ की कमी से होती है। आंतड़ियों में पित्त का अवशोषण न हो पाने की वजह से भी विटामिन `के´ की शरीर में कमी हो जाती है।



विटामिन `डी` की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-
मज्जा तंतुओं की कमजोरी।
क्षय रोग।
सर्दी जुकाम बार-बार होना।
शारीरिक कमजोरी।
खून की कमी।
विटामिन `डी` युक्त खाद्यों की तालिका-

निम्नलिखित खाद्य-पदार्थो में विटामिन `डी´ पाया जाता है। जिन रोगियों के शरीर में विटामिन `डी´ की कमी होती है उनको औषधियों से चिकित्सा करने के साथ-साथ इन खाद्यों का प्रयोग भी करना चाहिए। विटामिन `डी´ प्राय: उन सभी खाद्यों में होता है जिनमें विटामिन `ए´ पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है।

ताजी साग-सब्जी।
पत्तागोभी।
पालक का साग।
सरसों का साग।
हरा पुदीना।
हरा धनिया।
गाजर।
चुकन्दर।
शलजम।
टमाटर।
नारंगी।
नींबू।
मालटा।
मूली।
मूली के पत्ते।
काड लिवर ऑयल।
हाली बुटलिवर ऑयल सलाद।
सलाद।
चोकर सहित गेंहूं की रोटी।
सूर्य का प्रकाश।
नारियल।
मक्खन।
घी।
दूध।
केला।
पपीता।
शाकाहारी भोजन।
मछली का तेल।
शार्क लीवर ऑयल।
अण्डे की जर्दी।
बकरे की अण्डग्रंथियां।
विटामिन `डी´ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें-

विटामिन `डी´ का आविष्कार विड्स ने 1932 में किया था।
विटामिन `ए´ की भांति विटामिन `डी´ भी तेल और वसा में घुल जाता है पर पानी में नहीं घुलता।
जिन पदार्थो में विटामिन `ए´ रहता है विशेषकर उन्हीं में विटामिन `डी´ भी विद्यमान रहता है।
मछली के तेल में विटामिन `डी´ अधिक पाया जाता है।
विटामिन `डी´ की कमी हो जाने पर आंतें कैल्शियम तथा फास्फोरस को चूसकर रक्त में शामिल नहीं कर पाती हैं।
सूर्य के प्रकाश में विटामिन `डी´ रहता है। कुछ चिकित्सक घावों, फोड़ों तथा रसौलियों की चिकित्सा सूर्य के प्रकाश से करते हैं।
प्रातःकाल सूर्य के प्रकाश में लेटकर सरसों के तेल की मालिश पूरे शरीर पर की जाए तो शरीर को विटामिन `डी´ पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।
सौर ऊर्जा से बने भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन `डी´ उपलब्ध होता है।
भोजन को थोड़ी देर तक सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाये तो उसमें विटामिन `डी´ पर्याप्त मात्रा में आ जाता है।
चर्म रोगों की चिकित्सा के लिए विटामिन `डी´ अति उपयोगी है। इसलिए कई चर्म रोग सूर्य का प्रकाश दिखाने से ठीक हो जाते हैं। विटामिन डी का सूर्य से उतना ही सम्बंध है जितना शरीर का आत्मा से।
विटामिन `डी´ मजबूत चमकीले दांतों के लिए अति आवश्यक है।
विटामिन `डी´ हडि्डयों को मजबूत बनाता है।
विटामिन `डी´ की कमी से हडि्डयां मुलायम हो जाती हैं।
विटामिन `डी´ कमी से त्वचा खुश्क हो जाती है।
जो लोग अंधेरे स्थानों में निवास करते हैं वे विटामिन `डी´ कमी के शिकार हो जाते हैं।
विटामिन `डी´ की कमी से कूबड़ निकल आता है।
विटामिन `डी´ की कमी से पेडू और पीठ की हडि्डयां मुड़ जाती हैं या मुलायम हो जाती है।
ठण्डे मुल्कों के लोग विटामिन `डी´ की कमी के शिकार रहते हैं।
प्राचीनकाल में लोग खुले वातावरण में रहते थे इसलिए वे बहुत कम रोगों के शिकार होते थे।
श्वास रोगों को दूर करने के लिए विटामिन `डी´ बहुत असरकारक साबित होता है।
गर्भावस्था में विटामिन `डी´ की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। यदि गर्भवती स्त्री को विटामिन `डी´ की कमी हो जाये तो पैदा होने वाले बच्चे के दांत कमजोर निकलते हैं और जल्दी ही उनमें कीड़ा लग जाता है।
विटामिन `डी´ के कारण दांतों में कीड़ा नहीं लगता।
शरीर में विटामिन `डी´ की कमी से हडि्डयों में सूजन आ जाती है।
गर्म देश होने के बाद भी भारत के लोगों में सामान्यत: कमजोर अस्थियों का रोग पाया जाता है।
केवल अनाज पर निर्भर रहने वाले लोग अक्सर अस्थिमृदुलता (हडि्डयों का कमजोर होना) के शिकार हो जाते हैं।
बच्चे की खोपड़ी की हडि्डयां तीन मास के बाद भी नर्म रहे तो समझना चाहिए कि विटामिन `डी´ की अत्यधिक कमी हो रही है।
विटामिन `डी´ की प्रचुर मात्रा शरीर में रहने से चेहरा भरा-भरा, चमक लिए रहता है।
पर्दे में रहने वाली अधिकांश स्त्रियां विटामिन `डी´ की कमी की शिकार रहती हैं।
जिन रोगियों को विटामिन `डी´ की कमी से अस्थिमृदुलता तथा अस्थि शोथ रहता है वे अक्सर धनुवार्त के शिकार भी हो जाते हैं।
भारत में विटामिन `डी´ की कमी को दूर करने के लिए बच्चे को बचपन से ही मछली का तेल पिलाना हितकारी होता है।
बच्चों, गर्भावस्था और दूध पिलाने की अवस्था में विटामिन `डी´ का सेवन बहुत जरूरी होता है।
व्यक्ति को बचपन के बाद जवानी और बुढ़ापे में भी मछली का तेल नियमित रूप से पिलाते रहना चाहिए। इससे शरीर में विटामिन `डी´ की पर्याप्त मात्रा बनी रहती है।
बुढ़ापे में विटामिन `डी´ की कमी हो जाने पर जोड़ों का दर्द प्रारंभ हो जाता है।
विटामिन `डी´ की कमी से हल्की सी दुर्घटना हो जाने पर भी हडि्डयां टूट जाती हैं।
विटामिन `डी´ की कमी से बच्चों की खोपड़ी बहुत बड़ी तथा चौकोर सी हो जाती है।
विटामिन `डी´ की कमी से बच्चों के पुट्ठे कमजोर हो जाते हैं।
विटामिन `डी´ की कमी से बच्चों का चेहरा पीला, निस्तेज, कान्तिहीन दृष्टिगोचर होने लगता है।
विटामिन `डी´ की कमी के कारण बच्चा बिना कारण रोता रहता है।
विटामिन `डी´ की कमी से बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसको कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।
यदि वयस्कों के शरीर में विटामिन `डी´ की कमी हो जाये तो प्रारंभ में उनको कमर और कुल्हों की वेदना सताती है।
यदि वयस्कों को विटामिन-डी की अत्यधिक कमी हो जाये तो उनके पेडू और कूल्हे की हडि्डयां मुड़कर कुरूप हो जाती हैं।
शरीर में विटामिन `डी´ की कमी से सीढ़ियां चढ़ने पर रोगी को कष्ट होता है।
शीतपित्त रोग के पीछे शरीर में विटामिन `डी´ की कमी होती है अत: इस रोग की औषधियों के साथ विटामिन `डी´ का प्रयोग भी लाभ प्रदान करता है।
विटामिन `डी´ की कमी को दूर करने के लिए कच्चा अण्डा प्रयोग करना हितकर होता है।
सर्दियों तथा बरसात के मौसम में बच्चों, बूढ़ों तथा जवानों को समान रूप से विटामिन `डी´ की अधिक आवश्यकता रहती है।
विटामिन `डी´ की अधिकता से दिमाग की नसें शक्तिशाली और लचीली हो जाती हैं।
विटामिन `डी´ सब्जियों में नहीं पाया जाता है।
अण्डा, मक्खन, दूध, कलेजी में विटामिन `डी´ ज्यादा मात्रा में रहता है।
ग्रामीण लोगों को सूर्य की किरणों से पर्याप्त विटामिन `डी´ मिल जाता है।
ग्रामीण लोगों की अपेक्षा शहरी लोग अधिक विटामिन `डी´ की कमी के शिकार होते हैं।
पुरुषों को प्रतिदिन 400 से 600 यूनिट विटामिन `डी´ की आवश्यकता होती है। दूध पीते बच्चों को भी इतनी ही आवश्यकता होती है।
अस्थिशोथ (रिकेट्स) तथा निर्बलता में 4 से 20 हजार अंतर्राष्ट्रीय यूनिट विटामिन `डी´ की आवश्यकता होती है।
कैल्शियमयुक्त खाद्य (प्रति 100 ग्राम)

Benefits of food, fruits & spices also

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                       जौ के फायदे

प्राचीन काल से जौ का उपयोग होता चला आ रहा है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों का आहार मुख्यतः जौ थे। वेदों ने भी यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकार किया है। गुणवत्ता की दृष्टि से गेहूँ की अपेक्षा जौ हलका धान्य है। उत्तर प्रदेश में गर्मी की ऋतु में भूख-प्यास शांत करने के लिए सत्तू का उपयोग अधिक होता है। जौ को भूनकर, पीसकर, उसके आटे में थोड़ा सेंधा नमक और पानी मिलाकर सत्तू बनाया जाता है। कई लोग नमक की जगह गुड़ भी डालते हैं। सत्तू में घी और चीनी मिलाकर भी खाया जाता है।



जौ का सत्तू ठंडा, अग्निप्रदीपक, हलका, कब्ज दूर करने वाला, कफ एवं पित्त को हरने वाला, रूक्षता और मल को दूर करने वाला है। गर्मी से तपे हुए एवं कसरत से थके हुए लोगों के लिए सत्तू पीना हितकर है। मधुमेह के रोगी को जौ का आटा अधिक अनुकूल रहता है। इसके सेवन से शरीर में शक्कर की मात्रा बढ़ती नहीं है। जिसकी चरबी बढ़ गयी हो वह अगर गेहूँ और चावल छोड़कर जौ की रोटी एवं बथुए की या मेथी की भाजी तथा साथ में छाछ का सेवन करे तो धीरे-धीरे चरबी की मात्रा कम हो जाती है। जौ मूत्रल (मूत्र लाने वाला पदार्थ) हैं अतः इन्हें खाने से मूत्र खुलकर आता है।
जौ को कूटकर, ऊपर के मोटे छिलके निकालकर उसको चार गुने पानी में उबालकर तीन चार उफान आने के बाद उतार लो। एक घंटे तक ढककर रख दो। फिर पानी छानकर अलग करो। इसको बार्ली वाटर कहते हैं। बार्ली वाटर पीने से प्यास, उलटी, अतिसार, मूत्रकृच्छ, पेशाब का न आना या रुक-रुककर आना, मूत्रदाह, वृक्कशूल, मूत्राशयशूल आदि में लाभ होता है।

औषधि-प्रयोगः

धातुपुष्टिः एक सेर जौ का आटा, एक सेर ताजा घी और एक सेर मिश्री को कूटकर कलईयुक्त बर्तन में गर्म करके, उसमें 10-12 ग्राम काली मिर्च एवं 25 ग्राम इलायची के दानों का चूर्ण मिलाकर पूर्णिमा की रात्रि में छत पर ओस में रख दो। उसमें से हररोज सुबह 60-60 ग्राम लेकर खाने से धातुपुष्टि होती है।
गर्भपातः जौ के आटे को एवं मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बार-बार होने वाला गर्भपात रुकता है।



                            गिलोय



गिलोय पान के पत्ते कितरह की एक त्रिदोष नाशक श्रेष्ट बहुवर्षिय औषधिये बेल होती है। अमृत केगुणों वाली गिलोय की बेल लगभाग भारत वर्ष के हर गाँव शहर बाग़ बगीचे में औरवन उपवन में बहुतायत से पायी जाती है यह मैदानों, सड़कों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी हुई दिखाई देजाती है। नीम पर चढ़ी गिलोय में सब से अधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं, नीम परचढी हुई गिलोय नीम का गुण अवशोषित कर लेती है। इसकी पत्तियों मेंकैल्शियम, प्रोटीन, फासफोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। यह वात, कफऔर पित्त का शमन करती है। गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।गिलोय एक श्रेष्ट एंटीबायटिक एंटी वायरल और एंटीएजिड भी होती है। यदि गिलोयको घी के साथ दिया जाए तो इसका विशेष लाभ होता है, शहद के साथ प्रयोग सेकफ की समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रमेह के रोगियों को भी यह स्वस्थकरने में सहायक है। ज्वर के बाद इसका उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है।यह शरीर के त्रिदोषों (कफ ,वात और पित्) को संतुलित करती है और शरीर काकायाकल्प करने की क्षमता रखती है। गिलोय का उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म रोग, झाइयां, झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक, विषम ज्वर नाशक, सुअरफ्लू, बर्ड फ्लू, टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकड़न, शरीर का टूटना या दर्द, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह, रक्तशोधक, रोग पतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली, खांसी मिटानेवाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है। गिलोयभूख बढ़ाती है, शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। अमृता एक बहुतअच्छी उपयोगी मूत्रवर्धक एजेंट है जो कि गुर्दे की पथरी को दूर करने मेंमदद करता है और रक्त से रक्त यूरिया कम करता है। गिलोय रक्त शोधन करकेशारीरिक दुर्बलता को भी दूर करती है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्टकरता है। ह्रदय को मजबूत करती है। इसे चूर्ण, छाल, रस और काढ़े के रूप मेंइस्तेमाल किया जाता है और इसके तने को कच्चा भी चबाया जा सकता है।

गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग नाशक ,शोधनाशक औरलीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्रकरती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है।
गिलोय के 6″ तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला लेइसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इसकेसाथ ही तीन चम्मच एलोवेरा का गुदा पानी में मिला कर नियमित रूप से सेवनकरते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 पत्तो का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट कीमात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोईइलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाणहोता है।
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने कालक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होताहै ।
गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस कीएक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से रक्त कैंसर में फायदा होगा।
गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।
क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।

गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक होता है। औरगिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त का बढ़ना रुकता  है।
प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री केसाथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
गिलोय ज्वर पीडि़तों के लिए अमृत है, गिलोय का सेवन ज्वर के बाद टॉनिकका काम करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। शरीर में खूनकी कमी (एनीमिया) को दूर करता है।
फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इसतेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होतीहै।
सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है।
गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त को भी बढाती है।
गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें।प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जातीहै।
मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
गिलोय, धनिया, नीम की छाल, पद्याख और लाल चंदन इन सब को समान मात्रामें मिलाकर काढ़ा बना लें। इस को सुबह शाम सेवन करने से सब प्रकार का ज्वरठीक होता है।
गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्णके एक चम्मच को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ सेवन करनेसे ज्वर में लाभ मिलता है।
गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में मिलाकर पीसकरचूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक चम्मच भर लेने से बुखार में आराममिलता है।
गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है।
गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है। औरगिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे बारम्बार होनेवाला बुखार ठीक होता है।गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकरलेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।
गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकरकाढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है।
गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी सेसेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस का सेवन करने से दिलकी कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं।
गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कमहोता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमेंशिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से मोटापा घटने लगता है।
बराबर मात्रा में गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनालें। इसका एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ सेवन करने सेसंभोग शक्ति मजबूत होती है।
अलसी और वशंलोचन समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, और इसे गिलोय केरस तथा शहद के साथ हफ्ते – दस दिन तक सेवन करे इससे वीर्य गाढ़ा हो जाताहै।
लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले  फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक होजाते हैं।
गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।
गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसमें पीपल का चूर्णऔर शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के रोग दूर हो जाते हैं औरआँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं।
गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए औरसुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजलीसे छुटकारा मिलता है।
गिलोय  के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस ठीक होती है।
श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होताहै।गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभमिलता है।
गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारणसे आ रही उल्टी रूक जाती है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर दिन में दो तीनबार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।
गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
6 इंच गिलोय का तना लेकर कुट कर काढ़ा बनाकर इसमे काली मिर्च का चुर्ण डालकर गरम गरम पीने से साधारण जुकाम ठीक होगा।
पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनियां, नीम की छाल, चंदन, कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए भी फायदेमंद है।
नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।
1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्तमूल काचूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बारसेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है।
गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने सेस्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूधमिलता है।
एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है।गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम रोगों में लाभमिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है।
गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है।
गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है।
या गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है।
गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभहोता है।गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बादअसर दिखाई देने लगेगा ।
गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है। गिलोय केकाढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बारडालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुनाकरके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदररोग खत्म हो जाता है। या गिलोय और शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलासपानी में डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये  इसे सुबह-शाम पीयें प्रदररोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्तासूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे का सूखिया रोग जल्दठीक होगा
मात्रा : गिलोय को चूर्ण के रूप में 5-6 ग्राम, सत् के रूप में 2 ग्राम तक क्वाथ के रूप में 50 से 100 मि. ली.कीमात्रा लाभकारी व संतुलित होती है।



                                    आलू



आलू सब्जियों का राजा माना जाता है क्योंकि दुनिया भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है, उतना शायद ही अन्य किसी सब्जी का होता होगा। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन “बी” तथा फॉस्फोरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। आलू खाते रहने से रक्त वाहिनियां बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पाती। इसलिए आलू खाकर लम्बी आयु प्राप्त की जा सकती है।

आलू को अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त है। सभी प्रकार के आलू शीतल, मलरोधक, मधुर, भारी, मल तथा मूत्र को उत्पन्न करने वाले, मुश्किल से पचने वाले और रक्तपित्त को मिटाने वाले हैं। यह कफ और वायु करने वाले, बलप्रद, वीर्यवर्धक और अल्पमात्रा में पाचनशक्तिवर्धक भी हैं। अधिक परिश्रम के कारण उत्पन्न निर्बलता, रक्तपित्त से पीड़ित, शराबी और तेज जठराग्नि वाले लोगों के लिए आलू अत्यंत ही पोषक है।
विशेष

आलू यदि नरम हो अथवा उसके ऊपर दुर्गन्धयुक्त पानी आ गया हो तो उसका उपयोग न करें। अपच, गैस या मधुमेह से पीड़ित रोगियों को आलू का सेवन लाभदायक नहीं है। अग्निमान्द्य (अपच), अफारा, वात प्रकोप, बुखार, मल का रुकना, खुजली, त्वचा रोग, खून की खराबी, अतिसार (दस्त) इन रोगों में पीड़ित लोगों को आलू का कम सेवन करना चाहिए।

वैज्ञानिक मतानुसार -आलू के छिलके निकाल देने पर उसके साथ कुछ पोषक तत्व भी चले जाते हैं। आलू को उबालने पर बचे हुए पानी में भी प्रजीवक तत्व (विटामिन) रहते हैं। अत: उस पानी को फेंक देने के बजाए साग-सब्जी या दाल में मिलाकर खाना चाहिए।

यूनानी मतानुसार-आलू शीतल (ठंडी), वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), पाचनयुक्त और उदर-वातवर्द्धक है।

आलू में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, फॉस्फोरस, पोटैशियम, गन्धक, तांबा और लोहा अधिक मात्रा में है। इसमें विटामिन “ए” और “सी” भी थोड़ी मात्रा में होता है।
विभिन्न रोगों में आलू से उपचार

बेरी-बेरी, रक्तपित्त, त्वचा की झुर्रियां, आंखों का जाला एवं फूला, मोटापा, सूजन, उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर), अम्लता (एसीडिटी)
गुर्दे की पथरी (रीनल स्टोन), त्वचा का सौंदर्य, हृदय की जलन, गठिया या जोड़ों का दर्द, चोट लगने पर, जलने पर, दाद के रोग में.



                       बड़ी इलायची



संस्कृत में नाम : एला, स्थूल, बहुला
हिन्दी में नाम : बड़ी इलायची लाल इलायची
इंग्लिश में नाम : लार्ज कारडेमम
परिचय

इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर खाते हैं। सुगन्ध के लिए इसे शर्बतों और मिठाइयों में मिलाते हैं। मसालों तथा औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इलायची दो प्रकार की होती है। छोटी और बड़ी। छोटी इलायची मालाबार और गुजरात में अधिक पैदा होती है, और बड़ी इलायची उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल के पहाड़ी क्षेत्रों तथा नेपाल में उत्पन्न होती है। दोनों प्रकार की इलायची के गुण समान होते हैं। छोटी इलायची अधिक सुगन्ध वाली होती है।
रंग

यह भूरा, कालापन और हल्का लाल रंग का होता है।

स्वाद

इसका स्वाद चरपरा (तीखा) होता है।

स्वरूप

इलायची का पेड़ अदरक के पेड़ के जैसा होता है। इसके फल सफेद और लाल रंग के होते हैं। इसके बीज काले होते हैं।

स्वभाव

आयुर्वेद के अनुसार इसकी प्रकृति शीतल है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार यह गर्म और खुश्क होती है।

हानिकारक

बड़ी इलायची को अधिक मात्रा में सेवन करने से आंतों को नुकसान हो सकता है।

दोषों को दूर करना वाला

बड़ी इलायची के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए कतीरा का उपयोग किया जाता है।

मात्रा

इसे 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।

गुण

बड़ी इलायची पाचन शक्ति को बढ़ाती है, भूख को बढ़ाती है, दस्त और जी मिचलाने को रोकती है। इसके दाने मसूढ़ों को स्वस्थ व मजबूत बनाते हैं।

विभिन्न रोगों का बड़ी इलायची से उपचार

1.    सिर दर्द :
2.    पेट दर्द के लिए :
3.    खांसी, दमा, हिचकी :
4.    मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट) :
5.    पथरी :
6.    रक्तपित्त :
7.    नेवले का विष :
8.    शक्ति एवं रोशनी वर्द्धक :
9.    घबराहट व जी मिचलाना :
10.    वमन (उल्टी) :
11.    हृदय रोग :
12.    धातु की पुष्टि :
13.    धातु की वृद्धि :
14.    शीघ्रपतन :
15.    पेशाब में धातु का जाना :
16.    पेशाब का खुलकर आना :
17.    सूखी खांसी :
18.    कफजन्य खांसी :
19.    कफ :
20.    ज्वर और जीर्ण ज्वर :
21.    अफारा :
22.    सभी प्रकार के दर्द :
23.    कफजन्य हृदय रोग :
24.    वातनाड़ी दर्द :
25.    खूनी बवासीर :
26.    मुंह का रोग :
27.    पित्ताशय की पथरी :
28.    श्वेत प्रदर :



                           टमाटर के फायदे

टमाटर को ज्यादतर मिक्स करके या फिर सलाद के साथ खाया जाता है। लगभग हर सब्जी को बनाते वक्त टमाटर का प्रयोग किया जाता है। हालांकि, टमाटर का सूप, जूस और चटनी भी बनाकर खाया जाता है। टमाटर में विटामिन सी, लाइकोपीन, विटामिन, पोटैशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। टमाटर में कोलेस्ट्रॉल को कम करने की क्षमता होती है। टमाटर खाकर वजन को आसानी से कम किया जा सकता है। टमाटर की खूबी है कि गर्म करने के बाद भी इसके विटामिन समाप्त नहीं होते हैं। आइए हम आपको टमाटर के गणों के बारे में बताते हैं।


टमाटर के गुण –

सुबह-सुबह  बिना कुल्ला किए पका टमाटर खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है।
बच्चों को सूखा रोग होने पर आधा गिलास टमाटर के रस का सेवन कराने से बच्चे का सूखा रोग ठीक हो जाता है।
बच्चों के विकास के लिए टमाटर बहुत फायदेमंद होता है। दो या तीन पके हुए टमाटरों का नियमित सेवन करने से बच्चों का विकास शीघ्र होता है।
वजन घटाने के लिए टमाटर बहुत काम का होता है। मोटापा कम करने के लिए सुबह-शाम एक गिलास टमाटर का रस पीना फायदेमंद होता है।
यदि गठिया रोग है तो एक गिलास टमाटर के रस की सोंठ तैयार करें व इसमें एक चम्मच अजवायन का चूर्ण सुबह-शाम पीजिए, गठिया रोग में फायदा होगा
गर्भवती महिलाओं के लिए टमाटर बहुत फायदेमंद होता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को सुबह एक गिलास टमाटर के रस का सेवन करना चाहिए।
टमाटर पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। टमाटर के नियमित सेवन से पेट साफ रहता है।
कफ होने पर टमाटर का सेवन अत्यंत लाभदायक है।
पेट में कीड़े होने पर सुबह खाली पेट टमाटर में पिसी हुई कालीमिर्च लगाकर खाने से फायदा होता है।
भोजन करने से पहले दो या तीन पके टमाटरों को काटकर उसमें पिसी हुई कालीमिर्च, सेंधा नमक एवं हरा धनिया मिलाकर खाएं। इससे चेहरे पर लाली आती है।
टमाटर के गूदे में कच्चा दूध व नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर चमक आती है।
टमाटर के नियमित सेवन से अन्य रोग जैसे डायबिटीज, आंखों व पेशाब संबंधी रोगों, पुरानी कब्ज व चमड़ी के रोगों में फायदा होता है।
टमाटर का सेवन करने से नुकसान भी होता है। अम्ल पित्त, सूजन और पथरी के मरीजों को टमाटर नहीं खाना चाहिए। आंतों की बीमारी होने पर भी टमाटर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मांस पेशियों में दर्द या शरीर में सूजन हो तो टमाटर नहीं खाना चाहिए।


                        प्याज के फायदे

प्याज के फायदे बहुत होते हैं और यह बहुत ही शानदार घरेलू नुस्खा है। प्याज खाने को स्वादिष्ट बनाने का काम तो करता ही है साथ ही यह एक बेहतरीन औषधि भी है। कई बीमारियों में यह रामबाण दवा के रूप में काम करता है।

प्याज का प्रयोग खाने में बहुत किया जाता है। प्या‍ज सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। प्याज लू की रामबाण दवा है। आंखों के लिए यह बेहतरीन औषधि है। प्याज में केलिसिन और रायबोफ्लेविन (विटामिन बी) पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। आइए हम आपको बताते हैं कि प्याज आपकी सेहत के लिए कितना फायदेमंद है।

प्याज के लाभ –

लू लगने पर – गर्मियों के मौसम में प्याज खाने सू लू नहीं लगती है। लू लगने पर प्याज के दो चम्मच रस को पीना चाहिए और सीने पर रस की कुछ बूंदों से मालिश करने पर फायदा होता है। एक छोटा प्याज साथ में रखने पर भी लू नहीं लगती है।

बालों के लिए – बाल गिरने की समस्या से निजात पाने के लिए प्याज बहुत ही असरकारी है। गिरते हुए बालों के स्थान पर प्याज का रस रगडने से बाल गिरना बंद हो जाएंगे। इसके अलावा बालों का लेप लगाने पर काले बाल उगने शुरू हो जाते हैं।

पेशाब बंद होने पर – अगर पेशाब होना बंद हो जाए तो प्याज दो चम्मच प्याज का रस और गेहूं का आटा लेकर हलुवा बना लीजिए। इसको गर्म करके पेट पर इसका लेप लगाने से पेशाब आना शुरू हो जाता है। पानी में उबालकर पीने से भी पेशाब संबंधित समस्या समाप्त हो जाती है।

जुकाम के लिए – प्याज गर्म होती है इसलिए सर्दी के लिए बहुत फायदेमंद होती है। सर्दी या जुकाम होने पर प्याज खाने से फायदा होता है।

उम्र के लिए – प्याज खाने से कई शारीरिक बीमारियां नहीं होती हैं। इसके आलावा प्याज कइ बीमारियों को दूर भगाता है। इसलिए यह कहा जाता है कि प्याज खाने से उम्र बढती है, क्योंकि इसके सेवन से कोई बीमारी नहीं होती और शरीर स्वस्‍थ्‍य रहता है।

पथरी के लिए – अगर आपको पथरी की शिकायत है तो प्याज आपके लिए बहुत उपयोगी है। प्याज के रस को चीनी में मिलाकर शरबत बनाकर पीने से पथरी की से निजात मिलता है। प्याज का रस सुबह खाली पेट पीने से पथरी अपने-आप कटकर प्यास के रास्ते से बाहर निकल जाती है।

गठिया के लिए – गठिया में प्याज बहुत ही फायदेमंद होता है। गठिया में सरसों का तेल व प्याज का रस मिलाकर मालिश करें, फायदा होगा।

यौन शक्ति के लिए – प्याज खाने से शरीर की सेक्स क्षमता बढती है। शारीरिक क्षमता को बढाने के लिए पहले से ही प्याज का इस्तेमाल होता आया है। प्याज आदमियों के लिए सेक्स पॉवर बढाने का सबसे अच्छा टॉनिक है।

इसके अलावा प्याज कई अन्य सामान्य शारीरिक समस्याओं जैसे – मोतियाबिंद, सिर दर्द, कान दर्द और सांप के काटने पर भी प्रयोग किया जाता है। प्याज का पेस्ट लगाने से फटी एडियों को राहत मिलती है।


                     अदरक जड़ी बूटी

हम अत्यधिक अपने शुद्ध गुणवत्ता के लिए सराहना की है कि Sonthi अदरक जड़ी बूटियों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन जड़ी बूटियों उनकी तीखी खुशबू और नागरिकों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में चिकित्सा गुणों के लिए जाना जाता है. हमारी सीमा के बेहद पोषक है और कृत्रिम ripeners के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारे द्वारा की पेशकश अदरक बकाया गुणवत्ता लाने के लिए उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों में उगाया जाता है.



विशेषताएं:
उच्च पोषण मूल्य
बेहतर गुणवत्ता
उपभोग के लिए सुरक्षित


    छोटे से नींबू के गुणकारी नुस्खे

मिर्गी- चुटकी भर हींग को नींबू में मिलाकर चूसने से मिर्गी रोग में लाभ होगा।

पायरिया- नींबू का रस व शहद मिलाकर मसूड़ों पर मलते रहने से रक्त व पीप आना बंद हो जाएगा।

दांत व मसूड़ों का दर्द- दांत दर्द होने पर नींबू को चार टुकड़ों में काट लीजिए, इसके पश्चात ऊपर से नमक डालकर एक के बाद एक टुकड़ों को गर्म कीजिए। फिर एक-एक टुकड़ा दांत व दाढ़ में रखकर दबाते जाएं व चूसते जाएं, दर्द में काफी राहत महसूस होगी। मसूड़े फूलने पर नींबू को पानी में निचोड़ कर कुल्ले करने से अत्यधिक लाभ होगा।

दांतों की चमक- नींबू के रस व सरसों के तेल को मिलाकर मंजन करने से दांतों की चमक निखर जाएगी।

हिचकी- एक चम्मच नींबू का रस व शहद मिलाकर पीने से हिचकी बंद हो जाएगी। इस प्रयोग में स्वादानुसार काला नमक भी मिलाया जा सकता है।

खुजली- नींबू में फिटकरी का चूर्ण भरकर खुजली वाले स्थान पर रगड़ने से खुजली समाप्त हो जाएगी।

जोड़ों का दर्द- इस दर्द में नींबू के रस को दर्द वाले स्थान पर मलने से दर्द व सूजन समाप्त हो जाएगी।

पीड़ा रहित प्रसव- यदि गर्भधारण के चौथे माह से प्रसवकाल तक स्त्री एक नींबू की शिकंजी नित्य पीए तो प्रसव बिना कष्ट संभव हो सकता है।


              लौंग के स्वास्थवर्धक गुण

परिचय :लौंग का अधिक मात्रा में उत्पादन जंजीबार और मलाक्का द्वीप में होता है। लौंग के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। इसके पेड़ को लगाने के आठ या नौ वर्ष के बाद ही फल देते है। इसका रंग काला होता है। यह एक खुशबूदार मसाला है। जिसे भोजन में स्वाद के लिए डाला जाता है। लौंग दो प्रकार की होती है। एक तेज सुगन्ध वाली दूसरी नीले रंग की जिसका तेल मशीनों के द्वारा निकाला जाता है जो लौंग सुगन्ध में तेज, स्वाद में तीखी हो और दबाने में तेल का आभास हो उसी लौंग का अच्छा मानना चाहिए।

लौंग का तेल पानी की तुलना में भारी होता है। इसका रंग लाल होता है। सिगरेट की तम्बाकू को सुगन्धित बनाने के लिए लौंग के तेल का उपयोग होता है। लौंग के तेल को औषधि के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। इसके तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा के कीड़े नष्ट होते हैं।
हानिकारक :ज्यादा लौंग खाने से गुर्दे और आंतों को नुकसान पहुंच सकता है।

 गुण :आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टी.बी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है।

लौंग की पहचान :व्यापारी लौंग में तेल निकाला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हो तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है।
विभिन्न रोगों का लौंग से उपचार :

1.    बेहोशी:  
2.    जुकाम:  
3.    रतौंधी:
4.    बुखार:  
5.    आंख पर दाने का निकलना:  
6.    दांतों के रोग:
7.    प्रमेह:  
8.    सूखी या गीली खांसी:  
9.    भूख न लगना:
10.    गर्भवती स्त्री की उल्टी:  
11.    बुखार में खूब प्यास लगना:  
12.    पेट दर्द और सफेद दस्त:
13.    जीभ कटने पर:  
14.    सिर दर्द:  
15.    पेट की गैस:
16.    अम्लपित्त:  
17.    नासूर:  
18.    हैजा:
19.    पित्तज्वर:  
20.    आन्त्रज्वर (टायफाइड):  
21.    सर्दी लगना:
22.    मुंह की बदबू:  
23.    दिल की जलन:  
24.    जी मिचलाना:
25.    दांतों का दर्द:  
26.    दमा या श्वास रोग:  
27.    फेफड़ों की सूजन:
28.    अंजनहारी, गुहेरी:  
29.    दांत मजबूत करना:  
30.    पायरिया:
31.    दांत के कीड़े:  
32.    काली खांसी:  
33.    खांसी:
34.    अफारा (पेट का फूलना):  
35.    जीभ और त्वचा की सुन्नता:  
36.    कब्ज:

Information about Iron

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