Information about yoga


                        योगासनों से परिचय´


योगशास्त्रों में योगासनों की संख्या का वर्णन करते हुए कहा गया है कि योगासन की संख्या इस संसार में मौजूद जीवों की संख्या के बराबर है। भगवान शिव द्वारा रचना किए गए आसनों की संख्या लगभग 84 लाख है। परंतु इन आसनों में से केवल महत्वपूर्ण 84 आसन ही सभी जानते हैं। हठयोग में केवल 84 आसनों को बताया गया है, जो मुख्य है तथा अन्य आसनों को इन्ही 84 आसनों के अन्तर्गत सम्माहित है। इन आसनों में 4 आसन मुख्य है-

■ समासन
■ पदमासन
■ सिद्धासन
■ स्तिकासन

बाकी अन्य दूसरे आसन व्यायामात्मक है। प्रत्येक आसन को अलग-अलग तरह से किया जाता है और इन आसनों के अभ्यास से अलग-अलग लाभ मिलते हैं। आसनों का प्रयोग केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी भी करते हैं। इन आसनों के अभ्यास से सभी को लाभ मिलता है। उदाहरण के लिए- जब बिल्ली सोकर उठती है, तो सबसे पहले चारों पैरो पर खड़े होकर पेट के भाग को ऊंचा करके अपनी पीठ को खींचती है। इस प्रकार से बिल्लियों द्वारा की जाने वाली यह क्रिया एक प्रकार का आसन ही है। इस तरह से कुत्ता भी जब अपने अगले व पिछले पैरों को फैलाकर पूरे शरीर को खींचता है तो यह भी एक प्रकार का आसन ही है। इससे सुस्ती दूर होती है और शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। इस तरह से सभी पशु-पक्षी किसी न किसी रूप में आसन को करके ही स्वस्थ रहते हैं। योगशास्त्रों के बारे में लिखने व पढ़ने वाले अधिकांश योगी पशु-पक्षी आदि से प्रेरित थे। क्योंकि आसनों में अधिकांश आसनों के नाम किसी न किसी पशु या पक्षी के नाम से रखा गए है, जैसे- शलभासन. सर्पासन, मत्स्यासन, मयूरासन, वक्रासन, वृश्चिकासन, हनुमानासन, गरूड़ासन, सिंहासन आदि।

योगासन योगाभ्यास की प्रथम सीढ़ी है। यह शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक करते हैं तथा शरीर को शक्तिशाली बनाकर रोग को दूर करते हैं। इसलिए योगासन का अभ्यास है, जिससे शरीर पुष्ट तथा रोग रहता है। योगासनों का अभ्यास बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं।

योगासन का अभ्यास करने से पहले इसके बारे में बताएं गए आवश्यक निर्देश का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर निर्देशों का पालन करें। षटकर्मों द्वारा शरीर की शुद्धि करने के बाद योगासन का अभ्यास करना विशेष लाभकारी है। यदि षटकर्म करना सम्भव न हो तो षटकर्म क्रिया के अभ्यास के बिना ही इन आसनों का अभ्यास करना लाभदायक है।

कुछ आसनों के साथ प्राणायाम, बन्ध, मुद्रा आदि क्रिया भी की जाती है। योगासनों के अभ्यास के प्रारंभ में उन आसनों का अभ्यास करना चाहिए, जो आसन आसानी से किये जा सकें। इन आसनों में सफलता प्राप्त करने के बाद ही कठिन आसन का अभ्यास करें। किसी भी योगासन को करना कठिन नहीं है। शुरू-शुरू में कठिन आसनों को करने में कठिनाई होती है, परंतु प्रतिदिन इसका अभ्यास करने से यह आसान हो जाता है।

                   योगासन से रोगों का उपचार

विभिन्न रोगों को दूर करने में `योग´ अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। प्राचीन काल से ही योग हमारी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग रहा है। `योग´ शब्द की उत्पत्ति युज धातु से हुई है, जिसका अर्थ जोड़ना, सम्मिलित होना तथा एक होना होता है। ´भगवत गीता´ के अनुसार `समत्व योग उच्यते´ अर्थात जीवन में समता धारण करना योग कहलाता है। योग कर्मसु कौशलम अर्थात कार्यो को कुशलता से सम्पादित करना ही योग है। महर्षि पतंजलि रचित योगसूत्र में सबसे पहले `अष्टांग योग´ की जानकारी मिलती है, जिसका अर्थ है आठ भागों वाला। इस योग के अनुसार `योगिश्चत्तवृत्ति निरोध´ अर्थात मन की चंचलता को रोकना योग माना जाता है।

                   रोगों में योगासन का उपयोग

अनेक प्रकार के रोग-विकार आज की जीवन की सामान्य स्थिति है। समय-असमय, जाने-अंजाने में न खाने योग्य पदार्थों का भी सेवन करना हमारी आदत बन गई है, जो शारीरिक स्वास्थ्य को खराब करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आज के समय में इनसे छुटकारा पाने का एक ही उपाय हैं- योगासन। योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति अपने आहार तथा खान-पान पर विशेष ध्यान देते हैं।

आयुर्वेद और योगासन दोनों के बीच घनिष्ठ सम्बंध है। आयुर्वेद में भोजन और परहेज का पालन करते हुए योगासन का अभ्यास करने से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। योगासन के निरंतर अभ्यास से पहले मनुष्य को शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है और शरीर में उत्पन्न रोगों को दूर करता है। योगासन से शरीर के मुख्य अंग स्वस्थ होते हैं, जैसे- पाचनतंत्र, स्नायुतंत्र, श्वासन तंत्र, रक्त को विभिन्न अंगो में पहुंचाने वाली तंत्र आदि प्रभावित होते हैं। योगासन के अभ्यास से शरीर के सभी अंग स्वस्थ होकर सुचारू ढंग से कार्यो को करने लगते हैं।

           योगासन द्वारा रोगों को दूर करना

योगशास्त्र में विभिन्न रोगों के विकारों को खत्म करने तथा स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए अनेक योगासनों को बताया गया है। जिन अंगों में कोई खराबी होती है, उस रोग से संबन्धित योगासन के निरंतर अभ्यास से रोग दूर हो जाते हैं। योगासनों द्वारा रोगो को खत्म कर शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। यदि योगासनो के अभ्यास के नियमो का पालन करें और खान-पान व परहेजों का पालन कर आसनों का अभ्यास का पालन करें तो विभिन्न प्रकार के रोग दूर होकर शारीरिक स्वास्थ्यता बनी रह सकती है।

Tips for wrinkles

           झुर्रियों से बचाव वा उसका उपचार



झुर्रियां अकसर बढ़ती उम्र में सभी में होती है। विशेषकर ज्यादा गर्मी या ज्यादा सर्दी के दौरान चेहरे पर झुर्रियां यानी बूढी रेखाओं के पड़ने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.लेकिन आज की जीवनशैली में लगातार बदलाव होने के कारण अब असमय भी झुर्रियां होने लगी हैं।

आइए जानें झुरिर्यों से बचाव के घरेलू उपचार जो आपके लिए बहुत ही लाभदायक हो सकते हैं।

* अंडे के सफेद हिस्से से झुर्रियों वाले हिस्से पर मालिश करने से आप जल्दी ही इस परेशानी पर विजय प्राप्त कर लेंगे।

* गुलाबजल को फ्रीजर में जमाकर इसे नियमित रूप से झुर्रियों वाली जगह पर मलें। त्वचा टाइट रहेगी ।

* गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी तरह धोएं फिर उसे खुरदरे तौलिए से रगड-रगड़ कर सुखा लें। आधा चम्मच दुध की ठंडी मलाई में नींबु के रस की चार पाँच बूंदें मिलाकर झुर्रियाँ तब तक मलते रहें जब तक कि मलाई घुलकर त्वचा में समा न जाए।आधा घण्टे बाद पानी से धो डालें परन्तु साबुन का प्रयोग न करें। एक माह तक नियमित इस प्रयोग से झुर्रियाँ दुर होती हैं

* खीरे के रस या फिर खीरे के छोटे-छोटे पीस काटकर झुर्रियों वाली जगह पर लगाकर उसकी मसाज करें।

* हल्दी या चंदन का लेप लगाने से भी झुर्रियों में लाभ मिलता हैं।

* जब झुर्रियां पडती हैं तो त्‍वचा पर गहरे रंग के धब्‍बे दिखाई देने लगते हैं। इसका मतलब कि मृत कोशिकाएं चेहरे को बूढा बना रहीं हैं। इसको दूर करने के लिए चेहरे पर स्‍क्रबिंग करनी चाहिए जिससे डेड सेल्‍स हट जाएं और नई त्‍वचा सामने आ जाए।

* पके हुए पपीते का एक टुकडा काटकर चेहरे पर घिसें या मसलकर चेहरे पर लगाएं। कुछ देर बाद धो लें। ऐसा लगातार करने से चेहरे की झुर्रियाँ दूर होती हैं,व चेहरे की रंगत भी निखरती है।

* त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने के लिए आधा गिलास गाजर का रस नित्य खाली पेट कम से कम 15 दिन तक लें।

* चेहरे की झुर्रियाँ मिटाने और युवा बनाये रखने के लिए अंकुरित चने व मूंग को सुबह शाम अवश्य ही खाएँ।

* सर्दियों में तेल से मसाज कर करके गरम पानी से नहाएं और नहाने के बाद क्रीम से भी मसाज करें। इससे त्‍वचा टाइट रहेगी और रुखी भी नहीं होगी।

* विटामिन सी और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर आहार जैसे की मछली आदि में होते है उसका ज्यादा से ज्यादा सेवन करें इससे त्वचा जवाँ बनी रहती है।

* चेहरे पर कॉफी पाउडर का लेप लगाने से कॉफी पाउडर में मौजूद कैफीन की वजह से चेहरे की झुर्रियां बहुत तेजी से खत्म होती है ।

* झुर्रियों के सफल उपचार के लिए पानी पीना बहुत जरूरी है, दिन में कम से 14 -15 गिलास पानी चाहिए ।

* सुंदर,गोरी और टाइट त्वचा के लिए सप्ताह में 1-2 बार चंदन फेस पैक लगाना चाहिए । चंदन पाउडर का पैक चेहरे पर पड़े गहरे दाग धब्बे , झाइयां और झुर्रियों को जल्दी दूर करता है।

* हर रात को कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें, इससे चेहरे के डार्क सर्किल और आंखें सूजी हुई नजर नहीं आएंगी। कभी भी तकिये में मुंह छिपा कर भी नहीं सोएं क्योंकि इससे भी चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं।

* हमारी त्वचा पर तेज धूप का बहुत कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए धूप में निकलने से पहले त्वचा पर ऐसा सनस्क्रीन, जिसमें जिंक ऑक्साइड हो जरूर लगाएं।

* एलोवेरा एवं शहद एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर हैं। त्वचा में नमी का स्तर बढ़ाने के लिए इन्हे प्रतिदिन आजमाएं इनसे भी झुर्रियां कम होंगी। * उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे शरीर में कोलाजिन बनाना बंद हो जाता है, जिससे त्वचा में लचीलापन कम हो जाता है। इस बचने के लिए नमी वाला साबुन और क्रीम का रोज़ इस्तमाल करें। नित्य विटामिन सी युक्त क्रीम प्रयोग करें और ज्यादातर समय धूप से दूर रहें।

* अपनी त्वचा को झुर्रियों से बचाने के लिए हमें नियमित रूप से ताजे फलों जैसे आम, जामुन, संतरा, मौसम्मी, लीची, सेव, अंगूर, नाशपाती, पपीता, अनार और हरी सब्जियों पालक, बंदगोभी और दिन में कम से कम एक बार सलाद का सेवन करना चाहिए । इनमें ढेर सारे विटामिन्स एवं खनिज मसलन आयरन, विटामिन सी, विटामिन बी, फाइबर इत्यादि होते हैं । जो अत्यंत हीं लाभकारी होते हैं तथा हमारी त्वचा को जवान एवं खुबसूरत बनाये रखते हैं ।

* नियमित व्यायाम करना बहुत जरुरी है। व्यायाम करने से हमारी हर कोशिका को ओक्सिजन एवं रक्त प्राप्त होता है जिससे आपकी त्वचा जवान रहती है तथा झुर्रियां भी दूर रहती है ।

* पेट साफ रखने और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर कर भी आप चेहरे पर झुर्रियां पड़ने से रोक सकते हैं।

* तनाव से यथासंभव बचे । तनाव से हमारे शरीर में एक रसायन कोरटीसोल का स्राव होता है जो हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाता है जिससे झुर्रियां शीघ्र पड़ती है ।

* गुस्सा करने से बचे । गुस्सा करने अथवा तरह तरह से मुंह बनाने से भी चेहरे पर उम्र के पहले हीं झुर्रियां पड़ जाती हैं।

* सिगरेट और शराब दोनों की ही वजह से झुर्रियों बहुत तेजी से पड़ती है । स्मोकिंग से हमारे होठों का रंग काला पड़ जाता है और चेहरे की त्वचा का कोलाजिन भी नष्ट होता है, जिससे चेहरे पर तेजी से झुर्रियां पड़ने लगती हैं।

Some important tips for take food.

                याद रखने योग्य बातें



भोजन करने से पहले और बाद में याद रखने योग्य आवश्यक नियम

जब हम भोजन करते हैं तो हमें भोजन से पूर्व और भोजन के बाद बहुत-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए। इससे हम अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सकते हैं। भोजन करने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें निम्नानुसार हैं-

* प्रातः बिना स्नान किए भोजन नहीं करना चाहिए।

* भोजन करने से पहले हाथ, मुँह और पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए। ऐसा करने से अनेक लाभ होते हैं।

* भोजन करने से पूर्व ईश्वर का स्मरण करना चाहिए और यह प्रार्थना करना चाहिए कि हम जो भो
जन करने जा रहे हैं, वह हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकर हो।

* भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए।

* भोजन को कभी भी ठूँस-ठूँसकर नहीं खाना चाहिए। इससे कई रोग हो सकते हैं। भोजन भरपेट से तीन चौथाई ही करना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वस्थ्य रहने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि भूख से कम भोजन किया जाए।

* भूख लगने पर पानी पीना और प्यास लगने पर भोजन नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है।

* भोजन के बीच में प्यास लगने पर थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए। भोजन के अंत में तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए। भोजन के एक घंटे बाद खूब पानी पीना चाहिए।

* बासी, ठंडा, कच्चा अथवा जला हुआ और दोबारा गर्म किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

* भोजन पच जाने पर ही दूसरी बार भोजन करना चाहिए। प्रातः भोजन के बाद यदि शाम को अजीर्ण मालूम हो, तो उस समय कुछ नर्म भोजन लिया जा सकता है। परंतु रात्रि के भोजन के बाद प्रातः अजीर्ण हो तो बिल्कुल भी भोजन नहीं करना चाहिए।

* दोपहर को भोजन करने के बाद थोड़ा विश्राम करना लाभदायक होता है और रात्रि के भोजन के बाद थोड़ा टहलना हितकर होता है।

* भोजन करने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए। चाहे वह दोपहर का भोजन हो या रात्रि का। भोजन व रात्रि के सोने में कम से कम दो घंटे का अंतर होना चाहिए।

* सर्दी के दिनों में भोजन से पूर्व थोड़ा-सा अदरक व सेंधा नमक खाना चाहिए। इससे पाचन शक्ति बढ़ जाती है।

* भोजन सामग्री में कड़े पदार्थ सबसे पहले, नर्म पदार्थ बीच में और पतले पदार्थ अंत में खाने चाहिए।

* भोजन में दूध, दही एवं छाछ का प्रयोग लाभप्रद होता है। इस सबका सेवन दीर्घजीवी एवं स्वस्थ बनाता है।

* इस बात को हमेशा याद रखें कि भोजन करने के बाद क्रोध नहीं करना चाहिए और न ही भोजन के तुरंत बाद व्यायाम करना चाहिए, इससे स्वास्थ्य को नुकसान होता है।

* रात्रि के भोजन के बाद दूध पीना हितकर है। रात्रि में दूध का सेवन अमृततुल्य माना गया

Benefits of papaya

                             पपीता


पपीता एक ऐसा मधुर फल है जो सस्ता एवं सर्वत्र सुलभ है। यह फल प्राय: बारहों मास पाया जाता है। किन्तु फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर के बीच का समय पपीते की ऋतु मानी जाती है। कच्चे पपीते में विटामिन ‘ए’ तथा पके पपीते में विटामिन ‘सी’ की मात्रा भरपूर पायी जाती है।

आयुर्वेद में पपीता (पपाया) को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बताया गया है। संग्रहणी, आमाजीर्ण, मन्दाग्नि, पाण्डुरोग (पीलिया), प्लीहा वृध्दि, बन्ध्यत्व को दूर करने वाला, हृदय के लिए उपयोगी, रक्त के जमाव में उपयोगी होने के कारण पपीते का महत्व हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक हो जाता है।

पपीते के सेवन से चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, बालों का झड़ना, कब्ज, पेट के कीड़े, वीर्यक्षय, स्कर्वी रोग, बवासीर, चर्मरोग, उच्च रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म आदि अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। पपीते में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन- ए, बी, सी, डी प्रोटीन, कार्बोज, खनिज आदि अनेक तत्व एक साथ हो जाते हैं।

पपीते का बीमारी के अनुसार प्रयोग निम्नानुसार किया जा सकता है।

1) पपीते में ‘कारपेन या कार्पेइन’ नामक एक क्षारीय तत्व होता है जो रक्त चाप को नियंत्रित करता है। इसी कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के रोगी को एक पपीता (कच्चा) नियमित रूप से खाते रहना चाहिए।

2) बवासीर एक अत्यंत ही कष्टदायक रोग है चाहे वह खूनी बवासीर हो या बादी (सूखा) बवासीर। बवासीर के रोगियों को प्रतिदिन एक पका पपीता खाते रहना चाहिए। बवासीर के मस्सों पर कच्चे पपीते के दूध को लगाते रहने से काफी फायदा होता है।

3) पपीता यकृत तथा लिवर को पुष्ट करके उसे बल प्रदान करता है। पीलिया रोग में जबकि यकृत अत्यन्त कमजोर हो जाता है, पपीते का सेवन बहुत लाभदायक होता है। पीलिया के रोगी को प्रतिदिन एक पका पपीता अवश्य खाना चाहिए। इससे तिल्ली को भी लाभ पहुंचाया है तथा पाचन शक्ति भी सुधरती है।

4) महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म एक आम शिकायत होती है। समय से पहले या समय के बाद मासिक आना, अधिक या कम स्राव का आना, दर्द के साथ मासिक का आना आदि से पीड़ित महिलाओं को ढाई सौ ग्राम पका पपीता प्रतिदिन कम से कम एक माह तक अवश्य ही सेवन करना चाहिए। इससे मासिक धर्म से संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती है।

5) जिन प्रसूता को दूध कम बनता हो, उन्हें प्रतिदिन कच्चे पपीते का सेवन करना चाहिए। सब्जी के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है।

6) सौंदर्य वृध्दि के लिए भी पपीते का इस्तेमाल किया जाता है। पपीते को चेहरे पर रगड़ने से चेहरे पर व्याप्त कील मुंहासे, कालिमा व मैल दूर हो जाते हैं तथा एक नया निखार आ जाता है। इसके लगाने से त्वचा कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है। इसके लिए हमेशा पके पपीते का ही प्रयोग करना चाहिए।

7) कब्ज सौ रोगों की जड़ है। अधिकांश लोगों को कब्ज होने की शिकायत होती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे रात्रि भोजन के बाद पपीते का सेवन नियमित रूप से करते रहें। इससे सुबह दस्त साफ होता है तथा कब्ज दूर हो जाता है।

8) समय से पूर्व चेहरे पर झुर्रियां आना बुढ़ापे की निशानी है। अच्छे पके हुए पपीते के गूदे को उबटन की तरह चेहरे पर लगायें। आधा घंटा लगा रहने दें। जब वह सूख जाये तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें तथा मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। ऐसा कम से कम एक माह तक नियमित करें।

9) नए जूते-चप्पल पहनने पर उसकी रगड़ लगने से पैरों में छाले हो जाते हैं। यदि इन पर कच्चे पपीते का रस लगाया जाए तो वे शीघ्र ठीक हो जाते हैं।

10) पपीता वीर्यवर्ध्दक भी है। जिन पुरुषों को वीर्य कम बनता है और वीर्य में शुक्राणु भी कम हों, उन्हें नियमित रूप से पपीते का सेवन करना चाहिए।

11) हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदायक होता है। अगर वे पपीते के पत्तों का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से एक कप की मात्रा में रोज पीते हैं तो अतिशय लाभ होता है।

Information about human body

 Hello friends,
         Today's I'll be share with u some information about human body.    



       मानव शरीर में जानने योग्य बातें



 1. वस्यक व्यक्तियों में अस्थियों की संख्या : → 206

2. खोपड़ी में अस्थियां : → 28

3. कशेरुकाओ की संख्या: → 33

4. पसलियों की संख्या: → 24

5. गर्दन में कशेरुकाएं : → 7

6. श्वसन गति : → 16 बार प्रति मिनिट

7. हृदय गति : → 72 बार प्रति मिनिट

8. दंत सूत्र : → 2:1:2:3

9. रक्तदाव : → 120/80

10. शरीर का तापमान : → 37 डीग्री 98.4 फ़ारेनहाइट

11. लाल रक्त कणिकाओं की आयु : → 120 दिन

12. श्वेत रक्त कणिकाओ की आयु : → 1 से 3 दिन

13. चेहरे की अस्थियां: → 14

14. जत्रुक की संख्या :→ 2

15. हथेली की अस्थियां: → 14

16 पंजे की अस्थियां: → 5

17. ह्दय की दो धड़कनों के बीच का समय : → 0.8 से.

18. एक श्वास में खीची गई वायु : → 500 मि.मी.

19. सुनने की क्षमता : → 20 से १२० डेसीबल

20. कुल दांत : → 32

21. दूध के दांतों की संख्या : → 20

22. अक्ल दाढ निकलने की आयु : → 17 से 25 वर्ष

23. शरीर में अमीनों अम्ल की संख्या : → 22

24. शरीर में तत्वों की संखया : → 24

25. शरीर में रक्त की मात्रा : → 5 से 6 लीटर

(शरीर के भार का 7 प्रतिशत)

26. शरीर में पानी की मात्रा : → 70 प्रतिशत

27. रक्त का PH मान : → 7.4

28. ह्दय का भार : → 300 ग्राम

29. महिलाओं के ह्‌दय का भार → 250 ग्राम

30. रक्त संचारण में लगने वाला समय → 22 से.

31. छोटी आंत की लंबाई → 22 फीट

33. शरीर में पानी की मात्रा → 22 लीटर

34. मष्तिष्क का भार → 1380 ग्राम

35. महिलाओं के मष्तिष्क का भार → 1250 ग्राम

36. गुणसूत्रों की संख्या → 23 जोड़े

37. जीन्स की संख्या → 97 अरब

Benefits of ginger.

                 अदरक के अनोखे गुण

अदरक के अनोखे गुण Ginger हर तरह के इनफेक्शन में काम आती है अदरक के अनोखे गुण Ginger हर तरह के इनफेक्शन में काम आती है

अदरक विश्व औषधि के नाम से जानी जाती है। अदरक शक्ति और स्फूर्ति का भंडार माना जाता है। इसके उपयोग की जानकारी हो तो यह अनमोल है। अदरक के सूखने पर इसे सोंठ कहते हैं, ये दोनों ही रूप में हमारे लिये बलवर्धक है। यह जनाना तथा मर्दाना दोनों के लिये अत्याधिक उपयोगी है।अदरक के गुणों का वर्णन पुरातन चिकित्सा(आयुर्वेदिक चिकित्सा)पद्धति में बखूबी  किया गया है।

■ सर्दी, जुकाम, खांसी, कफ, दमा में अदरक फायदा करता है।

■ अदरक को जो किसी न किसी रूप में सेवन करता है वह हृदय रोग से दूर रहता है।डायबिटीस को कंट्रोल करती है अदरक।

■ अदरक, नींबू, सेंधा नमक मिलाकर खाने से, हमें कैंसर से बचाता है।

■ जुकाम से, नाक बंद हो जाये,टॉन्सिल, बहरापन तथा कान बहने जैसे रोगों में अदरक का सेवन करें। इसी प्रकार अदरक तमाम परेशानियां दूर करती है।

■ अरूचि- यदाकदा भोजन के प्रति अरूचि पैदा हो जाती तो अदरक का रस और  एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार चाटें।

■ उंघना- पूरी नींद लेने के बाद भी काम के दौरान उंघना नींद आना जैसी परेशानी सताये तो सोंठ के चूर्ण के (अदरक का सूखा रूप) एक चुटकी चाय के खौलते पानी में डाल द तथा सर्दी हो या मानसून में सुबह धूप में बैठकर धीरे-धीरे पिये जिससे आलस तथा नींद भाग जायेगी। ये उंघना, नींद शरीर में अम्लता के बढ़ जाने से होती है। यह हर समय नींद आना या उंघना एक बीमारी जैसी है। अदरक माँर्निंग सिकनेस दूर करती है चाय में डालकर पीने से।

■ शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिये - अदरक एक घरेलू औषधि है। सोंठ इसका सूखा रूप है। आजकल अदरक अधिक से अधिक बाजारू खाने पीने की चीजों में इस्तेमाल किया जाता है। अदरक में बहुतायत में पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं जैसे प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, रेशा,। अदरक शरीर को चुस्त व स्वस्थ बनाता है। साथ-साथ स्मरण शक्ति बढ़ाता है। अधिक सर्दी के दिनों में शरीर को उष्मा (गर्मी)देता है,शक्ति बनकर रोगों का निवारण करता है। अदरक आंतो के लिये एक पाचक टॉनिक जैसा है। सोंठ को घी, गुड़ में मिलाकर खाने से नई चेतना व शक्ति मिलती है। वृद्धावस्था में अधिकतर लोगों की पाचन शक्ति मंद पड़ जाती है तो सोंठ का कवाथ लाभकारी होता है। उबलते पानी में एक चम्मच अदरक का रस या सोंठ पावडर डालें कुछ देर उबलने दें अब स्वादानुसार नमक या शहद डाल कर चुस्की ले कर पियें।

■ हिचकी- ताजे अदरक का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसने से हिचकी जाती रहेगी।

■ मुंह में बदबू- अदरक का रस 1 चम्मच गर्म पानी में डालकर कुल्ला करें। मुंह की दुर्गंध जाती रहेगी।

■ लकवा तथा हाथ पैर सुन्न होना- उड़द की दाल पीसकर उसे घी में भूनें इसमें गुड़, सोंठ पीसकर मिला दें। लड्डू बनाये। इसे नित्य एक लड्डू का सेवन करें।
सोंठ पाउडर व उड़द की दाल उबालकर इसका पानी पीने से लकवा ठीक होता है। हाथ पैर सुन्न होने पर एक  गांठ लहसुन की तथा सोंठ पानी के साथ पीस लें जो अंग सुन्न हो रहा हो उस पर इसका लेप करें  तथा बासी मुंह दो कली लहसुन की व जरा सी सोंठ चबायें। यह प्रयोग कम से कम 10-12 दिन तक करें अवश्य आराम मिलेगा।

■ कान का दर्द – ठंडी हवा या कान में मैल जमने से या फिर फुंसी होने से कान में दर्द हो तो अदरक का रस कपड़े से छानकर, गुनगुना कर तीन-चार बूंद कान में डालें 3-4 बार। यदि कान में सांय-सांय कर रहा हो तो थोड़ा-थोड़ा सोंठ, गुड़, घी मिलकर खाने से ठीक हो जायेगा।

■ जोड़ों पर दर्द-अदरक को पीसकर जोड़ों पर लेप करें। दर्द ठीक होगा। 250 ग्राम तिल के तेल में 500 ग्राम अदरक का रस मिलाकर पकाऐं जब सिर्फ तेल रह जाये तो उसे ठंडा कर शीशी में भर लें फिर संधि शोध(जोड़ों के दर्द) पर लगाऐं मालिश करें आराम आयेगा।

                          सावधानी

गर्मी के दिनों में अदरक का प्रयोग अधिक  न करें। अगर जरूरी हो तो बहुत कम मात्रा में करें कारण इसकी तस्वीर गर्म होती है।
रक्त की उल्टी में अदरक का प्रयोग बिल्कुल न करें

Healthy tips for glowing skin

        चमकती हुई त्वचा के लिए हर्बल ब्यूटी टिप्स

                                अंगूर

चेहरे पर चमक लाने के लिए कुछ अंगूर लें तथा उन्हें अपने चेहरे पर रगड़ें। अथवा इन्हें मसलकर पैक के रूप में चेहरे पर लगायें।

    खीरे का रस, ग्लिसरीन और गुलाब जल

ककड़ी का रस, ग्लिसरीन और गुलाब जल का मिश्रण बहुत अधिक प्रभावकारी होता है। धूप में निकलने के पहले तथा धूप से आने के बाद इसे अपने चेहरे पर लगायें।

                      चंदन, हल्दी और दूध

चंदन का पाउडर, हल्दी और दूध को मिलाकर एक पेस्ट बनायें। इसे चेहरे पर लगायें और कुछ मिनिट के लिए छोड़ दें तथा प्राकृतिक चमक और ताजगी पायें।

                       
                       शहद और क्रीम

त्वचा को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए विशेष रूप से ठंड के दिनों में शहद और क्रीम का मिश्रण बहुत प्रभावकारी होता है।

          ताज़ा दूध, नमक और नीबू का रस

ताज़ा दूध, चुटकी भर नमक और थोडा सा नीबू का रस लें। यह मिश्रण आपकी त्वचा को साफ़ करता है और रोम छिद्रों को खोलता है।

                             टमाटर का रस

टमाटर के रस में नीबू का रस मिलाकर लगाने से चेहरा नरम और चमकदार बना रहता है।

    हल्दी पाउडर, गेंहूँ का आटा और तिल का तेल

हल्दी, आटा और तिल के तेल को मिलाकर एक पेस्ट बनायें। चेहरे के अनचाहे बालों से छुटकारा पाने के लिए इसका उपयोग करें।

                 पत्तागोभी का रस और शहद

पत्तागोभी के रस में शहद मिलाकर लगाने से चेहरे पर आने वाले झुर्रियों से बचाव किया जा सकता है।

                            गाजर का रस

चेहरे का रस चेहरे पर लगाने से त्वचा पर प्राकृतिक चमक आती है।

                शहद और दालचीनी का पाउडर

3 भाग शहद और 1 भाग दालचीनी का पाउडर मिलकर पेस्ट बनायें। इसे मुंहासों पर लगायें तथा रात भर ऐसे ही छोड़ दें। यह मुंहासों पर बहुत अधिक प्रभावी देखा गया है तथा इससे दाग भी कम होते हैं।

             मूंगफली का तेल और नीबू का रस

मुंहासों और ब्लैकहैड्स से बचने के लिए मूंगफली के तेल में ताज़ा नीबू का रस मिलकर लगायें।

                         एलो वीरा जूस


प्रभावित स्थान पर एलोवीरा जूस लगाने से पिगमेंटेशन कम होता है तथा त्वचा भी हाईड्रेट होती है।

                            घी और ग्लिसरीन

घी और ग्लिसरीन का मिश्रण एक बहुत अच्छा घरेलू मॉस्चराइज़र है।



मुल्तानी मिट्टी, गुलाब की पंखुड़ियां, नीम, तुलसी और गुलाब जल:

मुल्तानी मिट्टी, गुलाब की पंखुड़ियां, नीम की पत्तियों का चूर्ण, तुलसी की पत्तियों का चूर्ण और थोडा सा गुलाब जल/नीबू का रस मिलाकर लगाने से त्वचा स्वस्थ और चमकदार बनती है।

                             खुबानी और दही


ऐप्रकाट और दही को मिलकर एक पेस्ट बनाये। इससे त्वचा विशिष्ट बनती है तथा एक ताज़ा लुक आता है। यदि आपकी त्वचा शुष्क है तो इसमें थोडा सा शहद मिलाएं।

Tips for increase eye sight.

          आँखों की रौशनी तेज करने के उपाय



ईश्वर की बनायी गयी इस दुनिया को दखने का माध्यम केवल हमारी ऑंखें ही है और इनको उम्र के पड़ाव के साथ देखभाल की भी नितांत आवयकता होती है क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ हमारी आँखों के चारो तरफ क मांसपेशियां ढीली पड़ने लगती है और हमारी आँखें कमजोर हो जाती है। आंखों की रौशनी हमारे आहार और जीवनशैली पर भी निर्भर करती है।

हम यहाँ पर आपको आँखों की देखभाल और उसकी रौशनी बढ़ाने के कुछ आसान से उपाय बता रहे है ।

* सुबह उठकर मुहँ में पानी भरकर आँखें खोलकर साफ पानी के छीटें आँखों में मारने चाहिए इससे आँखों की रौशनी बढ़ती है ।

* प्रातः खाली पेट आधा चम्मच ताजा मक्खन, आधा चम्मच पसी हुई मिश्री और 5 पिसी काली मिर्च मलाकर चाट लें, इसके बाद कच्चे नारीयल की गिरी के 2-3 टुकड़े खूब चबा-चबाकर खाये और ऊपर से थोड़ी सौंफ चबाकर खा लें फिर दो घंटे तक कुछ भी न खाये। यह क्रिया 2-3 माह तक जरूर करिये ।

* बालों पर रंग, हेयर डाई और केमीकल शैम्पू लगाने से परहेज करें ।

* रात को 1 चम्मच त्रिफला मिट्टी के बर्तन में भिगाकर सुबह छाने हुए पानी से आँखें धोयें। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है और कोई बीमारी भी नहीं होती है।

* प्रातःकाल सूर्योदय से पहले नियमित रूप से हरी घास पर 15-20 मिनट तक नंगे पैर टहलना चाहए। घास पर ओस की नमी रहती है नंगे पैर इस पर टहलने से आँख को तनाव से राहत मिलती है।और रौशनी भी बढ़ती है ।

* पैरों के तलवे की सरसों के तेल से नियमित मालिश करनी चाहिए । नहाने से 10 मिनट पूर्व पैरों के अंगूठों को सरसों के तेल से तर करने से आँखों की रौशनी लम्बे समय तक कायम रहती है ।

* पालक, पत्ता गोभी, हरी सब्जियाँ और पीले फल खाएं। विटामिन ए, सी और ई से भरपूर कई पीले फल हमारी आंखों के लिए फायदेमंद हैं। इसके अतिरिक्त पपीता, संतरा, नींबू आदि के सेवन से दिन की रोशनी में हमारे देखने की क्षमता बढ़ती हैं।

* आँखों की रौशनी बढ़ाने के लिए प्रतिदिन 1-2 गाजर खूब चबा-चबाकर खाएँ ।गाजर का रस निकालकर भोजन के घंटे भर बाद पिएँ।

* नियमित रूप से अंगूर खाएं, अंगूर के सेवन से रात में देखने की क्षमता बढ़ती है।

* 2 अखरोट और 3 हरड की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 काली मिर्च को पीसकर उसका अंजन करने से आँखों की रौशनी बढती हे।

* 10 ग्राम छोटी हरी इलाइची , 20 ग्राम सौंफ के मिश्रण को महीन पीस लें। एक चम्मच चूर्ण को दूध के साथ नियमित रूप से पीने से आंखों की ज्योति अवश्य ही बढ़ती है।

* अनार के 5 से 6 पत्ते को पीस कर दिन में 2 बार लेप करने से दुखती आँख में लाभ होता हे और रौशनी भी बढ़ती है ।

* 300 ग्राम सौंफ को अच्छे से साफ करके कांच के बर्तन में रख ले अब बदाम और गाजर के रस से सौंफ को तीन बार भगोएँ जब सुख जाए तो इसे रोज रात दूध के साथ लें इससे भी आँखों की रोशनी बढ़ती है ।

* सूखें आँवले को रात में पानी में अच्छी तरह धोकर भिगो दें फिर दिन में 3 बार इसे रुई से आँखों में डालें और आँवले का ज्यादा ज्यादा किसी ना किसी रूप में अपने खाने / पीने में अवश्य ही प्रयोग करें। 3 माह के अंदर ही चश्मा उतर जायेगा ।

* प्रतिदिन भोजन के साथ 50 से 100 ग्राम मात्रा में पत्तागोभी के पत्तों का सलाद बारीक कतर कर, इन पर पिसा हुआ सेंधा नमक और काली मिर्च डालकर खूब चबा-चबाकर खाएँ।

* आंखों की स्वस्थ्यता के लिए अच्छी नींद जरूरी है, नहीं तो आंखों के नीचे काला घेरा पड़ जाता है और रोशनी भी कम होती है।

* जब आँख भारी होने लगे नींद का समय हो जाए तब जागना उचित नहीं। सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँख पर बुरा प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखे रुखी और बेजान होने लगती है

* लगातार, बिस्तर पर लेट कर और यात्रा के दौरान पढ़ना नहीं चाहिए। पढ़ाई के समय आंखों को पर्याप्त विश्राम दें। अतिरिक्त सूर्य की और भी टकटकी लगाकर नहीं देखना चाहिए।

* आंखों की रोशनी तेज करने के लिए अपनी डाइट में प्याज और लहसुन को जरूर शामिल करें। इनमें सल्फर होता है जो आंखों के लिए ग्लूटाथाइन नामक एंटीऑक्सीडेंट तैयार करता है, जिससे नेत्रों की ज्योति बढ़ती है ।

* सोया व इसके उत्पाद में फैट्स बहुत कम व प्रोटीन बहुत अच्छी मात्रा में होता है। इसमें जरूरी फैटी एसिड, विटामिन ई व कई जरूरी तत्व होते हैं जो आंखों के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। * बालों पर रंग, हेयर डाई और केमीकल वाले शैम्पू नहीं लगाना चाहिए इसका भी बुरा असर हमारी आँखों पर पड़ता है ।

* लगातार टीवी देखने से आंखों की ज्योति घटती है क्योंकि टीवी से निकलने वाली घातक किरणे हमारी आँखों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचती है। कभी भी बहुत पास या बहुत दूर और लेटकर भी टीवी नहीं देखना चाहिए ।

Information about brain stroke ( paralysis).

Brain Stroke – पक्षाघात / लकवा ,Paralysis यानि “मस्तिष्क का दौरा”

ब्रेन स्ट्रोक यानी पक्षाघात बहुत ही गंभीर बीमारी हैं। क्या आप जानते हैं। विश्व में हर 45 सेकन्ड में किसी न किसी को स्ट्रोक हो जाता है एक वर्ष में लगभग 700,000 लोग पक्षाघात से पीडित होते हैं। इतना ही नहीं विश्व में हर तीन मिनट में स्ट्रोक के एक रोगी की मौत हो जाती है और पक्षाघात, ह्रदयघात और कैंसर के बाद मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। क्या आप जानते हैं हमारे देश में 60 वर्ष से ऊपर की उम्र के लोगों में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण स्ट्रोक है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि मेट्रो सिटीज में 50 फीसदी से अधिक लोगों को इस बात की जानकारी नहीं कि आखिर पक्षाघात है क्या। क्या आप जानते हैं पक्षाघात और इसके प्रभाव बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं। इतना ही नहीं पक्षाघात से मौत का जोखिम भी बना रहता है। आइए जानें पक्षाघात और इसके प्रभावों के बारे में कुछ और बातें।



क्या है पक्षाघात / What Stoke or C.V.A. is :

दिमाग के किसी भाग में, खून की नस जाम होने से उस भाग को नुकसान पहुंच सकता है। इसे पक्षाघात कहते हैं। अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुकना या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाना और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आसपास खून भर जाने से स्ट्रोक यानी पक्षाघात होता है मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम होने, अचानक रक्तस्राव होने से मस्तिष्क का दौरा पड़ जाता है यानि पक्षाघात तब लगता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का आभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को “मस्तिष्क का दौरा’’ पड़ गया है।

स्ट्रोक में शरीर के एक हिस्से को लकवा मार जाता है। या एक तरफ के किसी हिस्से को नुकसान पहुंच सकता है। मस्तिष्क में कोई रक्तवाहिका लीक हो जाती है, तब भी स्ट्रोक हो सकता है।
स्ट्रोक को सेरिब्रोवैस्कुलर दुर्घटना या सीवीए के नाम से भी जाना जाता है।
पक्षाघात में आमतौर पर शरीर के एक हिस्से को लकवा अर्धांगघात मार जाता है। सिर्फ़ चेहरे, या एक बांह या एक पैर या शरीर और चेहरे के पूरे एक पहलू में लकवा मार सकता है या दुर्बलता आ सकती है।

इस्चीमिया/ Ischemia यानि स्थानिकारक्तता :
मस्तिष्क में अपर्याप्त रक्त आपूर्ति की स्थिति में मस्तिष्क की कोशिकाओं के लिए आक्सीजन और पोषण का अभाव स्थानिकारक्तता (स्चीमिया) कहा जाता है। स्थानिकारक्तता की वजह से अंततः व्यत्तिक्रम आ जाता है, यानी मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती है और अंततः क्षतिग्रस्त मस्तिष्क में तरल युक्त गुहिका (भग्न या इंफ़ैक्ट) उनकी जगह ले लेती है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के बायें गोलार्द्ध (हेमिस्फीयर) में पक्षघात लगता है उसके दायें अंग मे लकवा मारता है या अर्धांग होता है और जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के दायें हेमिस्फ़ीयर में आघात लगता है उसका बायां अंग अर्धांग का शिकार होता है।

जब मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का ख़तरा पैदा हो जाता है. समय से दवाइयां देकर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को बचाया जा सकता है। शोध कत्ताओं ने पता लगा लिया है कि आघात के शुरू होने के तीन घंटे के भीतर खून के थक्कों को घोलने वाले एजेंट टिश्यू प्लाज़्मिनोजेन एक्टिवेटर (टी-पीए) देकर इन कोशिकाओं में रक्त आपूर्ति बहाल की जा सकती है। शुरुआती हमले के बाद शुरू होने वाली क्षति की लहर को रोकने वाली बहुत-सी न्यूरोप्रोटेक्टव दवाइयों पर परीक्षण चल रहे हैं।



मस्तिष्काघात को हमेशा से लाइवाज समझा जाता रहा है। इस नियतिवाद के साथ एक और धारणा जुड़ी थी कि मस्तिष्काघात सिर्फ़ उमरदराज़ लोगों को होता है इसलिए चिंता का विषय नहीं है।

इन भ्रांतियों का ही नतीजा है कि मस्तिष्काघात के औसत मरीज बारह घंटे के इंतज़ार के बाद आपात चिकित्सा कक्ष में पहुंचते हैं। स्वास्थ्य रक्षा सेवाओं के प्रदाता आपात चिकत्सकीय स्थिति मान कर पक्षाघात का इलाज करने के बजाय “सतकर्तापूर्ण प्रतीक्षा’’ का रवैया अख़्तियार करते हैं।

“मस्तिष्क का आघात’’ जैसे शब्द के इस्तेमाल के साथ पक्षाघात को एक निश्चयात्मक-विवरणात्मक नाम मिल गया है। पक्षाघात के शिकार व्यक्ति और चिकित्सकीय समुदाय दोनों की तरफ़ से आपात कार्रवाई मस्तिष्क के दौरे का उपयुक्त जवाब है। जनता का पक्षाघात को मस्तिष्क के दौरे के रूप में लेने और आपात चिकित्सा का सहारा लेने की शिक्षा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पक्षाघात के लक्षण दिखने शुरू होने के क्षण से आपात संपर्क के क्षण तक बीतने वाला हर पल चिकित्सकीय हस्तक्षेप की सीमित संभावना को कम करता जाता है।

क्यों होता है पक्षाघात :

■ उच्च रक्तचाप के 30 से 50 आयुवर्ग के रोगियों को स्ट्रोक का जोखिम रहता है।
■ डॉयबिटीज/ मधुमेह के रोगियों में स्ट्रोक का जोखिम 2-3 गुना अधिक रहता है।
 ■ ब्लड प्रेशर, शुगर, हृदय रोग जैसी समस्याओं के कारण।
■ स्मोंकिग, जंक फूड, ज्यादा तैलीय भोजन का आदी होना।
■ मस्तिष्क की किसी धमनी के संकीर्ण या अवरुद्ध होने के कारण।
■ अधिक ठंडे मौसम में बढ़ा हुआ कॉलेस्टॉ्ल या उच्च रक्त कॉलेस्ट्रोल स्तर।
■ पौष्टिक आहार न लेना।
■ अधिक मोटापा।
■ शराब, सिगरेट और तंबाकु का सेवन अधिक करना।
■ नशीली दवाइयों का सेवन।
■ शारीरिक सक्रियता न होना।
■ आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां।
■ रक्त संचार तंत्र के विकार।
■ अचानक अज्ञात कारण से गंभीर सिरदर्द।



पक्षाघात के प्रभाव / Effects of Stroke or C.V.A. :

पक्षाघात के कारण दीर्घकालीन विकलांगता हो सकती है। या फिर हाथ-पांव काम करना बंद कर सकते है।
स्ट्रोक 20 वर्ष में सिकल सेल एनीमिया से पीडित लोगों की मौत का कारण बनता है।
15 से 59 आयुवर्ग में मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण है।
रोगी को देखने, बात करने या बातों को समझने यहां तक की खाना निगलने में भी परेशानी होने लगती हैं।
यदि रोगी की पक्षाघात के दौरान ब्रेन का बहुत बड़ा भाग प्रभावित हुआ है तो श्वास संबंधी समस्याएं भी आ सकती है। या फिर बेहोशी छाने लगती है।
पक्षाघात के कारण अंधता होने का खतरा भी बढ़ जाता है।



                    पक्षाघात के लक्षण

 आकस्मिक स्तब्धता या कमज़ोरी ख़ासतौर से शरीर के एक हिस्से में; आकस्मिक उलझन या बोलने, किसी की कही बात समझने, एक या दोनों आंखों से देखने में आकस्मिक तकलीफ़, अचानक या सामंजस्य का अभाव, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक सरदर्द या चक्कर आना। चक्कर आने या सरदर्द होने के दूसरे कारणों की पड़ताल के क्रम में भी पक्षाघात का निदान हो सकता। ये लक्षण संकेत देते हैं कि पक्षाघात हो गया है और तत्काल चिकित्सकीय देखभाल की ज़रूरत है। जोख़िम के कारक उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डाइबिटीज़ और धूम्रपान पक्षाघात का जोख़िम पैदा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। इनके अलावा अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, उच्च रक्त कॉलेस्टेराल स्तर, नशीली दवाइयों का सेवन, आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां, विशेषकर रक्त परिसंचारी तंत्र के विकार।

         शीध्र स्वास्थ्य लाभ/Quick Recovery

इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि मस्तिष्क पक्षाघात या मस्तिष्क के दौरे से होने वाली क्षति की भरपाई कर लेता है। मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं मरी नहीं होती बल्कि क्षतिग्रस्त हुई रहती हैं और फिर से काम करना शुरू कर सकती हैं। कुछ मामलों में मस्तिष्क खुद ही अपने काम-काज का पुनर्संयोजन कर सकता है। कभी-कभार मस्तिष्क का कोई हिस्सा क्षतिग्रस्त हिस्से का काम संभाल लेता है। पक्षाघात के पर्यवेक्षक कई बार उल्लेखनीय और अनपेक्षित स्वास्थ्य लाभ होते देखते हैं जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती।

     स्वास्थ्य लाभ के सामान्य सिद्धांत दर्शाते हैं

पक्षाघात के 10 प्रतिशत उत्तरजीवी लगभग पूरी तरह चंगे हो जाते हैं, 25 प्रतिशत कुछ मामूली विकृति के साथ चंगे हो जाते हैं, 40 प्रतिशत हल्की से लेकर गंभीर विकलांगता के शिकार हो जाते हैं और उन्हें विशेष देख-रेख की ज़रूरत पड़ती है, 10 प्रतिशत की नर्सिंगहोम में, या दीर्घकालिक देख-रेख करने वाली दूसरी सुविधाओं में रख कर उनकी देख-भाल करनी होती है, 15 प्रतिशत पक्षघात के कुछ ही समय बाद मर जाते हैं।

              पुनर्वास / Rehabilitation

पुनर्वास पक्षाघात लगने के तुरंत बाद जितनी जल्दी संभव होता है, अस्पताल में ही शुरू हो जाता है। ऐसे मरीजों का पुर्नवास पक्षाघात के दो दिन बाद शुरू होता है जिनकी हालत स्थिर होती है। और अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी ज़रूरत के लिहाज़ से उसे जारी रखा जाना चाहिए। पुनर्वास के विकल्पों में किसी अस्पताल की पुनर्वास इकाई, कोई सबएक्यूट केयर यूनिट, कोई पुनर्वास अस्पताल, घरेलू चिकित्सा, अस्पताल के बहिरंग विभाग में देख-रेख, किसी नर्सिंग फैसिलिटी में लंबे समय तक परिचर्या शामिल हो सकती है।

पुनर्वास का मकसद क्रिया-कलापों में सुधार लाना होता है ताकि पक्षाघात का उत्तरजीवी जहां तक संभव हो स्वतंत्र रह सके। पक्षाघात के उत्तरजीवी को फिर खाना खाने, कपड़े पहनने और चलने जैसे मौलिक काम सिखाने का काम इस तरह किया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति की मानवीय गरिमा अक्षुण्ण रहे। हालांकि पक्षाघात शरीर का रोग है लेकिन वह व्यक्ति के पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। पक्षाघात जन्य विकलांगताओं में लकवा, संज्ञानात्मक कमियां, बोलने में परेशानी, भावानात्मक परेशानियां, दैन्य दिन जीवन की समस्याएं और दर्द शामिल होता है।

पक्षाघात सोचने, समझने, एकाग्रतास सीखने, फैसले लेने, और याददाश्त की समस्या पैदा कर सकता है। पक्षाघात का मरीज अपने परिवेश से अनजान हो सकता/सकती है या पक्षाघात जन्य मानसिक कमी से भी अनजान हो सकता/सकती है।

पक्षाघात पीड़ितों को प्रायः किसी की कही बात समझने या अपनी बात कहने में भी परेशानी हो सकती है। भाषा संबंधी समस्याएं प्रायः मस्तिष्क के बायें टेंपोरल और पेरिएटल खंडों को पक्षाघात से लगे जरब का नतीज़ा होती हैं।

पक्षाघात भावनात्मक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। पक्षाघात के मरीज़ों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में परेशानी होती है या वे ख़ास स्थितियों में अनुचित भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं। बहुत-से पक्षाघात पीड़ितों में होने वाली एक आम विकलांगता है अवसाद…… पक्षाघात की घटना से उत्पन्न आम उदासी से कहीं ज़्यादा पक्षाघात के मरीज दर्द सहते हैं। कष्टकर अवसन्नता या अजीब-सी अनुभूति का अनुभव कर सकते हैं। ये अनुभूतियां मस्तिष्क के संवेदी हिस्सों को पहुंची क्षति, जोड़ों की जकड़न या हाथ-पैरों की विकलांगता-जैसे बहुत-से कारकों का नतीजा हो सकती हैं।

उपचार

स्ट्रोक के लिये एक दवा उपलब्ध है, जिसे टी पी ए (tPA or tissue plasminogen activator) कहते हैं। लेकिन यह दवा सभी जगह उपलब्ध नहीं होता है, और यह पहले कुछ घंटे में ही काम करता है।

नई इंडोवैस्कुलर तकनीक से मिनटों में ब्रेन स्ट्रोक का इलाज :

इंडोवैस्कुलर एंजियोप्लास्टी की मदद से चीर-फाड़ अथवा सर्जरी के बगैर ही अब मस्तिष्क के स्ट्रोक का इलाज होने लगा है और इस तकनीक की मदद से इलाज के दो घंटे के भीतर मरीज चलने-फिरने में समर्थ हो सकता है।

दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरो इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ हर्ष रस्तोगी ने इस तकनीक की मदद से चलने-फिरने में असमर्थ 65 साल के लकवे के मरीज का इलाज किया। अब तक वह इस तकनीक से दस मरीजों का इलाज कर चुके हैं। इस समय जो तकनीक अपनाई जा रही है उसमें मरीज को इलाज की प्रक्रिया के दौरान भारी दर्द एवं दिक्कत से गुजरना पड़ता है व मरीज दर्द के कारण दूसरे दिन की सुबह तक बिस्तर से उठ नहीं सकता है जबकि इस नई तकनीक की मदद से इलाज करने पर मरीज को कोई दर्द नहीं होता और वह डेढ़-दो घंटे के भीतर चलने-फिरने लगता है।
इस तकनीक में खास बात विशेष क्लोजर डिवाइस का इस्तेमाल है जिसके कारण मरीज को कोई दिक्कत नहीं होती है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक की मदद से इलाज करने के लिए मरीज की जांघ में एक अत्यंत छोटा चीरा लगाया जाता है और उस चीरे के जरिये अत्यंत पतली तार के जरिये मस्तिष्क में प्रभावित हिस्से तक पहुंच कर वहां जमा रक्त के थक्के को दूर कर दिया जाता है। क्लोजर डिवाइस डेढ़ मिनट बाद ही चीरे को बंद कर देता है। जबकि पहले चीरे की जगह पर आधा से एक घंटे तक जोर से दबाये रखना पड़ता था जो मरीज के लिए न केवल कष्टदायक था बल्कि इसमें रक्त की नली में थक्का बनने या अवरोध उत्पन्न होने का खतरा रहता था।

Easy tips for stay young.

           क्‍या आप हमेशा यंग दिखना चाहते हैं?

1. एंटी-ऑक्सीडेंट:- एंटी-ऑक्सीडेंट से हमारे शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाएं, सही हो जाती है और हमारी त्वचा में निखार आ जाता है। आप चाहें तो एंटी-ऑक्सीडेंट युक्त दवाईयां या क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं।

2. धूप से बचें:- हमेशा यंग दिखने के लिए त्वचा का यंग होना जरूरी है। इसलिए कड़ी धूप में निकलने से बचें। धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन लगा लें। इससे चेहरे पर दाग, झुर्रियां आदि दूर हो जाते हैं।

3. मृत त्वचा हटाएं:- शरीर मे मृत त्वचा को समय-समय पर स्क्रब करके निकालते रहें। अपने हाथों, पैरों और चेहरे पर महीने में दो से तीन बार स्क्रब करवाएं। इससे त्वचा में अंदर से निखार आएगा।

4. मॉश्चराइजर :- नियमित रूप से नहाने के बाद मॉश्चराइजर लगाएं। इससे त्वचा का रूखापन दूर हो जाएगा और स्कीन में ग्लो आएगा।

5. हेयरस्टाइल:- बालों को बनाने का तरीका लेटेस्ट और डीसेंट रखें। इससे आप यंग दिखेगें और आपको खुद में भी यूथ एनर्जी फील होगी।

6. पानी पिएं:- दिन में कम से कम 7 गिलास पानी पिएं। इससे शरीर में डिहाईड्रेशन नहीं होगा और आप ज्यादा यंग लगेंगे।

7. भरपूर नींद लें:- कम से कम 7 घंटे की भरपूर नींद लेनी चाहिए। इससे आपके शरीर को स्फूर्ति मिलेगी और आप खुद में ताजगी का एहसास पाएंगे।

8. नियमित व्यायाम:- हमेशा युवा रहने का एक ही फंडा है - व्यायाम। अगर आप नियमित रूप से व्यायाम करते है तो आपके शरीर में लचक बनी रहेगी और आप स्वस्थ रहेगें।

9. एंटी-एजिंग फूड:- अंडे और फिश जैसे फूड, एंटी-एजिंग फूड कहलाते है जिनमें प्रोटीन और विटामिन भरपूर मात्रा में होते हैं। ये आपकी त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते है और उसमें चमक लाते हैं। वैसे आप बेरी, चेरी, टमाटर, लहसुन आदि का सेवन भी कर सकते हैं।

10. त्वचा की देखभाल:- यंग दिखने के लिए त्वचा की देखभाल करना आवश्यक होता है। विटामिन लेने से ये आसानी से संभव होता है। हर दिन कम से कम 20 मिनट के लिए एलोवेरा लगाएं। खीरे के जूस से भी लाभ मिलता है।

11. लाइफस्टाइल बदलें:- यंग दिखने के लिए यंगर्स जैसी लाइफस्टाइल भी रखें। हमेशा फ्रेश फील करें और खुश रहें।

Home remedies for grey hair

        सफ़ेद बालों के लिए घरेलू उपचार


1. आंवला- समयपूर्व सफ़ेद होने वाले बालों के लिए आंवला एक उत्कृष्ट उपचार है। आंवले के कुछ टुकड़ों को नारियल के तेल में तब तक उबालें जब तक यह काला न हो जाए तथा बालों में इस तेल से मालिश करें। इस प्रकार आप प्राकृतिक रूप से बालों को सफ़ेद होने से रोक सकते हैं।

2. अदरक- किसी हुई अदरक तथा एक चम्मच शहद प्रतिदिन लेने से बालों को सफ़ेद होने से रोका जा सकता है।

3. नारियल का तेल- त्वचा की कई समस्याओं के लिए बेहतर उपचार समझा जाने वाला नारियल का तेल भी बालों को सफ़ेद होने से रोकता है। काले और चमकते हुए बाल प्राप्त कर के लिए नारियल के तेल में नीबू का रस मिलायें तथा इस मिश्रण से सिर की त्वचा की मालिश करें।

4. घी- सप्ताह में दो बार घी से सिर की त्वचा की मालिश करने से भी बालों की सफ़ेद होने की समस्या दूर होती है।

5. कड़ी पत्ता- कड़ी पत्ते को नारियल के तेल में तब तक उबालें जब तक ये काले न हो जाएँ। इसे अपने सिर की त्वचा पर टॉनिक की तरह लगायें। यह बाल गिरने की समस्या और बालों की रंजकता की समस्या के लिए एक उपचार की तरह है। कड़ी पत्ते को दही या छाछ के साथ भी उपयोग में लाया जा सकता है।

6. हिना- 2 चम्मच हिना पाउडर, 1 चम्मच मेथी दाने का पेस्ट, 2 चम्मच तुलसी के पत्तों का पेस्ट, 3 चम्मच कॉफ़ी, 3 चम्मच पुदीने का रस और एक चम्मच दही का मिश्रण बालों को सफ़ेद होने से रोकने में बहुत प्रभावकारी है। अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए इस मिश्रण को नियमित तौर पर लगायें। प्राकृतिक डार्क ब्राउन रंग के लिए हिना को नारियक तेल के साथ मिलाकर भी लगाया जा सकता है।

7. तोरई- तोरई को नारियल के तेल में तब तक उबालें जब तक ये काली न हो जाएँ, लगभग 3 - 4 घंटे तक। इस तेल से सिर की त्वचा की मालिश करने से बालों को समय पूर्व सफ़ेद होने से रोका जा सकता है।

8. ब्लैक टी- एक कप स्ट्रांग काली चाय लें तथा उसमें एक चम्मच नमक मिलाएं। इससे अपने सिर की त्वचा की मालिश करें तथा एक घंटे बाद धो डालें। सफ़ेद बालों की समस्या को दूर करने के लिए इस उपचार का नियमित तौर पर उपयोग करें।

9. प्याज़- प्याज़ का रस बालों को समय पूर्व सफ़ेद होने से रोकता है तथा साथ साथ बाल झड़ने और गंजेपन की समस्या से भी लड़ने में सहायक होता है।

10. काली मिर्च- 1 ग्राम काली मिर्च और ½ कप दही के मिश्रण से सिर की त्वचा की मालिश करने से भी सफ़ेद बालों की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। इस मिश्रण में नीबू का रस भी मिलाया जा सकता है।

11. कैमोमाइल- कैमोमाइल पावडर को 20 मिनिट तक पानी में उबालें तथा ठंडा होने पर इसे छान लें। सफ़ेद बालों के लिए नियमित तौर पर इस काढ़े का उपयोग करें।

12. मेहंदी- एक कप पानी में कपूर और मेहंदी के पत्ते बराबर मात्रा में लें। इन्हें भिगोयें और छान लें तथा इस तरल पदार्थ का उपयोग बालों को कलर करने के लिए करें। रोज़मेरी तेल सीधे बालों पर भी लगाया जा सकता है।

13. बादाम का तेल- बादाम का तेल, नीबू का रस तथा आंवले का रस बराबर मात्रा में मिलाएं। सफ़ेद बालों की समस्या से बचने के लिए इस मिश्रण का उपयोग करें।

14. शिकाकाई- शिकाकाई की तीन चार फल्ली तथा 10-12 रीठे को एक जग पानी में रात भर भिगोकर रखें। इसे उबालें तथा एक बोतल में भरकर रखें तथा इसका उपयोग प्राकृतिक शैम्पू की तरह करें। आंवले के कुछ टुकड़े अलग से भिगोकर रखें तथा फिर इसे उबालें और इसका उपयोग कंडीशनर की तरह करें। यह उपचार बालों की अनेक समस्याओं जैसे बालों का सफ़ेद होना, रूखापन, बालों का पतला होना और बाल झड़ना आदि को दूर करने में सहायक होता है।

15. अमरुद की पत्तियां- अमरुद की पत्तियां भी सफ़ेद बालों को काला बनाने में सहायक होती हैं। अमरुद की कुछ पत्तियों को पीसें तथा नियमित तौर पर इसे अपने सिर की त्वचा पर लगायें।

16. चौलाई- बालों के रंग को प्राकृतिक बनाये रखने के लिए ताजी चौलाई का रस लगायें। यह एक बहुत उपयोगी घरेलू उपचार है।

17. एलो वीरा जेल- समय पूर्व बालों के सफ़ेद होने की समस्या को दूर करने के लिए उपचार हेतु एलो वीरा जेल का उपयोग करें।

18. सरसों का तेल- 250 ग्राम सरसों का तेल लें तथा इसमें 60 ग्राम हिना मिलाकर तब तक उबालें जब तक कि ये सरसों के तेल में पूरी तरह जल न जाए। काले और चमकदार बालों के लिए इस मिश्रण को अपने बालों में लगायें।

19. अश्वगंधा- सफ़ेद बालों के उपचार के लिए अश्वगंधा या इंडियन जिनसेंग को सिर की त्वचा पर लगायें। यह बालों के मेलेनिन घटक को बढ़ाने में सहायक होता है।

20. लिगुस्ट्राम- लिगुस्ट्राम वुल्गारे या वाइल्ड प्रिवेट एक चायनीज़ जडी बूटी है जो बालों का प्राकृतिक रंग वापस लाने में उपयोगी है।

21. बायोटिन- ऐसे खाद्य पदार्थ खाएं जिनमें बायोटिन प्रचुर मात्रा में हो क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से बालों को सफ़ेद होने से रोकता है। अंडे की ज़र्दी, टमाटर, यीस्ट, सोयाबीन, अखरोट, गाजर, गाय का दूध, बकरी का दूध, ककड़ी, ओट्स और बादाम में बायोटिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

22.भृंगराज- मोटे, काले और चमकदार बालों के लिए भृंगराज का उपयोग तेल के रूप में किया जा सकता है या इसे खाया भी जा सकता है।

23. लौकी का रस- बालों को समय पूर्व सफ़ेद होने से रोकने के लिए लौकी के रस में ऑलिव ऑइल (जैतून का तेल) या तिल का तेल मिलाएं तथा इस मिश्रण को सिर में लगायें।

24. लौंग का तेल- सफ़ेद बालों की समस्या से निपटने के लिए लौंग का तेल भी अच्छा विकल्प है।

25. नीम का तेल- नीम का तेल भी बालों को सफ़ेद होने से रोकता है। नीम में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो बालों की एनी समस्याओं को भी दूर करते हैं।

25. काले अखरोट- काले अखरोट के बाहरी छिलके का उपयोग बालों को रंग करने के लिए किया जा सकता है। काले अखरोट और पानी को मिलकर एक काढ़ा बनायें तथा लगभग 30 मिनिट तक इसे अपने बालों पर लगा रहने दें जिससे आपके सफ़ेद बालों पर रंग चढ़ जाए।

26. अर्निका ऑइल- समय पूर्व सफ़ेद होने वाले बालों को रोकने के लिए अर्निका हेयर ऑइल लगायें। यह अर्निका के सूखे हुए फूलों से बना होता है जिसमें प्रज्वलनशील गुण होते हैं जो समय पूर्व सफ़ेद होने वाले बालों की समस्या को तथा बाल झड़ने की समस्या को दूर करते हैं।

27. ब्राह्मी हेयर ऑइल- ब्राह्मी हेयर ऑइल की मालिश करने से बालों की रंजकता, दो मुहें बालों की समस्या और गंजेपन की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

28. आम का बीज- आम के बीज के चूर्ण को गूस्बेरी के चूर्ण के साथ मिलाएं तथा इसे बालों में लगायें। सफ़ेद बालों के लिए यह भी एक प्रभावी उपचार है।

 29. गाजर का रस- सफ़ेद बालों की समस्या से निपटने के लिए प्रतिदिन एक गिलास गाजर का रस पीयें।

Importance of magnesium in our diet for good health


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मानव-शरीर की प्रत्येक कोशिका में मैग्नीशियम का एक भाग होता है, चाहे वह थोड़ा ही हो। सम्पूर्ण शरीर में मैग्नीशियम 50 ग्राम से कम होता है। शरीर के अन्दर कैल्शियम और विटामिन `सी´ का संचालन करने, स्नायुओं और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्यशीलता के लिए और एन्जाइमों को सक्रिय बनाने के लिए मैग्नीशियम आवश्यक है। कैल्शियम-मैग्नीशियम संतुलन में अस्तव्यस्तता से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है। फ्रांस में मिट्टी में मैग्नीशियम का अंश कम होने का सम्बंध कैंसर की बहुलता से जोड़ा जाता है। कोपेनहैगन के एक अध्यक्ष जिनको हृदय का दौरा पड़ा था उनमें मैग्नीशियम के स्तर कम पाये गये थे। मैग्नीशियम के निम्न स्तरों और उच्च रक्तचाप में स्पष्ट सह-सम्बंध स्थापित किया गया है। निम्न मैग्नीशियम स्तर से मधुमेह भी हो सकता है।

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यूरोलोजी की रिर्पोट के अनुसार मैग्नीशियम और विटामिन बी 6 गुर्दे और गाल-ब्लेडर की पथरी के खतरे को कम करने में प्रभावी थे। कठोर दैहिक व्यायाम शरीर के मैग्नीशियम की सुरक्षित निधि को खत्म कर देते हैं और संकुचन को कमजोर कर देते हैं। जो लोग नियमित व्यायाम करते हैं उन्हें सामान्य लोगों की तुलना में अधिक मैग्नीशियम सम्पूरकों की आवश्यकता होती है। एक गिलास कठोर जल मैग्नीशियम के लिए खाद्य-सम्पूरक है। कठोर जल में उच्च मैग्नीशियम का अंश होता है। कठोर जल का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में दिल के दौरे वाले रोगी कम से कम होते हैं। इसके अन्य महत्वपूर्ण स्रोत हैं- सम्पूर्ण अनाज, दालें, गिरीदार फल, हरी पत्तीदार सब्जियां, डेरी उत्पाद और समुद्र से प्राप्त होने वाले आहार।



                         


Benefits of aloe Vera juice

                 एलोवेरा के जूस के फायदे


एलोवेरा एक औषधीय पौधा है और यह भारत में प्राचीनकाल से ग्वारपाठा या धृतकुमारी नाम से जाना जाता है। यह कांटेदार पत्तियों वाला पौधा है जिसमें रोग निवारण के गुण भरे हैं। औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी भी कहा जाता है। इसे साइलेंट हीलर तथा चमत्कारी औषधि भी कहा जाता है।

इसकी 200 से ज्यादा प्रजातियां हैं लेकिन इनमें से 5 प्रजातियां हीं हमारे स्वास्‍थ्‍य के लिए लाभकारी हैं। रामायण, बाइबिल और वेदों में भी इस पौधे के गुणों की चर्चा की गई है। एलोवेरा का जूस पीने से कई वीमारियों का निदान हो जाता है। आयुर्वेदिक पद्धति के मु‍ताबिक इसके सेवन से वायुजनित रोग, पेट के रोग, जोडों के दर्द, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं। इसके अलावा एलोवेरा को रक्त शोधक, पाचन क्रिया के लिए काफी गुणकारी माना जाता है।


                   एलोवेरा जूस के फायदे

★ एलोवेरा में 18 धातु, 15 एमिनो एसिड और 12 विटामिन मौजूद होते हैं जो खून की कमी को दूर कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं।

★ एलोवेरा के कांटेदार पत्तियों को छीलकर रस निकाला जाता है। 3 से 4 चम्मदच रस सुबह खाली पेट लेने से दिन-भर शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति बनी रहती है।

★ एलोवेरा का जूस पीने से कब्ज की बीमारी से फायदा मिलता है।

★ एलोवेरा का जूस मेहंदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार व स्वस्‍थ्‍य होते हैं।

★ एलोवेरा का जूस पीने से शरीर में शुगर का स्तर उचित रूप से बना रहता है।

★ एलोवेरा का जूस बवासीर, डायबिटीज, गर्भाशय के रोग व पेट के विकारों को दूर करता है।

★ एलोवेरा का जूस पीने से त्वचा की खराबी, मुहांसे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्‍वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों, आखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है।

★ एलोवेरा का जूस पीने से मच्छर काटने पर फैलने वाले इन्फेक्शन को कम किया जा सकता है।

★ एलोवेरा का जूस ब्लड को प्यूरीफाई करता है साथ ही हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है।
शरीर में वहाईट ब्लड सेल्स की संख्या को बढाता है।

★ एलोवेरा का जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है जिससे त्वचा स्‍वस्‍थ्‍य दिखती है। यह स्किन के कोलाजन और लचीलेपन को बढाकर स्किन को जवान और खूबसूरत बनाता है।

★ एलोवेरा के जूस का नियमित रूप से सेवन करने से त्वचा  भीतर से खूबसूरत बनती है और बढती उम्र से त्वचा पर होने वाले कुप्रभाव भी कम होते हैं।

★ एलोवेरा के जूस का हर रोज सेवन करने से शरीर के जोडों के दर्द को कम किया जा सकता है।

★ एलोवेरा को सौंदर्य निखार के लिए हर्बल कॉस्मेटिक प्रोडक्ट जैसे एलोवेरा जैल, बॉडी लोशन, हेयर जैल, स्किन जैल, शैंपू, साबुन, फेशियल फोम आदि में प्रयोग किया जा रहा है।

Benefits of tomato.

                       लाल टमाटर

टमाटर में संतृप्त वसा, कोलेस्ट्रॉल, कैलोरी और सोडियम स्वाभाविक रूप से कम होता है। टमाटर थियमिन, नियासिन, विटामिन बी -6, मैग्नीशियम, फास्फोरस और तांबा, भी प्रदान करता है, जो सभी अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। उन सबके ऊपर एक चम्‍मच टमाटर आपको देगा 2 ग्राम फाइबर, जो दिन भर में जितना फाइबर चाहिये उसका 7 प्रतिशत होगा। जो टमाटर में अपेक्षाकृत उच्च पानी भी होता है, जो उन्हें गरिष्ठ भोजन बनाता है।

सामान्यत: टमाटर सहित अधिक सब्जियां और फल खाने से उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, स्ट्रोक, और हृदय रोग से सुरक्षा मिलती है। आइये देखें, कि टमाटर को एक उत्कृष्ट स्वस्थ विकल्प कौन बनाता है।

स्वस्थ त्वचा टमाटर आपकी त्वचा बहुत अच्छी कर देता है। भी गाजर और शकरकंद में भी पाया जाने वाला बीटा कैरोटीन, सूर्य की क्षति से त्वचा की रक्षा करने में मदद करता है। टमाटर का लाइकोपीन पराबैंगनी प्रकाश क्षति से भी त्वचा को कम संवेदनशील बनाता है, जो लाइनों और झुर्रियों का एक प्रमुख कारण होता है।

मजबूत हड्डियां टमाटर हड्डियों को मजबूत बनाता है।टमाटर में विटामिन के और कैल्शियम दोनों ही हड्डियों को मजबूत बनाने और मरम्मत के लिए बहुत अच्छे होते हैं। देखा गया है, कि लाइकोपीन हड्डियों को सुधारता भी है, जो ऑस्टियोपोरोसिस से लड़ने के लिए बहुत बढ़िया तरीका है।

                        कैंसर से लड़ना
टमाटर प्राकृतिक रूप से कैंसर से लड़ता है। प्रोस्टेट, गर्भाशय ग्रीवा, मुंह, ग्रसनी, गला, भोजन-नलिका, पेट, मलाशय, गुदा संबंधी, प्रोस्टेट और डिम्बग्रंथि के कैंसर सहित कई तरह के कैंसर के खतरे को कम कर सकता है। टमाटर के एंटीऑक्सीडेंट (विटामिन ए और सी) फ्री रैडिकल्स से लड़ते हैं

                          रक्त शर्करा

टमाटर आपकी रक्त शर्करा को संतुलित रख सकता है। टमाटर, क्रोमियम का एक बहुत अच्छा स्रोत हैं, जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है।

                                दृष्टि


टमाटर आपकी दृष्टि में सुधार कर सकता है। टमाटर जो विटामिन ए प्रदान करता है, वो दृष्टि में सुधार और रतौंधी को रोकने में मदद कर सकता है। हाल के शोध से पता चला है कि, टमाटर लेने से धब्बेदार अध: विकृति, एक गंभीर और अपरिवर्तनीय आंख की स्थिति को कम करने में मदद मिल सकती है।

                            पुराना दर्द

टमाटर पुराने दर्द को कम कर सकता है। अगर आप उन लाखों लोगों में से एक हैं, जिनको हल्का और मध्यम पुराना दर्द रहता है (गठिया या पीठ दर्द ), तो टमाटर दर्द को खत्म कर सकता है। टमाटर में उच्च बायोफ्लेवोनाइड और कैरोटीन होता है, जो प्रज्वलनरोधी कारक के रूप में जाना जाता है।

                   वजन घटाना

टमाटर आपको आपका वजन कम करने में मदद कर सकता है। अगर आप एक समझदार आहार और व्यायाम की योजना पर हैं, तो अपने रोजमर्रा के भोजन में बहुत सारा टमाटर शामिल करें। ये एक अच्छा नाश्ता बनाएंगे और सलाद, कैसरोल, सैंडविच और अन्य भोजन को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। क्‍योंकि टमाटर में ढेर सारा पानी और फाइबर होता है, इसीलिये वजन नियंत्रण करने वाले इसे 'फिलिंग फूड' कहते हैं, वह खाना जो जल्‍दी पेट भरते हैं, वो भी बिना कैलोरी या फैट बढ़ाये।

                 टमाटर खाने के अन्य फायदे


टमाटर में विटामिन, प्रोटीन, वसा आदि तत्व‍ मौजूद होते हैं। इसके अलावा टमाटर में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है। आइए जानते हैं कि टमाटर किन‍-किन बीमारियों के लिए फायदेमंद है –

◆ भूख बढाने के लिए – टमाटर खाने से भूख बढती है। इसके अलावा टमाटर पाचन शक्ति, पेट से संबंधित अनेक समस्याओं को दूर करता है। टमाटर खाने से पेट साफ रहता है और इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।

◆ त्वचा के लिए – टमाटर खाने से सनबर्न और टैन्ड स्किन में फायदा होता है। टमाटर में पाया जाने वाला लाइकोपीन तत्व त्वचा को अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाता है।

◆ पेट के लिए – पेट में कीड कीड़े हैं तो हर रोज खाली पेट टमाटर खाने फायदा होता है। टमाटर में हींग का छौका लगाकर पीजिए, पेट के सारे कीडे मर जाएंगे। टमाटर पर काली मिर्च लगाकर खाना भी काफी फायदेमंद होता है।

◆ डायबिटीज के लिए – डायबिटीज रोगियों के लिए टमाटर खाना बहुत फायदेमंद होता है। हर रोज एक खीरा और एक टमाटर खाने से डायबिटीज रोगी को लाभ मिलता है। टमाटर आंखों व पेशाब संबंधी रोगों के लिए भी फायदेमंद है।

◆ लीवर और किडनी के लिए – टमाटर खाने से लीवर और किडनी की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। हर रोज टमाटर का सूप पीने से लीवर और किडनी को फायदा होता है।

◆ गठिया के लिए – अगर आपको गठिया है तो टमाटर का सेवन कीजिए। एक गिलास टमाटर के रस को सोंठ में डालकर अजवायन के साथ सुबह-शाम पीजिए, गठिया में फायदा होगा।

Benefits of black lentil (urad dal)

                             उड़द की दाल



■ इसे दालों की महारानी कहा जाता है.
■ उड़द को एक अत्यंत पौष्टिक दाल के रूप में जाना जाता है,
■ छिलकों वाली उड़द की दाल में विटामिन, खनिज लवण तो खूब पाए जाते हैं और कोलेस्ट्रॉल नगण्य मात्रा में होता है।
■ धुली हुई दाल प्रायः पेट में अफारा कर देती है। छिलकों वाली दाल में यह दुर्गुण नहीं होता।
■ गरम मसालों सहित छिलके वाली दाल ज्यादा गुणकारी होती है।
■ सप्ताह में तीन दिन भोजन में उड़द की छिलके वाली दाल का सेवन किया जाए, तो यह शरीर को बहुत लाभ करती है। यदि इसमें नींबू मिलाकर खाएँ तो इसका स्वाद बढ़ जाता है और पाचन भी सरल हो जाता है।
■ यदि रोगी की जठराग्नि मंद हो तो उड़द का पाक या उड़द के लड्डू बनाकर सेवन कराते हैं। उड़द की दाल को पिसवाकर उसमें सभी प्रकार के मेवे मिलाकर लड्डू बनाते हैं, ये लड्डू अत्यंत शक्ति वर्द्धक होते हैं। इस लड्डू का सेवन निर्बल, कमजोर तथा व्यायाम करने वाले भी करते हैं। इन लड्डुओं का सेवन सिर्फ शीत ऋतु में ही किया जाना चाहिए। शीत ऋतु में पाचन शक्ति प्रबल होती है, इसलिए शीत ऋतु उत्तम मानी गई है।
■ इसमें कैल्सियम, पोटेशियम, लौह तत्व, मैग्नेशियम, मैंगनीज जैसे तत्व आदि भी भरपूर पाए जाते है और इसे बतौर औषधि कई हर्बल नुस्खों में उपयोग में लाया जाता है।
■ छिलकों वाली उडद की दाल को एक सूती कपडे में लपेट कर तवे पर गर्म किया जाए और जोड दर्द से परेशान व्यक्ति के दर्द वाले हिस्सों पर सेंकाई की जाए तो दर्द में तेजी से आराम मिलता है। काली उडद को खाने के तेल में गर्म करते है और उस तेल से दर्द वाले हिस्सों की मालिश की जाती है। जिससे दर्द में तेजी से आराम मिलता है।
■ इसी तेल को लकवे से ग्रस्त व्यक्ति को लकवे वाले शारीरिक अंगों में मालिश करनी चाहिए, फायदा होता है।
■ दुबले लोग यदि छिलके वाली उड़द दाल का सेवन करे तो यह वजन बढाने में मदद करती है। अपनी दोनो समय के भोजन में उड़द दाल का सेवन करने वाले लोग अक्सर वजन में तेजी से इजाफा होता हैं।
■ फोडे फुन्सियों, घाव और पके हुए जख्मों पर उड़द के आटे की पट्टी बांधकर रखने से आराम मिलता है। दिन में 3-4 बार ऐसा करने से आराम मिल जाता है।
■ डांग गुजरात के आदिवासियों के अनुसार गंजेपन दूर करने के लिए उड़द दाल एक अच्छा उपाय है।दाल को उबालकर पीस लिया जाए और इसका लेप रात सोने के समय सिर पर कर लिया जाए तो गंजापन धीरे-धीरे दूर होने लगता है और नए बालों के आने की शुरुआत हो जाती है।
■ डांग- गुजरात के आदिवासी मानते है कि उड़द के आटे की लोई तैयार करके दागयुक्त त्वचा पर लगाया जाए और फ़िर नहा लिया जाए तो ल्युकोडर्मा (सफ़ेद दाग) जैसी समस्या में भी आराम मिलता है।





■ जिन्हें अपचन की शिकायत हो या बवासीर जैसी समस्याएं हो, उन्हें उडद की दाल का सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से मल त्याग आसानी से होता है।
■ उड़द की बिना छिलके की दाल को रात को दूध में भिगो दिया जाए और सुबह इसे बारीक पीस लिया जाए। इसमें कुछ बूंदें नींबू के रस और शहद की डालकर चेहरे पर लेप किया जाए तो एक घंटे बाद इसे धो लिया जाए। ऐसा लगातार कुछ दिनों तक करने से चेहरे के मुहांसे और दाग दूर हो जाते है और चेहरे में नई चमक आ जाती है।
■ इसमें बहुत सारा आयरन होता है, जिसे खाने से शरीर को बल मिलता है। इसमें रेड मीट के मुकाबले कई गुना आयरन होता है ।
■ जिन लोगों की पाचन शक्ति प्रबल होती है, वे यदि इसका सेवन करें, तो उनके शरीर में रक्त, मांस, मज्जा की वृद्धि होती है। इसमें बहुत सारे घुलनशील रेशे होते हैं जो कि पचने में आसान होते हैं।
■ हृदय स्‍वास्‍थ्‍य- कोलेस्‍ट्रॉल घटाने के अलावा भी काली उड़द स्‍वास्‍थ्‍य वर्धक होती है। यह मैगनीशियम और फोलेट लेवल को बढा कर धमनियों को ब्‍लॉक होने से बचाती है। मैगनीशियम, दिल का स्‍वास्‍थ्‍य बढाती है क्‍योंकि यह ब्‍लड सर्कुलेशन को बढावा देती है।
■  20 से 50 ग्राम उड़द की दाल छिलके वाली रात को पानी में भिगो दें, सुबह इसका छिलका निकालकर बारीक पीस लें। इस पेस्ट को इतने ही घी में हलकी आँच पर लाल होने तक भूनें, फिर उसमें 250 ग्राम दूध डालकर खीर जैसा बना लें, इसमें स्वाद के अनुसार थोड़ी सी मिश्री मिलाकर इसका सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे शरीर ,दिल और दिमाग की शक्ति बढती है.
एक सप्ताह तक इसका सेवन करने से पुराने से पुराना मूत्र रोग ठीक हो जाता है।यदि युवतियाँ इस खीर का सेवन करें तो उनका रूप निखरता है। स्तनपान कराने वाली युवतियों के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। यदि गर्भाशय में कोई विकार है तो दूर होता है। पुरुष हो या स्त्री, उड़द के लड्डू या खीर का नियमपूर्वक सेवन तीन माह करने से नवयौवन मिलता है, यदि यौवन है, तो वह और निखरता है।

Tips for stay healthy in summer.

       लू से बचने के लिए अपनाएं ये घरेलू नुस्खे



गर्मियों में लू लगना एक आम बात है। इससे बचने के लिए आपके घर में ही कई ऐसी चीजें हैं जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं, लू से बचने के लिए कुछ कमाल के घरेलू नुस्खों के बारे में।

लू से बचने के लिए घरेलू नुस्खे काफी असरकारी होते हैं। लू लगने की सबसे बड़ी वजह है शरीर में पानी की कमी होना। इसलिए गर्मियों में ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। गर्मियों में चलने वाली लू से बचने के लिए घर से बाहर निकलने से पहले विशेष सावधानी बरतना जरूरी है। लू से बचने के लिए शरीर के कुछ खास अंग जैसे आंख, कान और नाक की सुरक्षा जरूरी है। इनके जरिए गर्म हवाएं शरीर में प्रवेश कर जाती है और आप लू का शिकार हो जाते हैं। इसलिए बाहर निकलने से पहले चेहरे को ढ़कने पर विशेष जोर दिया जाता है। इनके अलावा कई ऐसे घरेलू नुस्खे हैं जो आपको लू बचा सकते हैं। आईए जानें उनके बारे में।

                 
               लू से बचने के घरेलू नुस्खे



■ धनिए को पानी में भिगोकर रखें, फिर उसे अच्छी तरह मसलकर तथा छानकर उसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर पीएं।
■ गर्मियों में आम का पन्ना पीना चाहिए। यह कच्चे आम का शर्बत होता है जो आपको लू से बचाता है।
■ इमली के बीज को पीसकर उसे पानी में घोलकर कपड़े से छान लें। इस पानी में शकर शक्कर मिलाकर पीने से लू से बचा जा सकता है।
■ बाहर निकलने से पहले हमेशा अपने साथ पानी की बोतल रखें और थोड़ी-थोड़ी थोडी देर में पानी पीते रहें। ■ दिन में खाली पेट बाहर नहीं निकले। घर से निकलने के पहले कुछ खाकर निकले।
■ धूप में कम से कम निकलने की कोशिश करें। अगर निकलना जरूरी है तो छाता जरूर लेकर चलें।
■ धूप में निकलने से पहले पूरे अंगो को ढकने वाले कपड़े पहने। अगर संभव हो तो सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें। इससे गर्मी कम लगती है।
■ कच्ची प्याज भी लू से बचाने में मददगार होता है। आप खाने के साथ कच्चा प्याज का सलाद बनाकर खा सकते हैं।
■ गर्मी के मौसम में शरीर में पानी की कमी न हो इसलिए तरबूज, ककड़ी, खीरा खाना चाहिए। इसके अलावा फलों का जूस लेना भी फायदेमंद है।
■ पानी में ग्लूकोज मिलाकर पीते रहना चाहिए। इससे आपके शरीर को उर्जा मिलती है जिससे आपको थकान कम लगती है।
■ लू से बचने के लिए बेल या नींबू का शर्बत भी पीया जा सकता है। यह आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है।
■ बाहर से आने के बाद तुरंत पानी नहीं पीएं। जब आपके शरीर का तापमान सामान्य हो जाए तभी पानी पीएं।


Information about vitamin B7 &B12

               विटामिन बी7 के महत्वपूर्ण तथ्य


★ यह विटामिन प्रोटीन के पाचन में सहयोग की भूमिका अदा करता है।
★ इसकी कमी शरीर में हो जाने से पेलाग्रा रोग उत्पन्न हो जाता है।
★ इसकी कमी से रोगी अनिद्रा का शिकार हो जाता है।
★ यह कार्बोहाइड्रेटस के पाचन में सहयोगी होता है।
★ इस विटामिन की कमी से रोगी मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है।
★ त्वचा पर खुश्की के लक्षण विटामिन बी7 की कमी से उत्पन्न होते हैं।
★ रोग की अवस्था में विटामिन बी7 की 50 मिलीग्राम से लेकर 104 मिलीग्राम तक प्रयोग किया जाता है।
★ विटामिन बी7 की अधिकता अथवा अधिक प्रयोग करने से त्वचा लाल हो जाती है तथा लाली वाले स्थान पर चुनचुनाहट प्रतीत होने लगती है।
★ विटामिन बी7 की कमी से पागलपन के दौरे पड़ने लगते हैं।
★ शरीर में खून की कमी विटामिन बी7 की कमी के परिणामस्वरूप होती है।
★ मुंह के कोणों के जख्म विटामिन बी7 की कमी से होते हैं।
★ विटामिन बी7 की कमी से शारीरिक, मानसिक दुर्बलता पैदा हो जाती है।
★ पतले दस्तों का एक कारण विटामिन बी7 की शरीर में कमी हो जाना माना जाता है।
★ विटामिन बी7 की कमी यदि दूर कर दी जाये तो शरीर में इसकी कमी से होने वाले रोग दूर हो जाते हैं।
★ विटामिन बी7 विटामिन बी-कॉम्पलेक्स का सातवां महत्वपूर्ण अंश है। जिसकी कमी से शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।



                              विटामिन बी12


 पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड विटामिन बी-कॉम्पलेक्स के परिवार का एक सदस्य है। इसके प्रयोग से शरीर में रिक्ट्रेशिया की वृद्धि से रोग लग जाता है। इससे संक्रामक रोगों में बहुत लाभ होता है। टाइफस फीवर पैरा-एमिनो बेंजोइक एसिड से पूरी तरह नष्ट हो जाता है। स्मरण रहे टाइफस फीवर जुओं और लीखों के संक्रमण से होता है। राकी माऊन्टेन स्पाटेड फीवर की जड़ें उखाड़ने में भी पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड से सहायता प्राप्त होती है। पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड पशुओं के जिगर में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। बीजों की मींगी, बीजों की गिरियां, हरे पत्ते वाली पालक की साग-सब्जी से भी यह प्राप्त होता है। सोयाबीन के बीजों की मींगी में यह काफी अधिक पर्याप्त मात्रा में होता है। पशुओं के वृक्कों में भी पैरा-एमिनों बेंजोइक एसिड पाया जाता है। सामान्यत: 15 से 50 मिलीग्राम की मात्रा अथवा आवश्यकतानुसार चिकित्सा हेतु प्रयोग की जा सकती है। मूल रूप से पैरा-एमिनो बेंजोइक एसिड अनेक प्रकार के विषाणुओं के संक्रमण को रोकता है तथा समूल नष्ट करता है।



 विटामिन बी12 की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग

● शारीरिक कमजोरी।
● मानसिक कमजोरी।
● खून की कमी।
● जीभ में सूजन और लाली।
● भूख कम लगना।


विटामिन बी12 के स्रोत वाले खाद्य पदार्थो की तालिका-

● पशुओं के जिगर का सत्व।
● मछली।
● मांस।
● अण्डा।
● दूध।

Information about vitamin B6 & B4

          विटामिन बी6 की कमी से उत्पन्न रोग

◆ स्नायु दुर्बलता।
◆ नींद न आना।
◆ चिड़चिड़ापन।
◆ पेट में दर्द।
◆ शारीरिक दुर्बलता।
◆ लड़खड़ाना।
◆ चलने में कष्ट।
◆ रक्त अल्पता।
◆ कंपन।
◆ आधे सिर का दर्द।
◆ गर्भावस्था में उल्टी या जी मिचलाना।
◆ मांस पेशियां कमजोर पड़ना।


विटामिन बी6 के स्रोत वाले खाद्य पदार्थ

◆ अमरूद
◆ नारंगी
◆ दालें
◆ मटर
◆ सोयाबिन
◆ पपीता
◆ दूध
◆ चना
◆ टमाटर





           विटामिन बी6 की महत्वपूर्ण बातें

■ विटामिन बी6 को पायरीडॉक्सिन के नाम से भी जाना जाता हैं।
■ विटामिन बी6 का रंग सफेद होता है।
यह गंधरहित क्रिस्टल अर्थात् कणों वाला पाउडर होता है।
■ विटामिन बी6 की कमी से रोगी को त्वचा के रोग हो जाते है जिनमें त्वचा की सूजन प्रमुख होती है।
■ विटामिन बी6 का प्रयोग अधिकतर मुहांसों को दूर करने के लिए किया जाता है।
■ बच्चों को आक्षेप या कम्हेड़े के दौरे पड़ने पर इसका प्रयोग अच्छा लाभ देता है।
■ विटामिन बी6 की कमी से पेट के कई रोग हो जाते हैं जिनमें प्रमुख रूप से पेट में दर्द और ऐंठन होती है।
■ क्लोरोफार्म के प्रयोग से होने वाले विकारों में विटामिन बी6 लाभ प्रदान करता है।
■ ईथर प्रयोग करने पर उससे होने वाले विकारों को दूर करने के लिए विटामिन बी6 का प्रयोग हितकारी साबित होता है।
■ विटामिन बी6 प्रकाश के संपर्क में आकर नष्ट हो जाता है।
■ विटामिन बी6 पर क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता है।
■ विटामिन बी6 खून में सफेद कणों के निर्माण में अहम भूमिका अदा करता है।
■ विटामिन बी6 गर्मी के प्रभाव से नष्ट नहीं होता।
■ गर्भावस्था के विकारों को शान्त रखने के लिए इस विटामिन की काफी अधिक आवश्यकता पड़ती है।
■ विटामिन बी6 की कमी से होठों के कोनों में जख्म उत्पन्न हो जाते है।
■ अनिद्रा रोग शरीर में विटामिन बी6 की कमी की वजह से होता है।
■ कील-मुहांसों को दूर करने के लिए विटामिन बी6 रामबाण साबित होता है।
■ डब्बे का दूध पीने वाले बच्चे इस विटामिन की कमी से चिड़चिड़े हो जाते हैं और रात-दिन रोते रहते हैं।
■ विटामिन बी6 की कमी से रोगी को पक्षाघात जैसे भयंकर रोग हो सकते हैं।
■ विटामिन बी6 की कमी से पीलिया रोगों का सामना करना पड़ता है।
■ पशुओं की कलेजी में विटामिन बी6 प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
■ विटामिन बी6 की कमी से पेलाग्रा रोग हो जाता है।




                विटामिन बी4 के महत्वपूर्ण तथ्य


● विटामिन बी4 को एमाइनो एसिड भी कहा जाता है।
● इसकी रासायनिक रचना प्रोटीन जैसी होती है।
● शरीर में जब प्रोटीन पच जाता है तब आंतों में जो शेष बचा हुआ पदार्थ रहता है उसे ही एमाइनो एसिड नाम से पुकारा जाता है और यही विटामिन बी4 होता है।
● आंतें एमाइनो एसिड अर्थात् विटामिन बी4 का प्रचूषण करती हैं।
● आंतें एमाइनो एसिड को चूसकर यकृत में भेज देती है। एमाइनो एसिड अनेक प्रकार के होते हैं।
● विटामिन बी4 शरीर के विभिन्न अवयवों का निर्माण करता है।
● विटामिन बी4 घावों को भरने में मदद करता है।
● विटामिन बी4 का संचय यकृत और पेशियों में होता है।
● ज्वर होने का एक कारण शरीर में विटामिन बी4 की कमी भी होता है।

Information about vitamin B2

            विटामिन बी2 की कमी से उत्पन्न रोग


■ होंठों के किनारे फट जाना।
■ जीभ का रंग लाल होना, छाले निकलना, जीभ का सूज जाना।
■ नाक का पकना व सूजना।
■ आंख में जलन व सूजन, धुंधलापन होना।
■ कान के पीछे खुजली होना।
■ योनि की खुजली।


     विटामिन बी2 के जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

● विटामिन बी2 को विटामिन `जी´ भी कहा जाता है।
● विटामिन बी2 यीस्ट लीवर एक्स्ट्रैक्ट, गेहूं के अंकुर, दूध आदि में पाया जाता है।
● शरीर में विटामिन बी2 की कमी हो जाने पर शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए यह विटामिन एक से तीन मिलीग्राम तक पर्याप्त होता है।
इस विटामिन को रिबोफ्लेबिन कहा जाता है।

● विटामिन बी2 पीले रंग का होता है।

● विटामिन बी2 पानी में कम घुलता है।

● विटामिन बी2 सोडा बाई कार्ब के संपर्क में आकर नष्ट हो जाता है।

● इस विटामिन को वैज्ञानिक भाषा में लैक्टोफ्लेबिन भी कहा जाता है। किये गये परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि शरीर में विटामिन बी1 और विटामिन बी2 की कमी एक साथ होती है।
● ध्यान रहे विटामिन बी-काम्पलेक्स में प्रत्येक तत्व की एक साथ कमी हो जाती है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखें चुंधिया जाने का रोग हो जाता है।
● विटामिन बी2 की कमी की सबसे प्रमुख पहचान मुंह के कोनों पर पीलापन छा जाना होता है।
● विटामिन बी2 की कमी से नाक में सूजन आ जाती है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखों की रोशनी में धुंधलापन आने लगता है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखों में सूजन आ जाती है।
● एक रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन बी2 की मात्रा 50 मिलीग्राम दी जानी चाहिए।
● चेहरे के कील-मुंहासों का एक कारण शरीर में विटामिन बी2 की कमी हो जाना होता है।
● जीभ तथा होठों के रोग विटामिन बी2 की कमी से होते हैं।
● दूरस्थ तंत्रिकाओं के विकार विटामिन बी2 की कमी से होते हैं।
● आवश्यकता से अधिक विटामिन हो जाने पर विटामिन बी2 पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है।
● शरीर में विटामिन बी2 की कमी से महिलाओं को योनि की खुजली हो जाती है।



● मुखपाक (मुंह के छाले) विटामिन बी2 की कमी से होता है।
● विटामिन बी2 की कमी से आंखों के अनेक रोग शरीर को घेर लेते हैं। जिसमें आंखों का रूखापन, आंखों की सूजन तथा रोहें प्रमुख हैं।
● विटामिन बी2 की कमी से आंसू निकलने लगते हैं।
दूध, मछली तथा खमीर से विटामिन बी2 प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है।
● विटामिन बी2 की कमी से पलकों में जलन और खाज होने लगती है।
● कार्निया की सूजन विटामिन बी2 की कमी से होती है।
● होंठ फटने का मुख्य कारण शरीर में विटामिन बी2 की कमी होता है।


विटामिन बी2 के स्रोत वाले खाद्य पदार्थो की तालिका

टमाटर
पालक
बन्दगोभी
दूध
यीस्ट
लीवर
आसव अरिष्ट
मछली
खमीर
अण्डे की सफेदी
चावल की भूसी
माल्टा
गाजर
फलियां




नोट- एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन बी2 की 3 मिलीग्राम तक की मात्रा की आवश्यकता होती है। लेकिन एक रोगी को 50 मिलीग्राम प्रतिदिन विटामिन बी2 की आवश्यकता रहती है।



Information about vitamin B1

            विटामिन बी1 की कमी से होने वाले रोग

■ बेरी-बेरी रोग।
■ मस्तिष्क में खराबी होना।
■ भूख न लगना।
■ याददाश्त कम हो जाना।
■ दिल की कमजोरी।
■ सांस लेने में कठिनाई, पैरों में जलन।
■ आमाशय-आंतड़ियों के रोग।
■ कब्ज होना।
■ पेट में वायु (गैस) उत्पन्न होना।
■ पाचन क्रिया के दोष होना।
■ गर्भवती को उल्टी होना।
■ विषैला प्रभाव बढ़ जाना।
■ जिगर में दर्द होना।

         
             विटामिन बी1 का महत्वपूर्ण तथ्य

◆ विटामिन बी1 का वैज्ञानिक नाम थायमिन हाइड्रोक्लोराइड है।
◆ वयस्कों को प्रतिदिन विटामिन बी1 की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है।
◆ गर्भवती स्त्रियों को अपने पूरे गर्भावस्था के समय तक विटामिन बी1 की 5 मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है।
◆ शरीर में विटामिन बी1 जरूरत से ज्यादा हो जाने पर पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है।
◆ व्यक्ति की आयु बढ़ाने में लिए विटामिन बी1 का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है। इसलिए वैज्ञानिक इसे बेरी-बेरी विटामिन भी कहते हैं।
◆ यदि भोजन में विटामिन बी1 की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का सम्पूर्ण प्रयोग कर पाने में समर्थ नहीं हो पाता। इससे शरीर में एक विषैला एसिड जमा होकर रक्त में मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग में रोगी की मांसपेशियों को जहां भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शून्यता का आभास होता है।
◆ वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन बी1 900 यूनिट अ. ई. की आवश्यकता पड़ती है।
◆ विटामिन बी1 मूलांकुरों में अधिक पाया जाता है।
◆ दूध पीने वाले बच्चों को शरीर में विटामिन बी1 की कमी से उल्टी और पेट दर्द जैसे विकार हो जाते हैं।



◆ विटामिन बी1 निशास्ता (wheat starch) युक्त भोजन को पचाने में सहयोग करता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी हो जाने से रोगी की भूख मर जाती है तथा वजन तेजी से गिरने लगता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से हृदय और मस्तिष्क में कमजोरी तथा दूसरे दोष हो जाते हैं।
◆ कार्बोहाइड्रेट तथा फॉस्फोरस का शरीर में पूर्ण उपयोग तभी हो सकता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी1 मौजूद हो।
◆ विटामिन-बी1 की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि वह जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अन्दर नहीं संजो पाता है।
◆ सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा कठोर परिश्रम करने वाले लोगों को विटामिन बी1 की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है।
◆ विटामिन बी1 का रोगी अक्सर अजीर्ण रोग से पीड़ित रहता है।
◆ बेरी-बेरी रोग विशेषरूप से उन लोगों को होता है जो मशीन से पिसा हुआ आटा और चावल ज्यादा मात्रा में खाते हैं।
◆ बेरी-बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र।
◆ आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियों की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उनका हृदय कमजोर हो जाता है।
◆ शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है।
कभी-कभी, किसी-किसी रोगी में शुष्क और आर्द्र दोनों प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते हैं।
◆ शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुक्त रोगी को हृदय सम्बंधी अनेक विकार होते हैं। उनका हृदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है।
◆ शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी में एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदारी जान का खतरा पैदा कर सकती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से वात संस्थान पर असर पड़ता है और इसीलिए वात नाड़ियों में वेदना होती है।
◆ गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन बी1 की कमी का सूचक कहा जा सकता है।
◆ गर्भावस्था की विषममयता विटामिन बी1 की कमी से होती है अत: विटामिन बी1 की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषमयता नष्ट हो जाती है।
◆ बहुत से चर्म रोग विटामिन बी1 की कमी की वजह से भोगने पड़ते हैं।
◆ विटामिन बी1 की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बन्द हो जाना है।
◆ वनस्पतियों, पत्तेदार शाक तथा खमीर में विटामिन बी1 अधिक मात्रा में विद्यमान रहता है।
पीलिया रोग के पीछे भी विटामिन बी1 की कमी होती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से रोगी को पानी की तरह पतली उल्टी तथा जी मिचलाना जैसे रोग हो जाते हैं।
◆ मोटे व्यक्तियों को विटामिन बी1 की अधिक आवश्यकता होती है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से हृदय बड़ा हो जाना रोगी के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है।
◆ सूखे किण्व (खमीर) में विटामिन बी1 सबसे अधिक 9000 अ. ई. यूनिट होता है।
◆ मटर में विटामिन बी1 सबसे कम 100 यूनिट अ.ई. होता है।
◆ विटामिन बी1 की कमी से फेफड़ों की झिल्ली में तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डकोषों में भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है।
◆ आंतड़ियों की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने में इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है।
◆ विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा शरीर में रहने पर मांसपेशियां पुष्ट रहती हैं।
◆ विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा से आंतों के संक्रमण की सुरक्षा बनी रहती है। इससे आंतों की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नहीं कर पाते हैं।
यह विटामिन यकृत की कार्य प्रणाली को स्वस्थ रखता है।
◆ यदि पाचन संस्थान स्वस्थ और शक्तिशाली है तो समझना चाहिए कि शरीर में विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा मौजूद है।
◆ जो लोग हरी साग-सब्जी नहीं खाते वे निश्चय ही विटामिन बी1 की कमी के शिकार हो जाते हैं।
मस्तिष्क तथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रों को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे होते हैं।
◆ यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग में प्रोटीन को यथाचित मात्रा में संतुलित रखता है।

    विटामिन बी1 युक्त खाद्य  (मात्रा प्रति 100 ग्राम)

क्र.स.     खाद्य पदार्थों                         यूनिट में मात्रा

1.       सूखे किण्व                               9000 यूनिट

2.       ताजे किण्व                               6000 यूनिट

3.     गेहूं के अंकुरों में                           4000 यूनिट

4.     गेहूं के दानों में                               900 यूनिट

5.     गेंहूं की रोटी में                                   360

6.        मटर                                                100

7.     हरी सब्जियां                     30 से 210 यूनिट

8.          आलू                           90 से 120 यूनिट

9.           दूध                                60 यूनिट

10.     अण्डे की जर्दी                     400 यूनिट

11.      जिगर                                 450 यूनिट

12.        गुर्दे                                   470 यूनिट



Information about vitamin C

          विटामिन `सी´ की कमी से होने वाले रोग


■ शरीर में दूषित कीटाणुओं की वृद्धि।
■ आंखों में मोतियाबिन्द हो जाना।
■ खाया-पिया हुआ भोजन शरीर में न लगना।
■ घाव में पीप पड़ना।
■ हडि्डयां कमजोर पड़ जाना।
■ चिडचिड़ा स्वभाव हो जाना।
■ खून का बहना।
■ मसूड़ों से खून व पीप बहना।
■ लकवा हो जाना।
■ रक्तविकार।
■ मुंह से बदबू आना।
■ शरीर कमजोर होना।
■ पाचन क्रिया में दोष उत्पन्न होना।
■ श्वेतप्रदर और सन्धिशोथ।
■ पुट्ठों की कमजोरी।
■ भूख न लगना।
■ सांस कठिनाई से आना।
■ चर्म रोग।
■ अल्सर का फोडा।
■ चेहरे पर दाग पड़ जाना।
■ फेफड़े कमजोर पड़ जाना तथा नजला जुकाम होना।
■ आंख, कान और नाक के रोग।
■ एलर्जी होना।


विटामिन `सी´ के स्रोत वाले खाद्य पदार्थों की तालिका-

●आंवला।
●नारंगी
●अमरूद
●सेब
●केला
●बेर
●बेल पत्थर
●कटहल
●शलगम
●पुदीना
●मूली के पत्ते
●मुनक्का
●दूध
●नींबू
●टमाटर
●चुकन्दर
●चोलाई का साग
●पत्ता गोभी
●हरा धनिया
●पालक

        विटामिन `सी´ की महत्वपूर्ण बातें

विदेशों में न्यूमोनिया तथा लाल ज्वर जैसे खतरनाक संक्रमण युक्त रोगों में विटामिन `सी´ रोगी को देना अति आवश्यक समझा जाता है।
कनपेड़े अर्थात् मम्पस रोगों में रोगी को विटामिन सी पानी में घोलकर पिलाते रहने से सूजन, वेदना तथा ज्वर धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं।
■ काली खांसी में विटामिन `सी´ लाभ प्रदान करता है।
■जोड़ों में सूजन होने के दर्द में विटामिन `सी´ लाभप्रद हो जाता है।
■मोतियाबिन्द के रोगी को विटामिन `सी´ देने से मोतियाबिन्द रुक जाता है।
■गर्भावस्था में विटामिन `सी´ का प्रयोग करने से सूजन समाप्त हो जाती है।
■विटामिन `सी´ की कमी से रोगी स्कर्वी रोग का शिकार हो जाता है।
■विटामिन `सी´ गंधहीन तथा रंगहीन होता है।
■विटामिन `सी´ रक्त में लाल कणों को बनाने में अति महत्वपूर्ण कार्य करता है।
■शरीर में विटामिन `सी´ की कमी हो जाने से कोशिकाओं तथा रक्त कोशिकाओं की दीवारें फटने लगती हैं और रोगी कई रोगों के संक्रमण का शिकार हो जाता है।
■गर्भपात को रोकने के लिए विटामिन `सी´ का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
■शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्राव को रोकने में विटामिन `सी´ सहायता प्रदान करता है।
■विटामिन `सी´ की कमी से आमाशय में घाव हो जाते हैं।
■क्षय (टी.बी.) रोग में विटामिन `सी´ का प्रयोग बहुत लाभ करता है।
■ टूटी हड्डी को जोड़ने के लिए ऑप्रेशन के बाद विटामिन `सी´ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।
■ फेफड़े का रक्तस्राव विटामिन `सी´ के प्रयोग से रुक जाता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से पायरिया रोग होता है। जो विटामिन `सी´ का प्रयोग करने पर ठीक हो जाता है।
■ यदि थोड़ा काम करते ही रोगी थक जाता है तो यह शरीर में विटामिन `सी´ की कमी का कारण है।
■ सांस के रोग का होना ही साबित करता है कि रोगी के शरीर में लंबे समय से विटामिन `सी´ की कमी होती चली आ रही है।
■विटामिन `सी´ की कमी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है।
■विटामिन `सी´ के प्रयोग से शरीर की रक्तवाहिनियां लचीली हो जाती हैं और उनकी कठोरता समाप्त हो जाती है।
■ विटामिन `सी´ बूढ़ों में भी चुस्ती-फुर्ती और शक्ति का संचार करने में मददगार होती है।
■ विटामिन `सी´ के प्रयोग से हर प्रकार की एलर्जी में लाभ होता है।
■ चलते-चलते थक जाना, दर्द होना, ऐंठन होना शरीर में विटामिन `सी´ की कमी को दर्शाता है।
■ विटामिन `सी´ को पानी में घोलकर पीने से सांप के विष का प्रभाव भी समाप्त हो जाता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से घाव भरने में देरी लगती है।
■ विटामिन `सी´ के प्रयोग से नासूर जैसे खतरनाक घाव भी ठीक होने लगते हैं।
■ आग में जल जाने के बाद तुरन्त ही विटामिन `सी´ का प्रयोग करने से जलन एवं वेदना में धीरे-धीरे आराम होने लगता है।
■ विटामिन `सी´ की टिकिया कारबंकल जैसे भयंकर घावों पर पीसकर भर देने से घाव जल्दी ही ठीक होने लगते हैं।
■ विटामिन `ए´ की भांति विटामिन `सी´ का भी नेत्र रोग के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
■ विटामिन `सी´ को ही एस्कोर्बिक एसिड कहा जाता है और यह जल में घुलनशील होता है।
■ विटामिन `सी´ को टूटे-फूटे अंगों को जोड़ने के लिए सीमेंट जैसी संज्ञा दी जा सकती है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से शरीर में खून की कमी हो जाती है।
■ विटामिन `सी´ खून में लाल कणों की वृद्धि करने में सहायक होता है।
■ अर्टिकेरिया, फीवर, त्वचा के दानों में रोगी को विटामिन `सी´ देने से लाभ होता है।
■ विषैले जन्तुओं के काट लेने पर विटामिन `सी´ से तुरन्त राहत मिलती है तथा जलन और दर्द दूर हो जाते हैं।
■ ज्वर (बुखार) हो तो विटामिन `सी´ का इंजेक्शन देते ही ज्वर उतर जाता है।
■ प्रोस्टेट ग्लैण्ड का संक्रमण विटामिन `सी´ से शान्त हो जाता है।
■ आंख, नाक, कान और गले के रोगों एवं विकारों के लिए विटामिन सी का प्रयोग अतिशय गुणकारी प्रभाव रखता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से हडि्डयों के जोड़ों में से रक्तस्राव होने लगता है। कभी-कभी हडि्डयों के यह अन्तिम छोर अलग ही हो जाते हैं।
■ स्वस्थ शरीर के लिए 25 से 30 मिलीग्राम विटामिन `सी´ पर्याप्त होता है।
■ बच्चों के शरीर में विटामिन `सी´ की पूर्ति करनी हो तो नारंगी, आंवला, मौसमी का रस पिलाना ही पर्याप्त है। आंवला विटामिन `सी´ के लिए सबसे उत्तम होता है। सूखे और ताजे दोनों आंवलों में यह विटामिन समान रूप से विद्यमान रहता है।
■ संधिवात, संधिशोथ तथा आमवात यानी जोड़ों के दर्द में विटामिन `सी´ गुणकारी उत्तम प्रभाव पैदा करता है।
■ यदि शरीर में विटामिन `सी´ की अत्यधिक कमी हो तो शीघ्र लाभ के लिए इंजेक्शन का प्रयोग करना ज्यादा हितकर होता है।
■ एक वर्ष से डेढ़ वर्ष तक के बच्चों को यह विटामिन प्रतिदिन 50 मिलीग्राम तक की मात्रा में देना आवश्यक होता है।
■ विटामिन `सी´ की कमी से त्वचा लटक जाती है तथा चेहरे एवं शरीर पर झुर्रियां पड़ जाती हैं।
■पक्षाघात तथा पोलियों जैसे रोग शरीर में विटामिन `सी´ की कमी से होते हैं जिन्हें विटामिन `सी´ का प्रयोग करके ठीक किया जा सकता है।
■ चेहरे के खतरनाक दाग-धब्बे विटामिन `सी´ के प्रयोग से ठीक हो जाते हैं।
■ कंजेस्टिट हार्ट फेल्यूर रोग में विटामिन `सी´ का प्रयोग करने से अधिक पेशाब आकर शरीर की सूजन तथा हृदय की तकलीफ सहित अन्य कई विकार नष्ट हो जाते हैं।

Benefits of milk

Hello friends,
           Today's I'll share with u benefits of milk in every stages of life.

             हेल्थ टिप्स हर उम्र में जरूरी है दूध


हम बचपन से ही दूध पीने लगते हैं लेकिन बड़े होने पर दूध का सेवन कम होता जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि इसके सेवन से उनके आहार में ज्यादा वसा हो जायेगा। कुछ लोग इसलिए दूध नहीं पीते क्योंकि वह सोचते हैं कि वह अब बड़े हो गये हैं इसलिए उन्हें अब इसकी जरूरत नहीं रही। दूध हमारे आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दूध प्रोटीन,खनिज और विटामिन का पौष्टिक एवं सस्ता स्त्रोत है। बावजूद इसके,दूध को दरकिनार करके सोडा,जूस और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स जैसे अधिक मीठे पेय पदार्थों का सेवन किया जाता है। इससे मोटापा,मधुमेह,हृदय रोग और कैंसर जैसी आहार संबंधी बीमारियां होने का खतरा होता है। अधिक मीठे पेय पदार्थो के स्थान पर पोषक तत्वों से युक्त दूध को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यहां हम आपको बता रहे हैं कि हर उम्र में दूध क्यों जरूरी है?

                          बचपन

बचपन में शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक बच्चों को ज्यादा शक्कर युक्त पेय पदार्थ नहीं बल्कि दूध देना चाहिए। दूध में मौजूद प्रोटीन संतुलित अमीनो एसिड से बनता है जो जैविक रूप से उपलब्ध है। यह आसानी से पच जाता है और शरीर में इसका इस्तेमाल होता है। दूध के कैल्शियम से बच्चे की विकासशील हड्डियों,दांतों और मस्तिष्क के ऊतकों को बढ़ने में मदद मिलती है और यह कोशिकीय स्तर पर उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देता है जो मांसपेशियों एवं तंत्रिका तंत्र की कार्यक्षमता को संचालित करती है। अतिरिक्त पोषण तत्वों से युक्त दूध से विटामिन डी मिलता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण विटामिन है जो हड्डियों की मजबूती के लिए शरीर को कैल्शियम,फास्फोरस को पचाने में मदद करता है,लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है,पाचन और तंत्रिका प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है और प्रतिरोधक क्षमता को सहारा देता है। 11 साल की उम्र तक के बच्चों को रोजाना कम से कम दो बार दूध और डेयरी उत्पाद देने चाहिए।

                       किशोरावस्था

मजबूत हड्डियों के लिए जरूरी किशोरों को भी शुगर युक्त पेय पदार्थो के बजाय दूध देना चाहिए क्योंकि किशोर असाधारण शारीरिक परिवर्तन से गुजरते हैं। उन्हें हार्मोस संबंधी,मांसपेशियों एवं रक्त संचार के अधिकतम विकास के लिए ऊर्जा युक्त पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है। किशोरावस्था ही वह ऐसा समय होता है जब हड्डियां मजबूत होती हैं। ऐसे में दूध बहुत फायदेमंद हो सकता है ताकि जीवन में कभी भी आपकी हड्डियों में कमजोरी नहीं आए तथा ओस्टियोपोरोसिस की समस्या न हो। दूध के आश्र्चयजनक फायदों के मद्देनजर किशोरों को रोजाना तीन या अधिक बार कम वसा वाले दूध उत्पादों का सेवन करना चाहिए।

                      वयस्क अवस्था
इस अवस्था में भी शरीर को कैल्शियम की जरूरत होती है। विटामिन डी और फास्फोरस के बगैर सभी उम्र के वयस्कों के लिये हड्डियों के कमजोर होने का खतरा होता है,इसलिए दूध की आवश्यकता बनी रहती है। ब्रोकोली और पालक के रूप में अन्य कैल्शियम युक्त गैर डेयरी आहार का सेवन करना अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन इनमें से कुछ में ऐसे यौगिक मौजूद होते हैं जिससे कैल्शियम के अवशोषण में बाधा पड़ सकती है। पालक में ऑक्सोलेट अधिक होते हैं जो कैल्शियम अवशोषण में बाधा डालते हैं जबकि ब्रोकोली आदि अन्य सब्जियों में मौजूद कैल्शियम दूध की तरह आसानी से नहीं पचता है।

Information about vitamin B-complex.

Hi..today's I'll share with u regarding vitamin B-complex.

परिचय-
विटामिन बी-काम्पलेक्स शरीर को जीवनी शक्ति देने के लिए अति आवश्यक होता है। इस विटामिन की कमी से शरीर अनेक रोगों का गढ़ बन जाता है। विटामिन-बी के कई विभागों की खोज की जा चुकी है। ये सभी विभाग मिलकर ही विटामिन बी-काम्पलेक्स कहलाते हैं। हालांकि सभी विभाग एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं, लेकिन फिर भी सभी आपस में भिन्नता रखते हैं। विटामिन बी-काम्पलेक्स 120 सेंटीग्रेड तक की गर्मी सहन करने की क्षमता रखता है। उससे अधिक ताप यह सहन नहीं कर पाता और नष्ट हो जाता है। यह विटामिन पानी में घुलनशील है। इसका प्रमुख कार्य स्नायु को स्वस्थ रखना तथा भोजन के पाचन में सक्रिय योगदान देना होता है। भूख को बढ़ाकर यह शरीर को जीवनी शक्ति देता है। ये खाए-पिए हुए पदार्थों को अंग लगाने में सहायता प्रदान करता है। क्षार पदार्थों के संयोग से यह बिना किसी ताप के नष्ट हो जाता है, पर अम्ल के साथ उबाले जाने पर भी नष्ट नहीं होता।

विटामिन-`बी´ काम्पलेक्स की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-

हाथ पैरों की उंगलियों में सनसनाहट होना।
मस्तिष्क की स्नायु में सूजन व दोष होना।
पैर ठण्डे व गीले होना।
सिर के पिछले भाग में स्नायु दोष हो जाना ।
मांसपेशियों का कमजोर होना ।
हाथ-पैरों के जोड़ अकड़ना।
शरीर का वजन घट जाना।
नींद कम आना।
मूत्राशय मसाने में दोष आना ।
महामारी की खराबी होना ।
शरीर पर लाल-चकत्ते निकलना।
दिल कमजोर होना ।
शरीर में सूजन आना ।
सिर चकराना ।
नजर कम हो जाना।
पाचन क्रिया की खराबी होना ।
विटामिन बी-काम्पलेक्स के स्रोत खाद्य पदार्थ-

टमाटर
भूसी दार गेंहू का आटा
अण्डे की जर्दी
हरी पत्तियों के साग
बादाम
अखरोट
बिना पॉलिश किया चावल
पौधों के बीज
सुपारी
नारंगी
अंगूर
दूध
ताजे सेम
ताजे मटर
दाल
जिगर
वनस्पति शाक भाजी
आलू
मेवा
खमीर
मक्की
चना
नारियल
पिस्ता
ताजे फल
कमरकल्ला
दही
पालक
बन्दगोभी
मछली
अण्डे की सफेदी
माल्टा
चावल की भूसी
फलदार सब्जी
विटामिन बी-काम्पलेक्स के प्रमुख विभाग

1.विटामिन बी1  थाईमिन हाइड्राक्लोराइट

(नोट-इसे एन्यूरिन तथा बेरी-बेरी विटामिन भी कहा जाता है।)

2 विटामिन बी2 ( रिबोफ्लेबिन अथवा लैक्टोफ्लेबिन)
इसको विटामिन `जी´ भी कहा जाता है।

3 विटामिन बी3 (पैन्टोथेनिक एसिड)

4 विटामिन बी4 (एमाइनो एसिड)

5 विटामिन बी6 (पायरीडॉक्सीन)

6 विटामिन बी7

7 विटामिन बी12
8 फोलिक एसिड

9 यीस्ट (खमीर)

10 निकोटनिक एसिड

11 नियासिन

12 निकोटिनामाइड

13 पैरा-एमीनो बेन्जोइएक एसिड

14 विटामिन `ए´बायोटिन

15 एडेनिल्कि एसिड

16 कोलीन

Benefits of Pearl millet (bajra)

 Hello friends,
                    Today's I'll share with u some benefit for bajra for bone health.hope you like it.


         बाजरा खाइए, हड्डियों के रोग नहीं होंगे

■ बाजरे की रोटी का स्वाद जितना अच्छा है, उससे अधिक उसमें गुण भी हैं।

■ बाजरे की रोटी खाने वाले को हड्डियों में कैल्शियम की कमी से पैदा होने वाला रोग आस्टियोपोरोसिस और खून की कमी यानी एनीमिया नहीं होता।

■ बाजरा लीवर से संबंधित रोगों को भी कम करता है।

■ गेहूं और चावल के मुकाबले बाजरे में ऊर्जा कई गुना है।

■ बाजरे में भरपूर कैल्शियम होता है जो हड्डियों के लिए रामबाण औषधि है। उधर आयरन भी बाजरे में इतना अधिक होता है कि खून की कमी से होने वाले रोग नहीं हो सकते।

■ खासतौर पर गर्भवती महिलाओं ने कैल्शियम की गोलियां खाने के स्थान पर रोज बाजरे की दो रोटी खाना चाहिए।

■ गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम और आयरन की जगह बाजरे की रोटी और खिचड़ी दी जाती थी। इससे उनके बच्चों को जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक कैल्शियम और आयरन की कमी से होने वाले रोग नहीं होते थे।

■ इतना ही नहीं बाजरे का सेवन करने वाली महिलाओं में प्रसव में असामान्य पीड़ा के मामले भी न के बराबर पाए गए।

■ डाक्टर तो बाजरे के गुणों से इतने प्रभावित है कि इसे अनाजों में वज्र की उपाधि देने में जुट गए हैं।

■ बाजरे का किसी भी रूप में सेवन लाभकारी है।

■ लीवर की सुरक्षा के लिए भी बाजरा खाना लाभकारी है।
■  उच्च रक्तचाप, हृदय की कमजोरी, अस्थमा से ग्रस्त लोगों तथा दूध पिलाने वाली माताओं में दूध की कमी के लिये यह टॉनिक का कार्य करता है।

■ यदि बाजरे का नियमित रूप से सेवन किया जाय तो यह कुपोषण, क्षरण सम्बन्धी रोग और असमय वृद्ध होने की प्रक्रियाओं को दूर करता है।

■ रागी की खपत से शरीर प्राकृतिक रूप से शान्त होता है। यह एंग्जायटी, डिप्रेशन और नींद न आने की बीमारियों में फायदेमन्द होता है। यह माइग्रेन के लिये भी लाभदायक है।

■  इसमें लेसिथिन और मिथियोनिन नामक अमीनो अम्ल होते हैं जो अतिरिक्त वसा को हटा कर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करते हैं।

■ बाजरे में उपस्थित रसायन पाचन की प्रक्रिया को धीमा करते हैं। डायबिटीज़ में यह रक्त में शकर की मात्रा को नियन्त्रित करने में सहायक होता है।

Information about allergies.

               एलर्जी: कारण, लक्षण एवं उपचार

एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे  एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है l

                         एलर्जी  के कारण


 एलर्जी किसी भी पदार्थ से ,मौसम के बदलाव से या आनुवंशिकता जन्य हो  सकती है एलर्जी के कारणों में धूल ,धुआं ,मिटटी पराग कण, पालतू या अन्य जानवरों के संपर्क में आने से ,सौंदर्य प्रशाधनों से ,कीड़े बर्रे आदि के काटने से,खाद्य पदार्थों से एवं कुछ अंग्रेजी दवाओ के उपयोग से एलर्जी हो सकती है सामान्तया एलर्जी नाक ,आँख ,श्वसन  प्रणाली ,त्वचा  व खान पान से सम्बंधित होती है किन्तु कभी कभी पूरे शरीर में एक साथ भी हो सकती है जो की गंभीर हो सकती है l

                   स्थानानुसार  एलर्जी  के  लक्षण


● नाक    की  एलर्जी -नाक  में  खुजली होना ,छीकें आना ,नाक  बहना ,नाक  बंद होना  या  बार  बार जुकाम  होना आदि l

● आँख की एलर्जी -आखों में लालिमा ,पानी आना ,जलन होना ,खुजली आदि l

● श्वसन संस्थान की एलर्जी -इसमें खांसी ,साँस लेने में तकलीफ एवं अस्थमा जैसी गंभीर समस्या हो सकती  है l

● त्वचा की एलर्जी -त्वचा की एलर्जी काफी कॉमन है और बारिश का मौसम त्वचा की एलर्जी के लिए बहुत ज्यादा    मुफीद है त्वचा की एलर्जी में त्वचा पर खुजली होना ,दाने निकलना ,एक्जिमा ,पित्ती  उछलना आदि होता है l

● खान पान से एलर्जी -बहुत से लोगों को खाने पीने  की चीजों जैसे दूध ,अंडे ,मछली ,चॉकलेट  आदि से एलर्जी  होती  है l

● सम्पूर्ण शरीर की एलर्जी -कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में  एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए l
अंग्रेजी दवाओं से एलर्जी-कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का  इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा  दर्द की गोलियां,सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न  कर सकती हैं l

● मधु मक्खी ततैया आदि का काटना –इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की  परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को  इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l
                        एलर्जी  से  बचाव


एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए

■ य़दि आपको एलर्जी है तो सर्वप्रथम ये पता करें की आपको किन किन चीजों से एलर्जी है इसके लिए आप ध्यान  से अपने खान पान और रहन सहन को वाच करेंl

■ घर के आस पास गंदगी ना होने दें  l
घर में अधिक से  अधिक  खुली और ताजा हवा आने का मार्ग  प्रशस्त करें|

■ जिन खाद्य  पदार्थों  से एलर्जी है उन्हें न खाएं l

■ एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l

■ बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा  लगायें l

■ गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l

■ पालतू  जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l

■ ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l

■ घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l

■ धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl

■ नाक की एलर्जी -जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है

■ सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश  खाना भी नासिका एवं साँस की   एलर्जी से बचने में सहायता करता है

■ आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा   में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है

■ जिन्हे  बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची  कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना  त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी  है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l
       

   सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे  तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l

Information about Iron

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