जिगर की सूजन परिचय, प्रकार और चिकित्सा


परिचय- सूजन अनेक प्रकार के अल्कोहल व रासायनिक दवाओं और विषैले तत्वों के अतिरिक्त असंख्य प्रकार के विषाणुओं द्वारा होती है।

जिगर की सूजन कई प्रकार की होती है

हेपेटायटिस- ´ए´ (संक्रामक यकृत शोथ)
हेपेटायटिस - ´बी´ (सीरम यकृत शोथ)
हेपेटायटिस - ´डी´
हेपेटायटिस - ´सी´
नॉन- ´ए´, नॉन- ´बी´ हेपेटायटिस
हेपेटायटिस - ´ए´ (संक्रामक जिगर की सूजन)-

          यह हेपेटायटिस ´ए´ नामक विषाणु से महामारी के रूप में या छुट-पुट रूप में होता है। हेपेटायटिस ´ए´ नामक विषाणु मुंह और मल द्वारा फैलता है। यह विषाणु गंदगी, भीड़-भाड़, सड़े-गले या दूषित भोजन करने से तथा दूषित पानी के द्वारा फैलता है। यह बच्चे व युवको में हल्की बीमारी होती है, जिसकी विशेषताएं भूख का अभाव, व्यग्रता (जल्द परेशान होना), जी मिचलाना, पेचिश, बुखार तथा ठिठुरन होती है और अंत में यह पीलिया रोग के रूप में उभरता है। पीलिया से जिगर को कोई स्थाई हानि नहीं पहुंचती है। इस रोग में उचित चिकित्सा पर ध्यान देने से यह रोग जल्द ठीक हो जाता है।

हेपेटायटिस - ´बी´ (सीरम जिगर की सूजन )-

          हेपेटायटिस ´बी´ नामक विषाणु से यह रोग होता है तथा यह खून के द्वारा फैलता है। लार, वीर्य तथा योनिस्राव में इसके विषाणु मौजूद रहते हैं। इस रोग से ग्रस्त स्त्री अपने नवजात शिशुओं में बच्चे के जन्म के दौरान इसे संचारित करती है। हेपेटायटिस - ´बी´ नवजात बच्चे में हेपेटायटिस ´बी´ के फैलने का खतरा 90 प्रतिशत तक रहता है। यौन संबंधों से भी यह रोग फैलता है। समलैंगिकों व नसों में नशीले इंजैक्शन लेने वालों में भी यह रोग अधिक मात्रा में पाया जाता है। इस रोग के विषाणु वर्षों तक शरीर में मौजूद रहते हैं। इसका उपचार न होने पर यह जिगर का कैंसर व सिरोसिस पैदा कर सकता है। जिस व्यक्ति में हेपेटायटिस ´बी´ का विषाणु मौजूद होता है, उसे सिरोसिस का खतरा रहता है।

हेपेटायटिस - ´डी´-

          हेपेटायटिस ´डी´ का विषाणु दोषयुक्त आर. एन. ए. नामक विषाणु से फैलता है। यह विषाणु हेपेटायटिस ´बी´ के संक्रमण के साथ जिगर की सूजन उत्पन्न करता है। विज्ञान की भाषा में आर. एन. ए. का विषाणु हेपाटायटिस ´बी´ के विषाणु के साथ मिलकर फैलता है तथा पहले यह पुराने रूप में मौजूद हेपेटायटिस ´बी´ को बढ़ाता है या तेज यकृत शोथ (जिगर की सूजन) पैदा करता है।

हेपेटायटिस - ´सी´

          इस प्रकार का यकृतशोथ (जिगर की सूजन) का रोग हेपेटायटिस ´सी´ नामक विषाणु से फैलता है, जोकि अकेला आर. एन. ए. विषाणु होता है। यह रक्ताधान के बाद होने वाली जिगर की सूजन के लिए 90 प्रतिशत तक जिम्मेदार होता है। यौन व माता-शिशु संबंधों में इसका संचार काफी कम पाया जाता है तथा केवल जिगर की सूजन हेपेटायटिस ´सी´ के विषाणु रोगियों तक ही रहता है। इस रोग का समय 6 से 7 दिनों का होता है। साधारण रोग होने के कारण इसके कोई लक्षण नहीं उत्पन्न होते हैं।

नॉन-´ए´, नान-´बी´ हेपेटायटिस -

       यह जिगर की सूजन एक ऐसा रूप है, जिसमें हेपेटायटिस ´ए´ और हेपेटायटिस ´बी´ दोनों पाए जा सकते हैं, परन्तु यह हेपेटायटिस ´बी´ से अधिक समानता रखता है तथा खून का निकलना इसके फैलने का मुख्य स्रोत होता है। इस विषाणु के फैलने से जिगर में सिरोसिस व कैंसर का रोग पैदा हो सकता है।
जिगर की सूजन के लिए योग चिकित्सा-

          जिगर के रोग के लिए योग क्रिया का अभ्यास तथा उसके नियमों का पालन करें। जिगर की सूजन को दूर करने के लिए पहले हल्की योग क्रिया का अभ्यास करें।

          रोगी को इस रोग में पहले लगभग 2 महीनों तक पूरा आराम करना चाहिए तथा साथ ही योग निद्रा आसन का अभ्यास करना चाहिए। इस रोग में पपीता व फलों का रस पर्याप्त मात्रा में लें। सूजन को बढ़ाने वाली किसी भी वस्तु का सेवन न करें। मांसाहारी, मसालेदार, तेल, घी व मक्खन का सेवन न करें। इन नियमों का पालन 2 महीने तक करने के बाद योग का अभ्यास अभ्यास करें।

षट्क्रिया (हठयोग)
कुंजल व वस्त्र धौती क्रिया का अभ्यास करें।


छाती व पेट के स्वास्थ्य के लिए योग क्रिया-

आसन
सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तासन आसन, त्रिकोणासन, शशांकासन व मत्स्यासन का अभ्यास करें।

प्राणायाम
भस्त्रिका, सूर्यभेदी और नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास करें।

मुद्रा व बंध
योगमुद्रा व उडि्डयान बंध का अभ्यास करें।

अभ्यास का समय
योगक्रिया का अभ्यास प्रतिदिन 30 मिनट तक करें।

प्रेक्षा (मन का ध्यान)
आसन में बैठ कर सांस क्रिया करते हुए हृदय के पास अनाहत चक्र में पीले रंग के कमल के फूल की कल्पना करें।

अनुप्रेक्षा (मन के विचार)
ध्यानासन में बैठकर शांत मन से यह विचार करें- ´´मेरे जिगर की सूजन मिट रही है, मेरे अन्दर स्वच्छ प्राणवायु का प्रवाह हो रहा है। सांस के द्वारा निकलने वाली वायु के साथ मेरे अन्दर की सारी गंदगी बाहर हो रही है और बाहर से शुद्ध वायु का प्रवाह मेरे अन्दर हो रहा है। मेरा जिगर शुद्ध हो रहा है।´´ इस तरह की मन में भावना करें।

भोजन
हल्की व उबली हुई सब्जी का सेवन करें। अपने आस-पास साफ व स्चच्छ तथा भोजन भी स्वच्छ करें। ताजे मौसमी फल, सब्जियों का सूप आदि का सेवन करें।

परहेज
इस रोग में तेल, घी, मसालेदार, मांसाहार, शराब आदि का सेवन न करें। बासी या बाजार के भोजन से परहेज रखें।

No comments:

Post a Comment

Information about Iron

  Google images लाल रक्त कोशिकाओं को खून में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए लोहे की आवश्यकता रहती है। फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों तक ऑक्सी...