Information about vitamin B7 &B12

               विटामिन बी7 के महत्वपूर्ण तथ्य


★ यह विटामिन प्रोटीन के पाचन में सहयोग की भूमिका अदा करता है।
★ इसकी कमी शरीर में हो जाने से पेलाग्रा रोग उत्पन्न हो जाता है।
★ इसकी कमी से रोगी अनिद्रा का शिकार हो जाता है।
★ यह कार्बोहाइड्रेटस के पाचन में सहयोगी होता है।
★ इस विटामिन की कमी से रोगी मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है।
★ त्वचा पर खुश्की के लक्षण विटामिन बी7 की कमी से उत्पन्न होते हैं।
★ रोग की अवस्था में विटामिन बी7 की 50 मिलीग्राम से लेकर 104 मिलीग्राम तक प्रयोग किया जाता है।
★ विटामिन बी7 की अधिकता अथवा अधिक प्रयोग करने से त्वचा लाल हो जाती है तथा लाली वाले स्थान पर चुनचुनाहट प्रतीत होने लगती है।
★ विटामिन बी7 की कमी से पागलपन के दौरे पड़ने लगते हैं।
★ शरीर में खून की कमी विटामिन बी7 की कमी के परिणामस्वरूप होती है।
★ मुंह के कोणों के जख्म विटामिन बी7 की कमी से होते हैं।
★ विटामिन बी7 की कमी से शारीरिक, मानसिक दुर्बलता पैदा हो जाती है।
★ पतले दस्तों का एक कारण विटामिन बी7 की शरीर में कमी हो जाना माना जाता है।
★ विटामिन बी7 की कमी यदि दूर कर दी जाये तो शरीर में इसकी कमी से होने वाले रोग दूर हो जाते हैं।
★ विटामिन बी7 विटामिन बी-कॉम्पलेक्स का सातवां महत्वपूर्ण अंश है। जिसकी कमी से शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।



                              विटामिन बी12


 पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड विटामिन बी-कॉम्पलेक्स के परिवार का एक सदस्य है। इसके प्रयोग से शरीर में रिक्ट्रेशिया की वृद्धि से रोग लग जाता है। इससे संक्रामक रोगों में बहुत लाभ होता है। टाइफस फीवर पैरा-एमिनो बेंजोइक एसिड से पूरी तरह नष्ट हो जाता है। स्मरण रहे टाइफस फीवर जुओं और लीखों के संक्रमण से होता है। राकी माऊन्टेन स्पाटेड फीवर की जड़ें उखाड़ने में भी पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड से सहायता प्राप्त होती है। पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड पशुओं के जिगर में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। बीजों की मींगी, बीजों की गिरियां, हरे पत्ते वाली पालक की साग-सब्जी से भी यह प्राप्त होता है। सोयाबीन के बीजों की मींगी में यह काफी अधिक पर्याप्त मात्रा में होता है। पशुओं के वृक्कों में भी पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड पाया जाता है। सामान्यत: 15 से 50 मिलीग्राम की मात्रा अथवा आवश्यकतानुसार चिकित्सा हेतु प्रयोग की जा सकती है। मूल रूप से पैरा-एमिनो बेंजोइक एसिड अनेक प्रकार के विषाणुओं के संक्रमण को रोकता है तथा समूल नष्ट करता है।



 विटामिन बी12 की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग

● शारीरिक कमजोरी।
● मानसिक कमजोरी।
● खून की कमी।
● जीभ में सूजन और लाली।
● भूख कम लगना।


विटामिन बी12 के स्रोत वाले खाद्य पदार्थो की तालिका-

● पशुओं के जिगर का सत्व।
● मछली।
● मांस।
● अण्डा।
● दूध।

Information about vitamin B6 & B4

          विटामिन बी6 की कमी से उत्पन्न रोग

◆ स्नायु दुर्बलता।
◆ नींद न आना।
◆ चिड़चिड़ापन।
◆ पेट में दर्द।
◆ शारीरिक दुर्बलता।
◆ लड़खड़ाना।
◆ चलने में कष्ट।
◆ रक्त अल्पता।
◆ कंपन।
◆ आधे सिर का दर्द।
◆ गर्भावस्था में उल्टी या जी मिचलाना।
◆ मांस पेशियां कमजोर पड़ना।


विटामिन बी6 के स्रोत वाले खाद्य पदार्थ

◆ अमरूद
◆ नारंगी
◆ दालें
◆ मटर
◆ सोयाबिन
◆ पपीता
◆ दूध
◆ चना
◆ टमाटर





           विटामिन बी6 की महत्वपूर्ण बातें

■ विटामिन बी6 को पायरीडॉक्सिन के नाम से भी जाना जाता हैं।
■ विटामिन बी6 का रंग सफेद होता है।
यह गंधरहित क्रिस्टल अर्थात् कणों वाला पाउडर होता है।
■ विटामिन बी6 की कमी से रोगी को त्वचा के रोग हो जाते है जिनमें त्वचा की सूजन प्रमुख होती है।
■ विटामिन बी6 का प्रयोग अधिकतर मुहांसों को दूर करने के लिए किया जाता है।
■ बच्चों को आक्षेप या कम्हेड़े के दौरे पड़ने पर इसका प्रयोग अच्छा लाभ देता है।
■ विटामिन बी6 की कमी से पेट के कई रोग हो जाते हैं जिनमें प्रमुख रूप से पेट में दर्द और ऐंठन होती है।
■ क्लोरोफार्म के प्रयोग से होने वाले विकारों में विटामिन बी6 लाभ प्रदान करता है।
■ ईथर प्रयोग करने पर उससे होने वाले विकारों को दूर करने के लिए विटामिन बी6 का प्रयोग हितकारी साबित होता है।
■ विटामिन बी6 प्रकाश के संपर्क में आकर नष्ट हो जाता है।
■ विटामिन बी6 पर क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता है।
■ विटामिन बी6 खून में सफेद कणों के निर्माण में अहम भूमिका अदा करता है।
■ विटामिन बी6 गर्मी के प्रभाव से नष्ट नहीं होता।
■ गर्भावस्था के विकारों को शान्त रखने के लिए इस विटामिन की काफी अधिक आवश्यकता पड़ती है।
■ विटामिन बी6 की कमी से होठों के कोनों में जख्म उत्पन्न हो जाते है।
■ अनिद्रा रोग शरीर में विटामिन बी6 की कमी की वजह से होता है।
■ कील-मुहांसों को दूर करने के लिए विटामिन बी6 रामबाण साबित होता है।
■ डब्बे का दूध पीने वाले बच्चे इस विटामिन की कमी से चिड़चिड़े हो जाते हैं और रात-दिन रोते रहते हैं।
■ विटामिन बी6 की कमी से रोगी को पक्षाघात जैसे भयंकर रोग हो सकते हैं।
■ विटामिन बी6 की कमी से पीलिया रोगों का सामना करना पड़ता है।
■ पशुओं की कलेजी में विटामिन बी6 प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
■ विटामिन बी6 की कमी से पेलाग्रा रोग हो जाता है।




                विटामिन बी4 के महत्वपूर्ण तथ्य


● विटामिन बी4 को एमाइनो एसिड भी कहा जाता है।
● इसकी रासायनिक रचना प्रोटीन जैसी होती है।
● शरीर में जब प्रोटीन पच जाता है तब आंतों में जो शेष बचा हुआ पदार्थ रहता है उसे ही एमाइनो एसिड नाम से पुकारा जाता है और यही विटामिन बी4 होता है।
● आंतें एमाइनो एसिड अर्थात् विटामिन बी4 का प्रचूषण करती हैं।
● आंतें एमाइनो एसिड को चूसकर यकृत में भेज देती है। एमाइनो एसिड अनेक प्रकार के होते हैं।
● विटामिन बी4 शरीर के विभिन्न अवयवों का निर्माण करता है।
● विटामिन बी4 घावों को भरने में मदद करता है।
● विटामिन बी4 का संचय यकृत और पेशियों में होता है।
● ज्वर होने का एक कारण शरीर में विटामिन बी4 की कमी भी होता है।

Information about vitamin B2

            विटामिन बी2 की कमी से उत्पन्न रोग


■ होंठों के किनारे फट जाना।
■ जीभ का रंग लाल होना, छाले निकलना, जीभ का सूज जाना।
■ नाक का पकना व सूजना।
■ आंख में जलन व सूजन, धुंधलापन होना।
■ कान के पीछे खुजली होना।
■ योनि की खुजली।


     विटामिन बी2 के जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

● विटामिन बी2 को विटामिन `जी´ भी कहा जाता है।
● विटामिन बी2 यीस्ट लीवर एक्स्ट्रैक्ट, गेहूं के अंकुर, दूध आदि में पाया जाता है।
● शरीर में विटामिन बी2 की कमी हो जाने पर शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए यह विटामिन एक से तीन मिलीग्राम तक पर्याप्त होता है।
इस विटामिन को रिबोफ्लेबिन कहा जाता है।

● विटामिन बी2 पीले रंग का होता है।

● विटामिन बी2 पानी में कम घुलता है।

● विटामिन बी2 सोडा बाई कार्ब के संपर्क में आकर नष्ट हो जाता है।

● इस विटामिन को वैज्ञानिक भाषा में लैक्टोफ्लेबिन भी कहा जाता है। किये गये परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि शरीर में विटामिन बी1 और विटामिन बी2 की कमी एक साथ होती है।
● ध्यान रहे विटामिन बी-काम्पलेक्स में प्रत्येक तत्व की एक साथ कमी हो जाती है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखें चुंधिया जाने का रोग हो जाता है।
● विटामिन बी2 की कमी की सबसे प्रमुख पहचान मुंह के कोनों पर पीलापन छा जाना होता है।
● विटामिन बी2 की कमी से नाक में सूजन आ जाती है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखों की रोशनी में धुंधलापन आने लगता है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखों में सूजन आ जाती है।
● एक रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन बी2 की मात्रा 50 मिलीग्राम दी जानी चाहिए।
● चेहरे के कील-मुंहासों का एक कारण शरीर में विटामिन बी2 की कमी हो जाना होता है।
● जीभ तथा होठों के रोग विटामिन बी2 की कमी से होते हैं।
● दूरस्थ तंत्रिकाओं के विकार विटामिन बी2 की कमी से होते हैं।
● आवश्यकता से अधिक विटामिन हो जाने पर विटामिन बी2 पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है।
● शरीर में विटामिन बी2 की कमी से महिलाओं को योनि की खुजली हो जाती है।



● मुखपाक (मुंह के छाले) विटामिन बी2 की कमी से होता है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखों के अनेक रोग शरीर को घेर लेते हैं। जिसमें आंखों का रूखापन, आंखों की सूजन तथा रोहें प्रमुख हैं।
● विटामिन बी2 की कमी से आंसू निकलने लगते हैं।
दूध, मछली तथा खमीर से विटामिन बी2 प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है।
● विटामिन बी2 की कमी से पलकों में जलन और खाज होने लगती है।
● कार्निया की सूजन विटामिन बी2 की कमी से होती है।
● होंठ फटने का मुख्य कारण शरीर में विटामिन बी2 की कमी होता है।


विटामिन बी2 के स्रोत वाले खाद्य पदार्थो की तालिका

टमाटर
पालक
बन्दगोभी
दूध
यीस्ट
लीवर
आसव अरिष्ट
मछली
खमीर
अण्डे की सफेदी
चावल की भूसी
माल्टा
गाजर
फलियां




नोट- एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन बी2 की 3 मिलीग्राम तक की मात्रा की आवश्यकता होती है। लेकिन एक रोगी को 50 मिलीग्राम प्रतिदिन विटामिन बी2 की आवश्यकता रहती है।



Information about vitamin B1

            विटामिन बी1 की कमी से होने वाले रोग

■ बेरी-बेरी रोग।
■ मस्तिष्क में खराबी होना।
■ भूख न लगना।
■ याददाश्त कम हो जाना।
■ दिल की कमजोरी।
■ सांस लेने में कठिनाई, पैरों में जलन।
■ आमाशय-आंतड़ियों के रोग।
■ कब्ज होना।
■ पेट में वायु (गैस) उत्पन्न होना।
■ पाचन क्रिया के दोष होना।
■ गर्भवती को उल्टी होना।
■ विषैला प्रभाव बढ़ जाना।
■ जिगर में दर्द होना।

         
             विटामिन बी1 का महत्वपूर्ण तथ्य

◆ विटामिन बी1 का वैज्ञानिक नाम थायमिन हाइड्रोक्लोराइड है।
◆ वयस्कों को प्रतिदिन विटामिन बी1 की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है।
◆ गर्भवती स्त्रियों को अपने पूरे गर्भावस्था के समय तक विटामिन बी1 की 5 मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है।
◆ शरीर में विटामिन बी1 जरूरत से ज्यादा हो जाने पर पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है।
◆ व्यक्ति की आयु बढ़ाने में लिए विटामिन बी1 का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है। इसलिए वैज्ञानिक इसे बेरी-बेरी विटामिन भी कहते हैं।
◆ यदि भोजन में विटामिन बी1 की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का सम्पूर्ण प्रयोग कर पाने में समर्थ नहीं हो पाता। इससे शरीर में एक विषैला एसिड जमा होकर रक्त में मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग में रोगी की मांसपेशियों को जहां भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शून्यता का आभास होता है।
◆ वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन बी1 900 यूनिट अ. ई. की आवश्यकता पड़ती है।
◆ विटामिन बी1 मूलांकुरों में अधिक पाया जाता है।
◆ दूध पीने वाले बच्चों को शरीर में विटामिन बी1 की कमी से उल्टी और पेट दर्द जैसे विकार हो जाते हैं।



◆ विटामिन बी1 निशास्ता (wheat starch) युक्त भोजन को पचाने में सहयोग करता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी हो जाने से रोगी की भूख मर जाती है तथा वजन तेजी से गिरने लगता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से हृदय और मस्तिष्क में कमजोरी तथा दूसरे दोष हो जाते हैं।
◆ कार्बोहाइड्रेट तथा फॉस्फोरस का शरीर में पूर्ण उपयोग तभी हो सकता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी1 मौजूद हो।
◆ विटामिन-बी1 की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि वह जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अन्दर नहीं संजो पाता है।
◆ सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा कठोर परिश्रम करने वाले लोगों को विटामिन बी1 की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है।
◆ विटामिन बी1 का रोगी अक्सर अजीर्ण रोग से पीड़ित रहता है।
◆ बेरी-बेरी रोग विशेषरूप से उन लोगों को होता है जो मशीन से पिसा हुआ आटा और चावल ज्यादा मात्रा में खाते हैं।
◆ बेरी-बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र।
◆ आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियों की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उनका हृदय कमजोर हो जाता है।
◆ शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है।
कभी-कभी, किसी-किसी रोगी में शुष्क और आर्द्र दोनों प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते हैं।
◆ शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुक्त रोगी को हृदय सम्बंधी अनेक विकार होते हैं। उनका हृदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है।
◆ शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी में एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदारी जान का खतरा पैदा कर सकती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से वात संस्थान पर असर पड़ता है और इसीलिए वात नाड़ियों में वेदना होती है।
◆ गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन बी1 की कमी का सूचक कहा जा सकता है।
◆ गर्भावस्था की विषममयता विटामिन बी1 की कमी से होती है अत: विटामिन बी1 की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषमयता नष्ट हो जाती है।
◆ बहुत से चर्म रोग विटामिन बी1 की कमी की वजह से भोगने पड़ते हैं।
◆ विटामिन बी1 की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बन्द हो जाना है।
◆ वनस्पतियों, पत्तेदार शाक तथा खमीर में विटामिन बी1 अधिक मात्रा में विद्यमान रहता है।
पीलिया रोग के पीछे भी विटामिन बी1 की कमी होती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से रोगी को पानी की तरह पतली उल्टी तथा जी मिचलाना जैसे रोग हो जाते हैं।
◆ मोटे व्यक्तियों को विटामिन बी1 की अधिक आवश्यकता होती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से हृदय बड़ा हो जाना रोगी के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है।
◆ सूखे किण्व (खमीर) में विटामिन बी1 सबसे अधिक 9000 अ. ई. यूनिट होता है।
◆ मटर में विटामिन बी1 सबसे कम 100 यूनिट अ.ई. होता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से फेफड़ों की झिल्ली में तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डकोषों में भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है।
◆ आंतड़ियों की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने में इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है।
◆ विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा शरीर में रहने पर मांसपेशियां पुष्ट रहती हैं।
◆ विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा से आंतों के संक्रमण की सुरक्षा बनी रहती है। इससे आंतों की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नहीं कर पाते हैं।
यह विटामिन यकृत की कार्य प्रणाली को स्वस्थ रखता है।
◆ यदि पाचन संस्थान स्वस्थ और शक्तिशाली है तो समझना चाहिए कि शरीर में विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा मौजूद है।
◆ जो लोग हरी साग-सब्जी नहीं खाते वे निश्चय ही विटामिन बी1 की कमी के शिकार हो जाते हैं।
मस्तिष्क तथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रों को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे होते हैं।
◆ यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग में प्रोटीन को यथाचित मात्रा में संतुलित रखता है।

    विटामिन बी1 युक्त खाद्य  (मात्रा प्रति 100 ग्राम)

क्र.स.     खाद्य पदार्थों                         यूनिट में मात्रा

1.       सूखे किण्व                               9000 यूनिट

2.       ताजे किण्व                               6000 यूनिट

3.     गेहूं के अंकुरों में                           4000 यूनिट

4.     गेहूं के दानों में                               900 यूनिट

5.     गेंहूं की रोटी में                                   360

6.        मटर                                                100

7.     हरी सब्जियां                     30 से 210 यूनिट

8.          आलू                           90 से 120 यूनिट

9.           दूध                                60 यूनिट

10.     अण्डे की जर्दी                     400 यूनिट

11.      जिगर                                 450 यूनिट

12.        गुर्दे                                   470 यूनिट



Information about vitamin C

          विटामिन `सी´ की कमी से होने वाले रोग


■ शरीर में दूषित कीटाणुओं की वृद्धि।
■ आंखों में मोतियाबिन्द हो जाना।
■ खाया-पिया हुआ भोजन शरीर में न लगना।
■ घाव में पीप पड़ना।
■ हडि्डयां कमजोर पड़ जाना।
■ चिडचिड़ा स्वभाव हो जाना।
■ खून का बहना।
■ मसूड़ों से खून व पीप बहना।
■ लकवा हो जाना।
■ रक्तविकार।
■ मुंह से बदबू आना।
■ शरीर कमजोर होना।
■ पाचन क्रिया में दोष उत्पन्न होना।
■ श्वेतप्रदर और सन्धिशोथ।
■ पुट्ठों की कमजोरी।
■ भूख न लगना।
■ सांस कठिनाई से आना।
■ चर्म रोग।
■ अल्सर का फोडा।
■ चेहरे पर दाग पड़ जाना।
■ फेफड़े कमजोर पड़ जाना तथा नजला जुकाम होना।
■ आंख, कान और नाक के रोग।
■ एलर्जी होना।


विटामिन `सी´ के स्रोत वाले खाद्य पदार्थों की तालिका-

●आंवला।
●नारंगी
●अमरूद
●सेब
●केला
●बेर
●बेल पत्थर
●कटहल
●शलगम
●पुदीना
●मूली के पत्ते
●मुनक्का
●दूध
●नींबू
●टमाटर
●चुकन्दर
●चोलाई का साग
●पत्ता गोभी
●हरा धनिया
●पालक

        विटामिन `सी´ की महत्वपूर्ण बातें

विदेशों में न्यूमोनिया तथा लाल ज्वर जैसे खतरनाक संक्रमण युक्त रोगों में विटामिन `सी´ रोगी को देना अति आवश्यक समझा जाता है।
कनपेड़े अर्थात् मम्पस रोगों में रोगी को विटामिन सी पानी में घोलकर पिलाते रहने से सूजन, वेदना तथा ज्वर धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं।
■ काली खांसी में विटामिन `सी´ लाभ प्रदान करता है।
■जोड़ों में सूजन होने के दर्द में विटामिन `सी´ लाभप्रद हो जाता है।
■मोतियाबिन्द के रोगी को विटामिन `सी´ देने से मोतियाबिन्द रुक जाता है।
■गर्भावस्था में विटामिन `सी´ का प्रयोग करने से सूजन समाप्त हो जाती है।
■विटामिन `सी´ की कमी से रोगी स्कर्वी रोग का शिकार हो जाता है।
■विटामिन `सी´ गंधहीन तथा रंगहीन होता है।
■विटामिन `सी´ रक्त में लाल कणों को बनाने में अति महत्वपूर्ण कार्य करता है।
■शरीर में विटामिन `सी´ की कमी हो जाने से कोशिकाओं तथा रक्त कोशिकाओं की दीवारें फटने लगती हैं और रोगी कई रोगों के संक्रमण का शिकार हो जाता है।
■गर्भपात को रोकने के लिए विटामिन `सी´ का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
■शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्राव को रोकने में विटामिन `सी´ सहायता प्रदान करता है।
■विटामिन `सी´ की कमी से आमाशय में घाव हो जाते हैं।
■क्षय (टी.बी.) रोग में विटामिन `सी´ का प्रयोग बहुत लाभ करता है।
■ टूटी हड्डी को जोड़ने के लिए ऑप्रेशन के बाद विटामिन `सी´ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।
■ फेफड़े का रक्तस्राव विटामिन `सी´ के प्रयोग से रुक जाता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से पायरिया रोग होता है। जो विटामिन `सी´ का प्रयोग करने पर ठीक हो जाता है।
■ यदि थोड़ा काम करते ही रोगी थक जाता है तो यह शरीर में विटामिन `सी´ की कमी का कारण है।
■ सांस के रोग का होना ही साबित करता है कि रोगी के शरीर में लंबे समय से विटामिन `सी´ की कमी होती चली आ रही है।
■विटामिन `सी´ की कमी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है।
■विटामिन `सी´ के प्रयोग से शरीर की रक्तवाहिनियां लचीली हो जाती हैं और उनकी कठोरता समाप्त हो जाती है।
■ विटामिन `सी´ बूढ़ों में भी चुस्ती-फुर्ती और शक्ति का संचार करने में मददगार होती है।
■ विटामिन `सी´ के प्रयोग से हर प्रकार की एलर्जी में लाभ होता है।
■ चलते-चलते थक जाना, दर्द होना, ऐंठन होना शरीर में विटामिन `सी´ की कमी को दर्शाता है।
■ विटामिन `सी´ को पानी में घोलकर पीने से सांप के विष का प्रभाव भी समाप्त हो जाता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से घाव भरने में देरी लगती है।
■ विटामिन `सी´ के प्रयोग से नासूर जैसे खतरनाक घाव भी ठीक होने लगते हैं।
■ आग में जल जाने के बाद तुरन्त ही विटामिन `सी´ का प्रयोग करने से जलन एवं वेदना में धीरे-धीरे आराम होने लगता है।
■ विटामिन `सी´ की टिकिया कारबंकल जैसे भयंकर घावों पर पीसकर भर देने से घाव जल्दी ही ठीक होने लगते हैं।
■ विटामिन `ए´ की भांति विटामिन `सी´ का भी नेत्र रोग के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
■ विटामिन `सी´ को ही एस्कोर्बिक एसिड कहा जाता है और यह जल में घुलनशील होता है।
■ विटामिन `सी´ को टूटे-फूटे अंगों को जोड़ने के लिए सीमेंट जैसी संज्ञा दी जा सकती है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से शरीर में खून की कमी हो जाती है।
■ विटामिन `सी´ खून में लाल कणों की वृद्धि करने में सहायक होता है।
■ अर्टिकेरिया, फीवर, त्वचा के दानों में रोगी को विटामिन `सी´ देने से लाभ होता है।
■ विषैले जन्तुओं के काट लेने पर विटामिन `सी´ से तुरन्त राहत मिलती है तथा जलन और दर्द दूर हो जाते हैं।
■ ज्वर (बुखार) हो तो विटामिन `सी´ का इंजेक्शन देते ही ज्वर उतर जाता है।
■ प्रोस्टेट ग्लैण्ड का संक्रमण विटामिन `सी´ से शान्त हो जाता है।
■ आंख, नाक, कान और गले के रोगों एवं विकारों के लिए विटामिन सी का प्रयोग अतिशय गुणकारी प्रभाव रखता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से हडि्डयों के जोड़ों में से रक्तस्राव होने लगता है। कभी-कभी हडि्डयों के यह अन्तिम छोर अलग ही हो जाते हैं।
■ स्वस्थ शरीर के लिए 25 से 30 मिलीग्राम विटामिन `सी´ पर्याप्त होता है।
■ बच्चों के शरीर में विटामिन `सी´ की पूर्ति करनी हो तो नारंगी, आंवला, मौसमी का रस पिलाना ही पर्याप्त है। आंवला विटामिन `सी´ के लिए सबसे उत्तम होता है। सूखे और ताजे दोनों आंवलों में यह विटामिन समान रूप से विद्यमान रहता है।
■ संधिवात, संधिशोथ तथा आमवात यानी जोड़ों के दर्द में विटामिन `सी´ गुणकारी उत्तम प्रभाव पैदा करता है।
■ यदि शरीर में विटामिन `सी´ की अत्यधिक कमी हो तो शीघ्र लाभ के लिए इंजेक्शन का प्रयोग करना ज्यादा हितकर होता है।
■ एक वर्ष से डेढ़ वर्ष तक के बच्चों को यह विटामिन प्रतिदिन 50 मिलीग्राम तक की मात्रा में देना आवश्यक होता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से त्वचा लटक जाती है तथा चेहरे एवं शरीर पर झुर्रियां पड़ जाती हैं।
■पक्षाघात तथा पोलियों जैसे रोग शरीर में विटामिन `सी´ की कमी से होते हैं जिन्हें विटामिन `सी´ का प्रयोग करके ठीक किया जा सकता है।
■ चेहरे के खतरनाक दाग-धब्बे विटामिन `सी´ के प्रयोग से ठीक हो जाते हैं।
■ कंजेस्टिट हार्ट फेल्यूर रोग में विटामिन `सी´ का प्रयोग करने से अधिक पेशाब आकर शरीर की सूजन तथा हृदय की तकलीफ सहित अन्य कई विकार नष्ट हो जाते हैं।

Benefits of milk

Hello friends,
           Today's I'll share with u benefits of milk in every stages of life.

             हेल्थ टिप्स हर उम्र में जरूरी है दूध


हम बचपन से ही दूध पीने लगते हैं लेकिन बड़े होने पर दूध का सेवन कम होता जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि इसके सेवन से उनके आहार में ज्यादा वसा हो जायेगा। कुछ लोग इसलिए दूध नहीं पीते क्योंकि वह सोचते हैं कि वह अब बड़े हो गये हैं इसलिए उन्हें अब इसकी जरूरत नहीं रही। दूध हमारे आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दूध प्रोटीन,खनिज और विटामिन का पौष्टिक एवं सस्ता स्त्रोत है। बावजूद इसके,दूध को दरकिनार करके सोडा,जूस और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स जैसे अधिक मीठे पेय पदार्थों का सेवन किया जाता है। इससे मोटापा,मधुमेह,हृदय रोग और कैंसर जैसी आहार संबंधी बीमारियां होने का खतरा होता है। अधिक मीठे पेय पदार्थो के स्थान पर पोषक तत्वों से युक्त दूध को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यहां हम आपको बता रहे हैं कि हर उम्र में दूध क्यों जरूरी है?

                          बचपन

बचपन में शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक बच्चों को ज्यादा शक्कर युक्त पेय पदार्थ नहीं बल्कि दूध देना चाहिए। दूध में मौजूद प्रोटीन संतुलित अमीनो एसिड से बनता है जो जैविक रूप से उपलब्ध है। यह आसानी से पच जाता है और शरीर में इसका इस्तेमाल होता है। दूध के कैल्शियम से बच्चे की विकासशील हड्डियों,दांतों और मस्तिष्क के ऊतकों को बढ़ने में मदद मिलती है और यह कोशिकीय स्तर पर उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देता है जो मांसपेशियों एवं तंत्रिका तंत्र की कार्यक्षमता को संचालित करती है। अतिरिक्त पोषण तत्वों से युक्त दूध से विटामिन डी मिलता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण विटामिन है जो हड्डियों की मजबूती के लिए शरीर को कैल्शियम,फास्फोरस को पचाने में मदद करता है,लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है,पाचन और तंत्रिका प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है और प्रतिरोधक क्षमता को सहारा देता है। 11 साल की उम्र तक के बच्चों को रोजाना कम से कम दो बार दूध और डेयरी उत्पाद देने चाहिए।

                       किशोरावस्था

मजबूत हड्डियों के लिए जरूरी किशोरों को भी शुगर युक्त पेय पदार्थो के बजाय दूध देना चाहिए क्योंकि किशोर असाधारण शारीरिक परिवर्तन से गुजरते हैं। उन्हें हार्मोस संबंधी,मांसपेशियों एवं रक्त संचार के अधिकतम विकास के लिए ऊर्जा युक्त पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है। किशोरावस्था ही वह ऐसा समय होता है जब हड्डियां मजबूत होती हैं। ऐसे में दूध बहुत फायदेमंद हो सकता है ताकि जीवन में कभी भी आपकी हड्डियों में कमजोरी नहीं आए तथा ओस्टियोपोरोसिस की समस्या न हो। दूध के आश्र्चयजनक फायदों के मद्देनजर किशोरों को रोजाना तीन या अधिक बार कम वसा वाले दूध उत्पादों का सेवन करना चाहिए।

                      वयस्क अवस्था
इस अवस्था में भी शरीर को कैल्शियम की जरूरत होती है। विटामिन डी और फास्फोरस के बगैर सभी उम्र के वयस्कों के लिये हड्डियों के कमजोर होने का खतरा होता है,इसलिए दूध की आवश्यकता बनी रहती है। ब्रोकोली और पालक के रूप में अन्य कैल्शियम युक्त गैर डेयरी आहार का सेवन करना अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन इनमें से कुछ में ऐसे यौगिक मौजूद होते हैं जिससे कैल्शियम के अवशोषण में बाधा पड़ सकती है। पालक में ऑक्सोलेट अधिक होते हैं जो कैल्शियम अवशोषण में बाधा डालते हैं जबकि ब्रोकोली आदि अन्य सब्जियों में मौजूद कैल्शियम दूध की तरह आसानी से नहीं पचता है।

Information about vitamin B-complex.

Hi..today's I'll share with u regarding vitamin B-complex.

परिचय-
विटामिन बी-काम्पलेक्स शरीर को जीवनी शक्ति देने के लिए अति आवश्यक होता है। इस विटामिन की कमी से शरीर अनेक रोगों का गढ़ बन जाता है। विटामिन-बी के कई विभागों की खोज की जा चुकी है। ये सभी विभाग मिलकर ही विटामिन बी-काम्पलेक्स कहलाते हैं। हालांकि सभी विभाग एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं, लेकिन फिर भी सभी आपस में भिन्नता रखते हैं। विटामिन बी-काम्पलेक्स 120 सेंटीग्रेड तक की गर्मी सहन करने की क्षमता रखता है। उससे अधिक ताप यह सहन नहीं कर पाता और नष्ट हो जाता है। यह विटामिन पानी में घुलनशील है। इसका प्रमुख कार्य स्नायु को स्वस्थ रखना तथा भोजन के पाचन में सक्रिय योगदान देना होता है। भूख को बढ़ाकर यह शरीर को जीवनी शक्ति देता है। ये खाए-पिए हुए पदार्थों को अंग लगाने में सहायता प्रदान करता है। क्षार पदार्थों के संयोग से यह बिना किसी ताप के नष्ट हो जाता है, पर अम्ल के साथ उबाले जाने पर भी नष्ट नहीं होता।

विटामिन-`बी´ काम्पलेक्स की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-

हाथ पैरों की उंगलियों में सनसनाहट होना।
मस्तिष्क की स्नायु में सूजन व दोष होना।
पैर ठण्डे व गीले होना।
सिर के पिछले भाग में स्नायु दोष हो जाना ।
मांसपेशियों का कमजोर होना ।
हाथ-पैरों के जोड़ अकड़ना।
शरीर का वजन घट जाना।
नींद कम आना।
मूत्राशय मसाने में दोष आना ।
महामारी की खराबी होना ।
शरीर पर लाल-चकत्ते निकलना।
दिल कमजोर होना ।
शरीर में सूजन आना ।
सिर चकराना ।
नजर कम हो जाना।
पाचन क्रिया की खराबी होना ।
विटामिन बी-काम्पलेक्स के स्रोत खाद्य पदार्थ-

टमाटर
भूसी दार गेंहू का आटा
अण्डे की जर्दी
हरी पत्तियों के साग
बादाम
अखरोट
बिना पॉलिश किया चावल
पौधों के बीज
सुपारी
नारंगी
अंगूर
दूध
ताजे सेम
ताजे मटर
दाल
जिगर
वनस्पति शाक भाजी
आलू
मेवा
खमीर
मक्की
चना
नारियल
पिस्ता
ताजे फल
कमरकल्ला
दही
पालक
बन्दगोभी
मछली
अण्डे की सफेदी
माल्टा
चावल की भूसी
फलदार सब्जी
विटामिन बी-काम्पलेक्स के प्रमुख विभाग

1.विटामिन बी1  थाईमिन हाइड्राक्लोराइट

(नोट-इसे एन्यूरिन तथा बेरी-बेरी विटामिन भी कहा जाता है।)

2 विटामिन बी2 ( रिबोफ्लेबिन अथवा लैक्टोफ्लेबिन)
इसको विटामिन `जी´ भी कहा जाता है।

3 विटामिन बी3 (पैन्टोथेनिक एसिड)

4 विटामिन बी4 (एमाइनो एसिड)

5 विटामिन बी6 (पायरीडॉक्सीन)

6 विटामिन बी7

7 विटामिन बी12
8 फोलिक एसिड

9 यीस्ट (खमीर)

10 निकोटनिक एसिड

11 नियासिन

12 निकोटिनामाइड

13 पैरा-एमीनो बेन्जोइएक एसिड

14 विटामिन `ए´बायोटिन

15 एडेनिल्कि एसिड

16 कोलीन

Benefits of Pearl millet (bajra)

 Hello friends,
                    Today's I'll share with u some benefit for bajra for bone health.hope you like it.


         बाजरा खाइए, हड्डियों के रोग नहीं होंगे

■ बाजरे की रोटी का स्वाद जितना अच्छा है, उससे अधिक उसमें गुण भी हैं।

■ बाजरे की रोटी खाने वाले को हड्डियों में कैल्शियम की कमी से पैदा होने वाला रोग आस्टियोपोरोसिस और खून की कमी यानी एनीमिया नहीं होता।

■ बाजरा लीवर से संबंधित रोगों को भी कम करता है।

■ गेहूं और चावल के मुकाबले बाजरे में ऊर्जा कई गुना है।

■ बाजरे में भरपूर कैल्शियम होता है जो हड्डियों के लिए रामबाण औषधि है। उधर आयरन भी बाजरे में इतना अधिक होता है कि खून की कमी से होने वाले रोग नहीं हो सकते।

■ खासतौर पर गर्भवती महिलाओं ने कैल्शियम की गोलियां खाने के स्थान पर रोज बाजरे की दो रोटी खाना चाहिए।

■ गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम और आयरन की जगह बाजरे की रोटी और खिचड़ी दी जाती थी। इससे उनके बच्चों को जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक कैल्शियम और आयरन की कमी से होने वाले रोग नहीं होते थे।

■ इतना ही नहीं बाजरे का सेवन करने वाली महिलाओं में प्रसव में असामान्य पीड़ा के मामले भी न के बराबर पाए गए।

■ डाक्टर तो बाजरे के गुणों से इतने प्रभावित है कि इसे अनाजों में वज्र की उपाधि देने में जुट गए हैं।

■ बाजरे का किसी भी रूप में सेवन लाभकारी है।

■ लीवर की सुरक्षा के लिए भी बाजरा खाना लाभकारी है।
■  उच्च रक्तचाप, हृदय की कमजोरी, अस्थमा से ग्रस्त लोगों तथा दूध पिलाने वाली माताओं में दूध की कमी के लिये यह टॉनिक का कार्य करता है।

■ यदि बाजरे का नियमित रूप से सेवन किया जाय तो यह कुपोषण, क्षरण सम्बन्धी रोग और असमय वृद्ध होने की प्रक्रियाओं को दूर करता है।

■ रागी की खपत से शरीर प्राकृतिक रूप से शान्त होता है। यह एंग्जायटी, डिप्रेशन और नींद न आने की बीमारियों में फायदेमन्द होता है। यह माइग्रेन के लिये भी लाभदायक है।

■  इसमें लेसिथिन और मिथियोनिन नामक अमीनो अम्ल होते हैं जो अतिरिक्त वसा को हटा कर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करते हैं।

■ बाजरे में उपस्थित रसायन पाचन की प्रक्रिया को धीमा करते हैं। डायबिटीज़ में यह रक्त में शकर की मात्रा को नियन्त्रित करने में सहायक होता है।

Information about allergies.

               एलर्जी: कारण, लक्षण एवं उपचार

एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे  एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है l

                         एलर्जी  के कारण


 एलर्जी किसी भी पदार्थ से ,मौसम के बदलाव से या आनुवंशिकता जन्य हो  सकती है एलर्जी के कारणों में धूल ,धुआं ,मिटटी पराग कण, पालतू या अन्य जानवरों के संपर्क में आने से ,सौंदर्य प्रशाधनों से ,कीड़े बर्रे आदि के काटने से,खाद्य पदार्थों से एवं कुछ अंग्रेजी दवाओ के उपयोग से एलर्जी हो सकती है सामान्तया एलर्जी नाक ,आँख ,श्वसन  प्रणाली ,त्वचा  व खान पान से सम्बंधित होती है किन्तु कभी कभी पूरे शरीर में एक साथ भी हो सकती है जो की गंभीर हो सकती है l

                   स्थानानुसार  एलर्जी  के  लक्षण


● नाक    की  एलर्जी -नाक  में  खुजली होना ,छीकें आना ,नाक  बहना ,नाक  बंद होना  या  बार  बार जुकाम  होना आदि l

● आँख की एलर्जी -आखों में लालिमा ,पानी आना ,जलन होना ,खुजली आदि l

● श्वसन संस्थान की एलर्जी -इसमें खांसी ,साँस लेने में तकलीफ एवं अस्थमा जैसी गंभीर समस्या हो सकती  है l

● त्वचा की एलर्जी -त्वचा की एलर्जी काफी कॉमन है और बारिश का मौसम त्वचा की एलर्जी के लिए बहुत ज्यादा    मुफीद है त्वचा की एलर्जी में त्वचा पर खुजली होना ,दाने निकलना ,एक्जिमा ,पित्ती  उछलना आदि होता है l

● खान पान से एलर्जी -बहुत से लोगों को खाने पीने  की चीजों जैसे दूध ,अंडे ,मछली ,चॉकलेट  आदि से एलर्जी  होती  है l

● सम्पूर्ण शरीर की एलर्जी -कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में  एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए l
अंग्रेजी दवाओं से एलर्जी-कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का  इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा  दर्द की गोलियां,सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न  कर सकती हैं l

● मधु मक्खी ततैया आदि का काटना –इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की  परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को  इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l
                        एलर्जी  से  बचाव


एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए

■ य़दि आपको एलर्जी है तो सर्वप्रथम ये पता करें की आपको किन किन चीजों से एलर्जी है इसके लिए आप ध्यान  से अपने खान पान और रहन सहन को वाच करेंl

■ घर के आस पास गंदगी ना होने दें  l
घर में अधिक से  अधिक  खुली और ताजा हवा आने का मार्ग  प्रशस्त करें|

■ जिन खाद्य  पदार्थों  से एलर्जी है उन्हें न खाएं l

■ एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l

■ बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा  लगायें l

■ गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l

■ पालतू  जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l

■ ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l

■ घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l

■ धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl

■ नाक की एलर्जी -जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है

■ सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश  खाना भी नासिका एवं साँस की   एलर्जी से बचने में सहायता करता है

■ आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा   में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है

■ जिन्हे  बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची  कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना  त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी  है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l
       

   सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे  तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l

Healthy tips from ayurveda

खाना खाने के तुरंत बाद पानी क्यों नहीं पीना चाहिए?

आयुर्वेद के मुताबिक खाने के बाद पानी पीना हानिकारक होता है। आयुर्वेद के अनुसार भोजन के बाद पानी पीना जहर के समान है। पानी तुरंत पीने से उसका असर पाचन क्रिया पर पड़ता है। हम जो भोजन करते है वह नाभि के बाये हिस्से में स्थित जठराग्नि में जाकर पचता है। जठरआग्नि एक घंटे तक खाना खाने के बाद प्रबल रहती है। आयुर्वेद के मुताबिक जठर की अग्नि से ही खाना पचता है। अगर हम तुरंत पानी पी लेते है तो खाना पचने में काफी दिक्कत होती है। इसलिए आयुर्वेद ने खाने और पानी पीने में यह अंतर रखा है।

पानी पीने से जठराग्नि समाप्त हो जाती है जो कि भोजन के पचने के बाद शरीर को मुख्य ऊर्जा और प्राण प्रदान करती है। इसलिए ऐसा करने से भोजन पचने के बजाय गल जाता है। ऐसा करने से ज्यादा मात्रा में गैस और एसिड बनता है और एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है। महर्षि वाघभट्ट ने 103 रोगों का जिक्र किया है जो भोजन के तुरंत बाद पानी पीने से होते हैं।

खाना खाने के लगभग पौन घंटे या एक घंटे के बाद पानी पीना उचित होता है। इस दौरान जठरआग्नि अपना काम कर चुकी होती है। अगर हम पानी खाने के तुरंत बाद पी लेते है तो वह मंद पड़ जाती है जिससे खाना ठीक से नहीं पचता है। आयुर्वेद में सुबह के वक्त खूब पानी पीना, खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना सेहत के अचूक नुस्खों में से एक है जो दीर्घायु जीवन की आधारशिला रखते है।


चॉकलेट का आनंद लीजिए क्योंकि इसमें छिपे है गुण

इस बात से हर कोई अवगत है कि ज्यादा मात्रा में शर्करा का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लेकिन अगर इसका सेवन संतुलित रूप में किया जाए, तो इसके कई फायदे हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है।

शोध तो यह भी कहता है कि मीठा व्यंजन न सिर्फ प्रौढ़ावस्था आने की गति को धीमा करता है, बल्कि यह सुचारु रक्त संचार को सुनिश्चित करता है और आपको खुशमिजाज रखने में मदद करता है। मिरर डॉट को डॉट यूके के मुताबिक, चॉकलेट में कोकोआ होता है, जिसमें फ्लावानॉल नामक एंटीऑक्सिडेंट होता है, जो रक्त संचार को सुचारु करने में सहायक है। चॉकलेट में जितनी ज्यादा मात्रा में कोकोआ होगा, आपकी सेहत के लिए वह उतना ही फायदेमंद होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, आप जितनी ज्यादा मात्रा में फ्लावानॉल से भरपूर कोकोआ का सेवन करेंगे आपकी मानसिक क्षमता में उतनी ही वृद्धि होगी। त्वचा की सिकुड़न से लड़ने वाले प्रोटीन कोकोआ से भरपूर चॉकलेट में भी पाए जाते हैं।

वैज्ञानिक पत्रिका न्यूट्रीशनल न्यूरोसाइंस के मुताबिक, चॉकलेट आपका मूड बेहतर रखता है और अवसाद के लक्षणों को कम करता है। उच्च कोकोआ युक्त चॉकलेट खाने से न केवल कोलेस्ट्रॉल कम होता है, बल्कि यह रक्तचाप को भी कम करने में सहायक है। अध्ययन में यह बात सामने आई है कि एक चॉकलेट खाने से वजन बढ़ाने वाले भोजन की इच्छा में कमी होती है, जिससे आपका वजन नियंत्रित रहता है।

         

         काम के हैं ये हेल्थ टिप्स

■ अगर आपके बाल ड्राई हैं, तो हफ्ते में एक बार बालों पर गर्म तेल की मसाज व भाप दें। गर्म तेल बालों को ड्राई होने से रोकेगा और उन्हें मुलायम बनाएगा।

■ मेहंदी को कलर आने तक ही बालों पर लगाकर रखें और फिर तुरंत धो दें। मेहंदी जितनी देर बालों में लगी रहती है, उतनी देर बालों की नमी सोखती है।

■ ड्राई बालों पर ब्राशिंग स्कैल्प पर दबाकर करने से तैलीय ग्रंथियां सक्रिय होती है, जिससे बालों की ड्राईनेस कम होती है।

■ गाजर के जूस में शहद व नमक डालकर पीने से आंखों की कम हुई रोशनी लौट आती है।

■ किडनी स्टोन से दूर रहने के लिए नियमित तौर पर तरबूज ड्रिंक का सेवन करें।

■ चुकंदर में आयर्न की मात्रा अधिक होती है। इसके नियमित सेवन से चेहरे पर ग्लो आता है।

■ दिल के रोगियों के लिए करेला ड्रिंक बेहद फायदेमंद है। यह ब्लड को स्वच्छ बनाए रखता है।



Information about Iron

  Google images लाल रक्त कोशिकाओं को खून में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए लोहे की आवश्यकता रहती है। फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों तक ऑक्सी...